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नक्सलियों से निबटने और आदिवासियों के करीब जाने के लिए दंतेवाड़ा के जवान सीख रहे हैं गोंडी बोली

दंतेवाड़ा : छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में सुरक्षा बल के जवान आदिवासियों के करीब जाने के लिए उनकी बोली सीख रहे हैं. राज्य के दक्षिण क्षेत्र के इस जिले में सुरक्षा बलों की गोंडी बोली की कक्षा शुरू हो गयी है. राज्य के धुर नक्सल प्रभावित जिलों में से एक दंतेवाड़ा जिले में […]

दंतेवाड़ा : छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में सुरक्षा बल के जवान आदिवासियों के करीब जाने के लिए उनकी बोली सीख रहे हैं. राज्य के दक्षिण क्षेत्र के इस जिले में सुरक्षा बलों की गोंडी बोली की कक्षा शुरू हो गयी है.

राज्य के धुर नक्सल प्रभावित जिलों में से एक दंतेवाड़ा जिले में पदस्थ अधिकारियों का मानना है कि आदिवासियों की बोली सीखने से जहां उन्हें उनके करीब जाने और क्षेत्र में विकास के कार्य में आसानी होगी, वहीं नक्सल विरोधी अभियान में यह मददगार साबित होगा. यही वजह है कि सुरक्षा बल के जवान इन दिनों गोंडी बोली सीख रहे हैं.

दंतेवाड़ा जिले के पुलिस अधीक्षक अभिषेक पल्लव कहते हैं कि बस्तर क्षेत्र के बड़े हिस्से में गोंडी बोलने वाले आदिवासी रहते हैं. यहां तैनात जवान इस बोली से अनजान हैं. इस वजह से कई बार उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है. इसे देखते हुए जिले में सुरक्षा बलों के जवानों को गोंडी बोली की शिक्षा देने का फैसला किया गया है.

पल्लव कहते हैं कि राज्य में मुख्य रूप से हिंदी और छत्तीसगढ़ी भाषा बोली जाती है. दंतेवाड़ा जिले में तैनात जवान ज्यादातर हिंदी और छत्तीसगढ़ी भाषा ही बोल सकते हैं. ऐसे में यदि उन्हें गोंडी बोली की प्रारंभिक जानकारी मिल जाती है, तब इससे क्षेत्र में कार्य करने में आसानी होगी.

तीन महीने का कोर्स

पुलिस अधिकारी बताते हैं कि जिला मुख्यालय के पुलिस लाईन में गोंडी बोली की कक्षाएं शुरू कर दी गयी है. पहले बैच में 50 सुरक्षाकर्मियों को इस बोली की शिक्षा दी जा रही है. सुरक्षाकर्मियों को गोंडी सिखाने के लिए स्थानीय लोगों की सेवाएं ली जा रही हैं. इस बोली को सीखने के लिए तीन महीने का समय और कोर्स तय किया गया है.

नक्सल विरोधी अभियान में सबसे बड़ी बाधा

पल्लव कहते हैं कि क्षेत्र में कार्यरत सुरक्षा बलों के लिए गोंडी बोली की कम जानकारी या इसे नहीं समझ पाना नक्सल विरोधी अभियान में बहुत बड़ी बाधा है. सुरक्षा बल को यदि स्थानीय बोली आती है, तब वह ग्रामीणों तक बेहतर तरीके से अपनी बात रख सकते हैं. साथ ही उनकी भावनाओं को भी अच्छे से समझ सकते हैं.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं कि गोंडी बोली की जानकारी से पुलिस को पूछताछ और जांच में सहयोग मिलेगा. साथ ही इससे नक्सलियों के बीच मोबाइल और वायरलेस के माध्यम से होने वाले वार्तालाप को आसानी से समझा जा सकेगा और सही समय पर फैसला लिया जा सकेगा.

सूचना तंत्र में मिलेगा सहयोग

पल्लव ने बताया कि इससे क्षेत्र में पुलिस सूचना तंत्र में भी सहयोग मिलेगा. उन्होंने कहा कि जिले में छत्तीसगढ़ पुलिस के लगभग 1500 जवान विभिन्न थानों और नक्सल विरोधी अभियान में तैनात हैं. अगले बैच में 100 पुलिस जवानों को गोंडी बोली सिखाने की कोशिश की जायेगी. राज्य पुलिस के जवानों की इस बोली की शिक्षा पूरी होने के बाद यदि अर्धसैनिक बलों के जवान यह बोली सीखना चाहेंगे, तब उन्हें भी यह बोली सिखाने की कोशिश की जायेगी.

हिंदी-गोंडी-हिंदी शब्दकोश हो रहा तैयार

उन्होंने बताया कि पुलिस जवानों के लिए गोंडी से हिंदी और हिंदी से गोंडी बोली के लिए एक शब्दकोश तैयार किया जा रहा है. यह शब्दकोश क्षेत्र में काम कर रहे कृषि और शिक्षा विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए भी उपयोगी होगा. छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर क्षेत्र के सभी सात जिले बस्तर, कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा पिछले तीन दशक से नक्सली हिंसा से जूझ रहे हैं.

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