मदरसों और गुरुकुल में शिक्षा का नियमन करने की याचिका खारिज

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने मदरसों और गुरुकुल में दी जाने वाली शिक्षा का नियमन करने की मांग करने वाली एक याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि ये व्यवासायिक या कोचिंग कक्षाओं जैसे ही हैं और कोई भी छात्र इसे कभी भी छोड़ सकता है. गौरतलब है कि याचिका में दावा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 29, 2019 8:02 PM

नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने मदरसों और गुरुकुल में दी जाने वाली शिक्षा का नियमन करने की मांग करने वाली एक याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि ये व्यवासायिक या कोचिंग कक्षाओं जैसे ही हैं और कोई भी छात्र इसे कभी भी छोड़ सकता है.

गौरतलब है कि याचिका में दावा किया गया था कि इन संस्थानों (मदरसों) में अकादमिक पाठ्यक्रम अब भी 18वीं सदी के हैं, जहां विषय के तौर पर सिर्फ उर्दू और फारसी की पढ़ाई होती है. याचिका में आरोप लगाया गया था कि इससे मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों के रोजगार की संभावना बुरी तरह से प्रभावित होती है. मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल एवं न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने कहा, ये ट्यूशन या कोचिंग कक्षाओं की तरह ही हैं. ड्रॉइंग की भी कक्षाएं हैं और भी कई सारी व्यावसायिक कक्षाएं हैं. वे कुछ न कुछ शिक्षा दे रहे हैं. इसे लीजिए या नहीं लीजिए. अदालत ने कहा कि इन संस्थानों का नियमन करने वाली कोई भी नीति सरकार को बनानी होगी, जो इस पर फैसला ले सकती है और इस संबंध में दिशानिर्देश देने की अदालत के पास कोई वजह नहीं है.

पीठ ने कहा, इस तरह हम रिट याचिका पर सुनवाई करने की कोई वजह नहीं पाते हैं और सरकार को इस संबंध में नीति बनाने के लिए कोई निर्देश नहीं देना चाहते हैं. अदालत ने पश्चिम बंगाल से कांग्रेस विधायक अखरूज्जमान और राज्य से एक आरटीआई कार्यकर्ता सुनील सरावगी की याचिका खारिज करते हुए यह कहा. अधिवक्ता विधान व्यास के जरिये दायर याचिका में यह भी कहा गया था कि इस तरह के संस्थानों में बच्चों के पढ़ने से युवा भारत का एक हिस्सा आखिरकार राष्ट्र निर्माण में योगदान नहीं दे पा रहा है. याचिका के मुताबिक सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी में ही 3,000 मदरसे हैं और इन संस्थानों में करीब 3.6 लाख छात्र तालिम हासिल कर रहे हैं. याचिका के जरिये प्राधिकारों को सभी मदरसों, मकतबों और गुरुकुल का नियमन करने के लिए निर्देश देने की मांग की गयी थी.

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