सुप्रीम कोर्ट ने मांगी बंगलों पर पूर्व मंत्रियों के कब्जे पर केंद्र से सफाई
नयी दिल्ली: राजधानी में पूर्व मंत्रियों, पूर्व सांसदों और नौकरशाहों द्वारा सरकारी बंगलों में निर्धारित अवधि से ज्यादा रहने का मामला आज एक बार फिर न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ गया. पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय द्वारा इस मसले की ओर ध्यान आकर्षित किये जाने पर न्यायालय ने आज केंद्र सरकार को […]
नयी दिल्ली: राजधानी में पूर्व मंत्रियों, पूर्व सांसदों और नौकरशाहों द्वारा सरकारी बंगलों में निर्धारित अवधि से ज्यादा रहने का मामला आज एक बार फिर न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ गया. पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय द्वारा इस मसले की ओर ध्यान आकर्षित किये जाने पर न्यायालय ने आज केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया.
प्रधान न्यायाधीश आर एम लोढा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने एक राष्ट्रीय दैनिक की खबर के साथ भेजे गये विनोद राय के पत्र का स्वत: ही संज्ञान लिया. इस खबर में आरोप लगाया गया है कि 22 पूर्व केंद्रीय मंत्री और अनेक नौकरशाह गैरकानूनी तरीके से सरकारी मकानों पर काबिज हैं जबकि वे इनके हकदार नहीं हैं. न्यायालय ने इसके साथ ही इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान को न्याय मित्र नियुक्त किया.समाचार पत्र में 8 मई को प्रकाशित खबर में लालू प्रसाद, ए राजा, एस एम कृष्णा, मुकुल राय, पवन कुमार बंसल, सुबोध कांत सहाय, मुकुल वासनिक, हरीश रावत सरीखे पूर्व मंत्रियों के अलावा कई अन्य भी गैरकानूनी तरीके से सरकारी मकानों पर कब्जा किये हैं.
सूचना के अधिकार कानून के तहत सुभाष चंद्र अग्रवाल को मिली जानकारी में यह विवरण दिया गया था. इस जवाब में कहा गया था कि राजा ने नवंबर, 2010 में इस्तीफा दे दिया लेकिन उन्होंने 2-ए मोती लाल नेहरु मार्ग का बंगला अपने पास ही रखा. रिपोर्ट के अनुसार दयानिधि मारन ने जुलाई, 2011 में केंद्रीय मंत्री पद छोडा, पवन कुमार बंसल ने मई, 2013 में त्याग पत्र दिया जबकि एस एम कृष्णा अक्तूबर, 2012 से मंत्रिमंडल में नहीं हैं लेकिन ये सभी टाइप-7 या टाइप-8 श्रेणी के मकानों पर कब्जा किये हैं.