नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़ा से जानना चाहा कि विवादित स्थल पर अपना कब्जा साबित करने के लिए क्या उसके पास कोई राजस्व रिकॉर्ड और मौखिक साक्ष्य है. कोर्ट ने पाया कि निर्मोही अखाड़ा अपना दावा साबित करने के लिए मौखिक, दस्तावेजी साक्ष्यों के मामले में पूरी तरह तैयार नहीं है. इसके बाद राम लला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरन ने बहस शुरू की.
उन्होंने कहा, श्रद्धालुओं की अडिग आस्था ही साक्ष्य है कि यह जगह ही राम का जन्म स्थान है. के परासरन ने कोर्ट से कहा, ‘सदियों बाद हम यह कैसे साबित कर सकते हैं कि भगवान राम का जन्म इस स्थान पर हुआ था. उन्होंने कहा कि राम जन्मभूमि रामलला की मूर्ति का आदर्श बन चुकी है और यह हिंदुओं की उपासना का माध्यम बन चुकी है.
परासरन ने कहा कि वाल्मीकि रामायण में तीन स्थानों पर इस बात का उल्लेख है कि अयोध्या में भगवान राम का जन्म हुआ था. बहस के दौरान कोर्ट ने राम लला विराजमान के अधिवक्ता से पूछा, ‘क्या किसी धार्मिक व्यक्तित्व के जन्म के बारे में किसी अदालत में सवाल उठा है.’
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने मूल वादकारों में शामिल निर्मोही अखाड़ा की ओर से बहस कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील जैन से कहा कि चूंकि वह इस समय कब्जे के बिंदु पर हैं, इसलिए हिंदू संस्था को अपना दावा ‘साबित’ करना होगा. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.
संविधान पीठ ने कहा, ‘अब, हम कब्जे के मुद्दे पर हैं. आपको अपना कब्जा साबित करना है. यदि आपके पास अपने पक्ष में कोई राजस्व रिकॉर्ड है, तो यह आपके पक्ष में बहुत अच्छा साक्ष्य है.’ निर्मोही अखाड़ा विभिन्न आधारों पर विवादित स्थल पर देखभाल करने और मालिकाना हक का दावा कर रहा है. अखाड़ा का कहना है कि यह स्थल प्राचीन काल से ही उसके कब्जे में है और उसकी हैसियत मूर्ति के ‘संरक्षक’ की है.
पीठ ने जैन से सवाल किया, ‘राजस्व रिकॉर्ड के अलावा आपके पास और क्या साक्ष्य हैं और कैसे आपने ‘अभिभावक’ के अधिकार का इस्तेमाल किया.’ जैन ने इस तथ्य को साबित करने का प्रयास किया कि इस स्थल का कब्जा वापस हासिल करने के लिए हिंदू संस्था का वाद परिसीमा कानून के तहत वर्जित नहीं है.
जैन ने कहा, ‘यह वाद परिसीमा कानून, 1908 के अनुच्छेद 47 के अंतर्गत आता है. यह संपत्ति दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 के तहत मजिस्ट्रेट के कब्जे में थी. परिसीमा की अवधि मजिस्ट्रेट के अंतिम आदेश के बाद शुरू होती है. चूंकि मजिस्ट्रेट ने कोई अंतिम आदेश नहीं दिया है, इसलिए कार्रवाई की वजह जारी है, अत: परिसीमा द्वारा वर्जित होने का कोई सवाल नहीं उठता है.’
उन्होंने कहा कि हमारा वाद तो मंदिर की देखभाल के लिए संरक्षक के अधिकार की बहाली का है और इसमें प्रबंधन और मालिकाना अधिकार भी शामिल है. उन्होंने कहा कि 1950 में जब कब्जा लिया गया, तो अभिभावक का अधिकार प्रभावित हुआ और इस अधिकार को बहाल करने का अनुरोध कब्जा वापस दिलाने के दायरे में आयेगा.
जैन से कहा कि कब्जा वापल लेने के लिए परिसीमा की अवधि 12 साल है. हमसे कब्जा लेने की घटना 1950 में हुई. इस मामले में 1959 में वाद दायर किया गया और इस तरह से यह समय सीमा के भीतर है. संविधान पीठ अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीनों पक्षकारों (सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला) के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद हाइकोर्ट के सितंबर, 2010 के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई कर रही है. इस विवाद का मध्यस्थता के माध्यम से सर्वमान्य समाधान खोजने के प्रयास विफल होने के बाद संविधान पीठ ने छह अगस्त से सारी अपीलों पर सुनवाई शुरू की है.
कोर्ट को समझाया इतिहास
अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में अंतिम सुनवाई के दूसरे दिन निर्मोही अखाड़ा के वकील ने अदालत को इस मामले का इतिहास समझाया. निर्मोही अखाड़ा की तरफ से कहा गया कि किसी भी आदेश के खिलाफ मुकदमा कभी भी दाखिल हो सकता है. इसमें सूट दाखिल करने के लिए टाइम लिमिटेशन की जरूरत नहीं है. अखाड़ा ने कहा कि वह विवादित भूमि पर स्वामित्व (ओनरशिप) और कब्जे (पजेशन) की मांग कर रहे हैं. अखाड़ा ने कहा कि ओनरशिप का मतलब मालिकाना हक नहीं, बल्कि कब्जे से है. इसलिए उन्हें राम जन्मभूमि पर कब्जा दिया जाये.