न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और इसके राजनीतिकरण पर जस्टिस मार्कंडेय काटजू के दावे पर सरकार ने चुप्पी तोड़ी है. मंगलवार को विधि व न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार जस्टिस काटजू के उठाये मुद्दों पर जतायी जा रही चिंता से वाकिफ है. इसके लिए राष्ट्रीय आयोग बनाने की आवश्यकता है. इस बीच जस्टिस काटजू ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश आरसी लाहोटी से छह सवाल पूछे हैं. वहीं, जस्टिस लाहोटी ने कहा कि मैंने कुछ गलत नहीं किया है.
नयी दिल्ली : न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता बताते हुए विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार इसके लिए न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन पर विचार कर रही है. मद्रास हाइकोर्ट में एक न्यायाधीश की नियुक्ति के मुद्दे पर मंगलवार को लोकसभा में शून्य काल के दौरान अन्नाद्रमुक के सदस्यों के नारेबाजी के बीच उन्होंने कहा कि यह संवेदनशील मुद्दा है. इस बीच सरकार ने माना कि यूपीए शासन के दौरान सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने आरोपों से घिरे एक न्यायाधीश के सेवा विस्तार की सिफारिश की थी.
इस पर अन्नाद्रमुक सदस्य विधि मंत्री के जवाब से संतुष्ट नहीं हुए और उस ह्यकेंद्रीय द्रमुक मंत्री का नाम बताओ के नारे लगाते हुए अध्यक्ष के आसन के समक्ष आ गये. इस मुद्दे को लेकर लोकसभा की कार्यवाही शून्यकाल में दो बार स्थगित करनी पड़ी. राज्यसभा में भी कार्यवाही बाधित हुई.
* हां, थीं कुछ आपत्तियां
प्रसाद ने कहा कि वर्ष 2003 में कोलेजियम ने कुछ आपत्तियां जतायी थीं. कुछ सवाल किये थे. इसके बाद निर्णय किया गया कि संबंधित जज के मामले को नहीं लिया जायेगा. लेकिन बाद में (यूपीए शासन के दौरान) प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से स्पष्टीकरण मांगा गया कि संबंधित जज के बारे में सिफारिश क्यों नहीं की जानी चाहिए. कोलेजियम ने फिर से सिफारिश पर ना कहा. बाद में विधि मंत्रालय के न्याय विभाग ने कोलेजियम को एक नोट लिखा, जिसके बाद कहा गया कि उक्त जज के मामले पर विचार किया जा सकता है.
* कांग्रेस ने खड़े किये सवाल
प्रसाद ने कहा कि संबंधित जज उसके बाद सेवानिवृत्त हो चुके हैं. अब वह इस दुनिया में भी नहीं हैं. कोलेजियम के न्यायाधीश भी सेवानिवृत्त हो चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट ने शांति भूषण मामले में भी कहा है कि गुजरे वक्त को लौटाया नहीं जा सकता. हालांकि सदस्यों द्वारा जतायी गयी चिंता वाजिब है.
न्यायाधीशों की नियुक्ति की व्यवस्था में सुधार करने को सरकार प्रयासरत है. कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि संसद में न्यायपालिका और जजों के बारे में चर्चा नहीं हो सकती. इस पर प्रसाद ने कहा कि मैं किसी जज के आचरण पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा हूं.
* जो बोलना था, तत्कालीन विधि मंत्री बोल चुके हैं: मनमोहन
काटजू के आरोपों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार को कहा कि इस मामले में जो बोलना था, वह हंसराज भारद्वाज बोल चुके हैं, जो यूपीए-1 सरकार में विधि मंत्री थे. मेरे पास और ज्यादा कुछ बोलने के लिए नहीं है. भारद्वाज ने कहा कि एक जज की नियुक्ति को लेकर एक प्रमुख दल का दबाव था, लेकिन उन्होंने दबाव में कोई फैसला नहीं लिया, बल्कि कार्यकाल विस्तार के बारे में फैसला प्रक्रि याओं के तहत लिया.