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कर्नाटक-गोवा का सियासी हाल देख मध्य प्रदेश और राजस्थान बचाने को चौकस हुई कांग्रेस

नयी दिल्लीः मौजूदा हालात में देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी गंभीर संकट के दौर से गुजर रही है. हालिया संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद अब उत्तर से लेकर दक्षिण तक पार्टी के भीतर ही ‘गृहयुद्द’ जैसी स्थिति बन गयी है. कर्नाटक से लेकर दिल्ली तक और दिल्ली से लेकर […]

नयी दिल्लीः मौजूदा हालात में देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी गंभीर संकट के दौर से गुजर रही है. हालिया संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद अब उत्तर से लेकर दक्षिण तक पार्टी के भीतर ही ‘गृहयुद्द’ जैसी स्थिति बन गयी है. कर्नाटक से लेकर दिल्ली तक और दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश व राजस्थान तक पार्टी के लिए अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गयी है.

राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद कर्नाटक और फिर गोवा में हुआ सियासी उथलपथल का रहस्य अभी तक बना हुआ है. कर्नाटक में 12 विधायक बागी हो गए जबकि गोवा में 10 विधायक पार्टी छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए. कर्नाटक के सियासी संकट पर पूरे देश की नजर है. यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पंहुचा. तीसरा संकट तेलंगाना का है, जहां पहले कांग्रेस के 18 में से 12 विधायक जून में पार्टी छोड़ चुके हैं.

इधर, कर्नाटक और गोवा में उपजे संकट के बाद कांग्रेस पार्टी दूसरे राज्यों में अपनी सरकार बचाने को लेकर चौकस हो गयी है. मध्य प्रदेश को लेकर तो कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा में ही आशंका जाहिर कर दी है. राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व खासे एक्टिव हैं. दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकार काफी कम अंतर से बहुमत में है. कांग्रेस का बहुमत कुछ निर्दलीय और स्थानीय राजनीतिक दलों के विधायकों पर टिका है.

अगर इन दोनों राज्यो में भी कुछ विधायक बागी हुए तो सरकार पर खतरा मंडराना तय है. बता दें कि कमलनाथ सरकार समाजवादी पार्टी, बीएसपी और कुछ निर्दलीयों के समर्थन पर निर्भर है. वहीं, राजस्थान में कांग्रेस सरकार को करीब एक दर्जन निर्दलीय विधायकों ने इस शर्त पर समर्थन दिया है कि अशोक गहलोत ही राज्य के मुख्यमंत्री बने रहें. इस खतरे के मद्देनजर मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ और राजस्थान में अशोक गहलोतअपने विधायकों की गतिविधियों पर नजर रख रहे हैं.

ज्यादा खतरा मध्य प्रदेश में है जहां कांग्रेस दो धड़ों में बंटी हुई है. यह मामला सार्वजनिक तो नहीं हुआ है लेकिन मुख्यमंत्री के चुनाव के वक्त से कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. मगर, संभावित खतरे को देखते हुए कमलनाथ और सिंधिया ने गुरुवार को बंद कमरे में बैठक की. माना जा रहा है कि इस मुलाकात में नए कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव को लेकर भी चर्चा हुई.

इसके अलावा कुछ दिन पहले कैबिनेट मीटिंग के दौरान सिंधिया खेमे और कमलनाथ खेमे के मंत्रियों के बीच हुई तकरार पर भी बात हुई. गुरुवार को ही राहुल गांधी और सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के सांसदों ने संसद में बैठक की थी और दूसरे विपक्षी दलों के नेताओं के साथ कर्नाटक और गोवा के सियासी उठापटक पर गहन चर्चा की थी.

ऐसा है दोनों राज्यों का गणित
राजस्थानः 200 सीटों वाली राजस्थान विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 101 है. राजस्थान के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 100, बीजेपी को 73 सीटें मिलीं. राज्य में बीएसपी को छह सीटों पर जीत मिली है. कांग्रेस ने करीब एक दर्जन निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनायी है.
मध्य प्रदेश का गणित
230 सीटों वाले मध्य प्रदेश विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 116 हैं. मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 114 जबकि बीजेपी को 109 सीटें मिलीं. कांग्रेस को बीएसपी के एक और चार निर्दलीय विधायकों का समर्थन है. मध्य प्रदेश में भी कर्नाटक की तरह ही मामला बेहद नजदीक का है. एक दो विधायकों के इधर-उधर जाने से कमलनाथ सरकार संकट में आ जाएगी.

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