काटजू के दावे पर पूर्व पीएम मनमोहन ने टिप्पणी से किया इनकार
नयी दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू के इस दावे पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया. काटजू का दावा है कि पूर्व प्रधान न्यायाधीशों ने संप्रग एक सरकार के समय में भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे तमिलनाडु के एक न्यायाधीश को बनाए रखने के लिए अनुचित […]
नयी दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू के इस दावे पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया. काटजू का दावा है कि पूर्व प्रधान न्यायाधीशों ने संप्रग एक सरकार के समय में भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे तमिलनाडु के एक न्यायाधीश को बनाए रखने के लिए अनुचित समझौते किये.
मनमोहन सिंह ने कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ नहीं कहना है क्योंकि पूर्व विधि मंत्री हंसराज भारद्वाज इस मुददे पर पहले ही स्पष्टीकरण दे चुके हैं. इससे पहले भारद्वाज ने कहा कि न्यायाधीश को कोई अनुचित मदद नहीं दी गई क्योंकि उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था. उन्होंने कहा, जहां तक गठबंधन सरकार पर राजनीतिक दबाव की बात है तो न्यायाधीशों की नियुक्ति पर (घटक दलों की ओर से) हमेशा दबाव रहा जिसके सामने मैं कभी नहीं झुका. उधर, पूर्व प्रधानमंत्री के करीबी सहयोगियों ने काटजू के दावे को खारिज करते हुए कहा कि सिंह के विदेशी दौरे पर जाते या विदेशी दौरे से आते वक्त हवाई अड्डे पर कभी किसी ने उनसे बात करने की कोशिश नहीं की.
उन्होंने कहा कि वास्तव में हवाई अड्डे पर इस तरह की बैठक की कोई गुंजाइश नहीं थी क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री अपनी कार से विमान एयर इंडिया वन के बिल्कुल सामने उतरते थे. भारद्वाज ने कहा कि रिकार्ड साबित करेंगे कि संप्रग एक सरकार के दौरान विधि मंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल में न्यायपालिका की पूरी तरह से सुरक्षा की गई और जो नियुक्तियां की गईं वे उत्कृष्ट थीं.
उन्होंने इस बात की खारिज किया कि सरकार पर इस मुददे पर दबाव था. उन्होंने कहा, मुझ पर दबाव डालने का कोई सवाल नहीं है. हां, राज्यमंत्री सहित 18 सांसद आए थे. उन्होंने कहा कि इस व्यक्ति के साथ अन्याय हो रहा है जो अनुसूचित जाति का है और हमारे लोग इससे बहुत नाराज हैं. मैंने कहा कि मैं इस पर फैसला नहीं ले सकता ह्रं, इस पर प्रधान न्यायाधीश फैसला करेंगे. भारद्वाज ने कहा कि सांसद अतिरिक्त न्यायाधीश की स्थायी न्यायाधीश के रुप में पदोन्नति चाहते थे.
उन्होंने कहा, उनके नजरिये प्रधान न्यायाधीश को भेज दिये गये थे और उन्होंने उन्हें (इस न्यायाधीश को) सीधे (स्थायी न्यायाधीश के तौर पर) स्थायी नहीं करने का फैसला किया. उन्होंने कहा कि वह विवेकपूर्ण जांच करेंगे और इसके बाद फैसला किया जाएगा.