नयी दिल्ली : मार्कंडेय काटजू द्वारा भ्रष्ट जज को यूपीए सरकार द्वारा बचाये जाने के आरोपों के बाद राजनीति तेज हो गयी है. आज संसद में चर्चा के दौरान कानून मंत्री रविशंकर ने भी उनके आरोपों की पुष्टि कर दी. मंत्री ने कहा कि जून 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ऑफिस ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से उस जज के नाम पर विचार करने के लिए कहा था. जब इस अनुरोध को ठुकरा दिया गया था, तो कानून मंत्रालय ने इस मामले में एक और नोट भेजा था.
गौरतलब है कि काटजू के आरोपों के बाद एआईएडीएमके के सदस्यों ने बहुत हंगामा किया. आज दूसरे दिन भी जब इस मुद्दे को लेकर हंगामा जारी रहा, तो मंत्री रविशंकर ने बताया कि यूपीए के शासन काल में कॉलेजियम ने उस जज के एक्सटेंशन देने की सिफारिश की थी. एआईएडीएमके सदस्य कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के जवाब से संतुष्ट नहीं हुए और इस मुद्दे को लेकर लोकसभा की कार्यवाही शून्यकाल में दो बार स्थगित करनी पड़ी.
इस मुद्दे को लेकर राज्यसभा में भी कार्यवाही बाधित हुई. सदन की बैठक सुबह शुरु होने पर अन्नाद्रमुक और द्रमुक सदस्य इस मुद्दे पर एक दूसरे से उलझते नजर आए जिससे कुछ देर के लिए कार्यवाही स्थगित कर दी गयी.लोकसभा में कानून मंत्री की ओर से इस मुद्दे पर बयान देने की अन्नाद्रमुक सदस्यों की मांग पर प्रसाद ने कहा कि वर्ष 2003 में कोलेजियम ने कुछ आपत्तियां जतायी थीं और कुछ सवाल किए थे तथा इसके बाद निर्णय किया गया कि संबंधित जज के मामले को नहीं लिया जाएगा.
प्रसाद ने कहा , लेकिन बाद में संप्रग शासन के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से स्पष्टीकरण मांगा गया कि संबंधित जज के बारे में सिफारिश क्यों नहीं की जानी चाहिए. कोलेजियम ने फिर से कहा कि उनके नाम की सिफारिश होनी ही नहीं चाहिए.
बाद में विधि मंत्रालय के न्याय विभाग ने कोलेजियम को एक नोट लिखा जिसके बाद उसने कहा कि कुछ विस्तार के लिए जज के मामले पर विचार किया जा सकता है.