नयी दिल्ली: पर्यावरण संबंधी नवीन बदलावों और चुनौतियों को देखते हुये इस क्षेत्र में कई नई अवधारणाओं का जन्म हुआ है. ऐसा इसलिये ताकि इन चुनौतियों से निपटने के लिये कुशल पेशेवरों की तलाश की जा सके. इस क्षेत्र में जीआईएस या जियोमेटिक्स नयी वैज्ञानिक अवधारणा है.
इसका इस्तेमाल जियोग्राफिकल इंफॉर्मेशन साइंस या जियोस्पेशल इंफॉर्मेशन स्टडीज में होता है. अकादमिक रूप से ये जियोइंफॉर्मेटिक्स विषय की एक शाखा है. इस विषय के सिद्धांतों को आधार बनाकर तैयार की गयी तकनीकों को जियोस्पेशल टेक्नोलॉजी कहा जाता है. इस तकनीक की मदद से सभी तरह की भौगोलिक सूचनाओं को इकट्ठा करके उनका संग्रहण, विश्लेषण और प्रबंधन किया जा सकता है. इस कार्य में जियोग्राफिक इंफॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस), ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) और रिमोट सेंसिंग का प्रयोग किया जाता है.
प्रारंभिक अवस्था में है जियोमेटिक्स
भारत में जियोमेटिक्स का क्षेत्र अभी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है, लेकिन एक उद्योग के रूप में यह तेजी से विस्तार कर रहा है. इसको अपने कामकाज के लिए बड़े पैमाने पर स्पेशल डाटा की जरूरत होती है. मगर शुरुआती दौर में होने की वजह से इस उद्योग में कुशल पेशेवरों की कमी बनी हुई है. इस कारण यहां रोजगार और तरक्की की दृष्टि से काफी संभावनाएं हैं. इसलिये यहां नयी करियर संभावनाओं का सृजन हो रहा है.
क्या है इस तकनीक का लाभ
जियोइंफॉर्मेटिक्स शब्द जियोग्राफी और इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से मिलकर बना है. इस तकनीक का लाभ परिवहन, रक्षा, विनिर्माण और संचार सहित सैकड़ों क्षेत्रों में लिया जा रहा है. अर्बन प्लानिंग, लैंड यूज मैनेजमेंट, इन-कार नेविगेशन सिस्टम, वर्चुअल ग्लोब, पब्लिक हेल्थ, इंवायरन्मेंटल मॉडलिंग एंड एनालिसिस, मिलिट्री, ट्रांसपोर्ट नेटवर्क प्लानिंग एंड मैनेजमेंट, एग्रीकल्चर, मीटिअरोलॉजी, ओशियनोग्राफी एंड एटमॉस्फेयर मॉडलिंग, बिजनेस लोकेशन प्लानिंग, आर्किटेक्चर, आर्कियोलॉजिकल रिकंस्ट्रक्शन, टेलीकम्यूनिकेशंस, क्रिमिनोलॉजी एंड क्राइम सिमुलेशन, एविएशन और मैरीटाइम ट्रांसपोर्ट आदि से संबंधित कार्यो में जियोइंफॉर्मेटिक्स काफी मददगार साबित हो रहा है.
जियोइंफॉर्मेटिक्स के बढ़ते महत्व का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अब यह सरकारी और निजी क्षेत्र के संगठनों में बड़े निर्णयों का आधार भी बनने लगा है. व्यावसायिक प्रतिष्ठान, पर्यावरण एजेंसियां, सरकार, शोध-शिक्षण संस्थान, सर्वेक्षण और मानचित्रीकरण संगठन अपने कामकाजी फैसलों में इस तकनीक से प्राप्त आकंड़ों को वरीयता देते हैं. कई सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों ने अपने दैनिक कार्यो का प्रबंधन करने के लिए भी स्पेशल डाटा का उपयोग शुरू कर दिया है.
संभावनाएं: जियोस्पेशल टेक्नोलॉजी में कई तरह के रोजगार उपलब्ध हैं. साथ ही नए-नए अवसर भी इस क्षेत्र में पैदा हो रहे हैं. एनालिस्ट, काटरेग्राफर, सर्वेयर, प्लानर, एरियल फोटोग्राफर और मैपिंग टेक्निशियन आदि रोजगार के कुछ प्रमुख विकल्प हैं, जिन्हें जियोस्पेशल टेक्नोलॉजी की पढ़ाई कर रहे छात्र चुन सकते हैं.
योग्यता: जियोइंफॉर्मेटिक्स एक खास क्षेत्र है, जो विषय की बेहतर समझ और गहरी जानकारी की अपेक्षा रखता है. इस क्षेत्र में बतौर छात्र प्रवेश करने के लिए विज्ञान पृष्ठभूमि का होना जरूरी है. जियोग्राफी, जियोलॉजी, एग्रीकल्चर, इंजीनियरिंग, आईटी और कंप्यूटर साइंस में से किसी एक विषय में बैचलर डिग्री प्राप्त करने वाले छात्र जियोइंफॉर्मेटिक्स एंड रिमोट सेंसिंग विषय के एमएससी या एमटेक पाठय़क्रम में दाखिला ले सकते हैं.
संबंधित संस्थान
- इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ रिमोट सेंसिंग, देहरादून
- इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, खड़गपुर, कानपुर और रुड़की
- बिरला इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रांची, कोलकाता, जयपुर
- नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी, हैदराबाद
- जवाहरलाल नेहरू टेक्निकल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद
- सिंबायोसिस इंस्टीटय़ूट ऑफ जियोइंफॉर्मेटिक्स