नयी दिल्लीः चीन का भारत में घुसपैठ मामले में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आज जो बयान दिया है इसको लेकर उनकी काफी आलोचना हो रही है. देश के गृह मंत्री का यह कहना कि नियंत्रण रेखा के बारे में वास्तविक स्थिति की जानकारी नहीं होने की वजह से चीनी सेना सीमा लांघ जाती है, देश के लिए चिंता का विषय है. राजनाथ ने यह भी कहा कि कभी-कभी हमारे सैनिक भी भूलवश सीमा पार कर जाते हैं.
एक गृह मंत्री के द्वारा देश में विदेशी घुसपैठ को इतनी सरलता से लेना काफी अजीब है. वह भी ऐसे समय जब भारतीय प्रधानमंत्री चीन के राष्ट्रपति के साथ मुलाकात कर व्यापारिक व अन्य संबंधों को सुधारने के प्रयास में है वैसे वक्त में चीनी सैनिकों का भारतीय सीमा में घुसपैठ को इतनी सहजता से लेना देश की शांति और सुरक्षा के लिए चिन्ता का विषय है.
क्या है भारत-चीन सीमा विवाद
भारत और चीन के बीच लंबी सीमा रेखा है जिसे मैकमोहन रेखा के नाम से जाना जाता है. यह सीमा शुरु से विवाद में रहा है. चीन में 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो भारत चीन सीमा पर हिंसक घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गयी. भारत ने फॉरवर्ड नीति के तहत मैकमोहन रेखा से लगी सीमा पर अपनी सैनिक चौकियां बना दी.
चीनी सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू किये जिसका परिणाम हुआ कि भारत के साथ चीन का भयंकर युद्ध हुआ.
नया नहीं है घुसपैठ और विवाद
चीन का भारत में घुसपैठ की घटना पहली नहीं है. 1962 के युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच हुए समझौते के बाद भी चीन ने सीमा पार घुसपैठ की कोशिश की है. लगभग 4000 कि० मी लम्बी भारत-चीन सीमा के हल के लिए पिछले पांच वर्षो में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर पर करीब 15 दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन चीन अक्साई चिन ( दोनों देश के बीच विवादित क्षेत्र) देने को तैयार नही है. साथ ही वह अरुणाचल प्रदेश पर भी अपना दावा करता है. नयी मोदी सरकार के गठन के बाद जब भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी इसी वर्ष जून माह में चीन के दौरे पर थे उस वक्त भी चीन ने भारत में घुसपैठ की कोशिश की थी. दूसरी तरफ मोदी ब्राजील में चीन के राष्ट्रपति के साथ संबंधों के सुधार के प्रयास में हैं वहीं दूसरी ओर लद्दाख में चीनी सेना की घुसपैठ हो रही है.
चीन के संदर्भ में क्या होगी एनडीए की नीति
यूपीए सरकार के दौरान मनमोहन सिंह ने विशेषकर आर्थिक पहलू के आधार पर दोनों देशों के बीच शांति सौहार्द बढ़ाने की कूटनीति पर बल दिया था. मनमोहन की चीनी सरकार के साथ कई दौर की बातचीत हुई थी. पिछले वर्ष मई 2013 में मनमोहन ने सीमा विवाद, ब्रह्मपुत्र नदी में बांध, द्विपक्षीय व्यापार संबंधित विभिन्न मुद्दों पर बातचीत की है.
अब नयी एनडीए सरकार के लिए यह चुनौती है कि क्या राजनाथ या मोदी मनमोहन सरकार के तरीके को ही अपनाएंगे या चीन के साथ जारी विवादों को कुछ नए कूटनीतिक ढंग से हल करने की कोशिश करेंगे.
राजनाथ का बेतुका बयान, भूलवश सरहद लांघ गये थे चीनी सैनिक