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करगिल युद्ध : जरा याद करो कुर्बानी…

करगिल युद्ध के बीस साल हो चुके है. 1999 में अपने नापाक मंसूबे लेकर पाकिस्‍तान की सेना आतंकियों के वेश में जम्‍मू – कश्‍मीर के कारगिल में घुस आयी. देश के लिए यह मुश्किल दौर था, सीमा पर पहाड़ों की ऊंची चोटियों पर पाकिस्‍तानी सैनिकों ने कब्‍जा जमा लिया था. घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए […]

करगिल युद्ध के बीस साल हो चुके है. 1999 में अपने नापाक मंसूबे लेकर पाकिस्‍तान की सेना आतंकियों के वेश में जम्‍मू – कश्‍मीर के कारगिल में घुस आयी. देश के लिए यह मुश्किल दौर था, सीमा पर पहाड़ों की ऊंची चोटियों पर पाकिस्‍तानी सैनिकों ने कब्‍जा जमा लिया था. घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए जवानों को खासी मेहनत करनी पड़ी. इस युद्ध में देश के रणबांकुरों ने अदम्‍य साहस और वीरता का परिचय दिया. दुश्‍मनों के 3 हजार से ज्‍यादा सिपाहियों को हमारे वीर जवानों ने मार गिराया.
इस युद्ध में भारतीय सेना के 5 से ज्‍यादा जवान भी शहीद हुए, जबकि 13 सौ से अधिक घायल हुए.देश उन रणबांकुरों का हमेशा ऋणी रहेगा, जिनके शौर्य और बलिदान ने दुश्‍मनों के छक्‍के छुड़ा दिये, उन्‍हें भागने पर विवश कर दिया. आज हम उन्‍हीं जवानों की वीरता की चर्चा कर रहे हैं, जिन्‍होंने अपनी जान देकर देश को दुश्‍मनों के आगे झुकने नहीं दिया.
कैप्‍टन अनुज नायर, जाट रेजीमेंट
कैप्‍टन अनुज नायर भारतीय सेना की जाट रेजीमेंट की 17वीं बटालियन के सैन्‍य अधिकारी थे. जो टाइगर हिल पर दुश्‍मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए. उनकी कंपनी ने दुश्‍मनों के चार बंकरों का पता लगाया. नौ पाकिस्‍तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. तीन मशीन गन बंकर को भी तबाह कर दिया. अपने अदम्‍य साहस के लिए उन्‍हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्‍मानित किया गया.
कैप्‍टन विक्रम बत्रा, 13वीं जम्‍मू एवं कश्‍मीर राइफल्‍स
13वीं जम्‍मू एवं कश्‍मीर राइफल्‍स के कैप्‍टन विक्रम बत्रा ने तोलोलिंग रिज पर अदम्य वीरता दिखाते हुए दुश्‍मनों के 5 सैनिकों को मार गिराया. अपने जख्‍मों की परवाह किए बगैर उन्‍होंने कई दुश्‍मनों को ढेर कर दिया. 26 जुलाई, 1999 को वो शहीद हो गए. जिस चोटी पर वह शहीद हुए थे, उसे आज बत्रा टॉप के नाम से जाना जाता है.
कैप्‍टन एन केंगुरुस, राजपूताना राइफल्‍स
कैप्‍टन एन केंगुरुस द्रास सेक्‍टर में लोन हिल पर संघर्ष करते शहीद हो गए. उन्‍हें बेमिसाल बहादुरी के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्‍मानित किया गया. लगभग 16 हजार फुट की ऊंचाई पर 10 डिग्री से भी नीचे तापमान पर डन्‍होंने खाली पांव पहाड़ी क्षेत्र की चढ़ाई की. ऊपर चढ़ते हुए दुश्‍मनों के कइ ठिकानों को रॉकेट लॉन्‍चर से उन्‍होंने तबाह किया.
मेजर पद्मपाणि आचार्य, राजपूताना रायफल्‍स
मेजर पद्मपाणि आचार्य कारगिल युद्ध के दौरान 28 जून, 1999 को शहीद हो गए थे. जंग के मैदान में अदम्‍य साहस और वीरता के कारण उन्‍हें महावीर चक्र से सम्‍मानित किया गया.
मेजर विवेक गुप्‍ता, राजपुताना राइफल्‍स
भारतीय सेना की राजपुताना राइफल्‍स की दूसरी बटालियन के मेजर विवेक गुप्‍ता कारगिल युद्ध के दौरान 12 जून, 1999 को शहीद हो गए. लेकिन अपनी शहादत से पहले उन्‍होंने द्रास सेक्‍टर में दो महत्‍वपूर्ण चौकियों पर कब्‍जा कर लिया था. युद्ध क्षेत्र में उनके अदम्‍य साहस को देखते हुए उन्‍हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्‍मानित किया गया.
लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय, गोरखा राइफल्‍स
लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय भी करगिल युद्ध के असली हीरो थे. उनके अदम्‍य साहस के कारण ही भारत बटालिक सेक्‍टर से घुसपैठियों को खदेड़ने में सफल रहा. उनके कुशल नेतृत्‍व के कारण ही जौबार टॉप और खलुबार पर कब्‍जा जमाया जा सका है. उनकी अदम्‍य वीरता के कारण उन्‍हें परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया है.
करगिल युद्ध देश के वीर सपूतों की विजय गाथा है. यह देश के वीरों की ऐसी गाथाहै जिसे आने वाला समय कभी नहीं भूल पाएगा. ये रणबांकुरे देश के आगे अपनी जान की भी परवाह परवाह नहीं की. भारत के उन सच्‍चे सपूतो आज पूरी दुनिया शत शत नमन कर रही है.

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