लोकसभा में जब सुषमा व मनमोहन ने शायरी से साधा था एक दूसरे पर निशाना

नयी दिल्ली : पंद्रहवीं लोकसभा के दौरान सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा के बीच अक्सर वाकयुद्ध होता रहता था, लेकिन उसी दौरान सुषमा स्वराज और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच हुई शेरो-शायरी अब भी लोग याद करते हैं. सुषमा उस समय नेता प्रतिपक्ष थीं और कई यादगार उदाहरण हैं जिनमें दोनों नेताओं ने शेरो-शायरी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 7, 2019 7:15 PM

नयी दिल्ली : पंद्रहवीं लोकसभा के दौरान सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा के बीच अक्सर वाकयुद्ध होता रहता था, लेकिन उसी दौरान सुषमा स्वराज और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच हुई शेरो-शायरी अब भी लोग याद करते हैं.

सुषमा उस समय नेता प्रतिपक्ष थीं और कई यादगार उदाहरण हैं जिनमें दोनों नेताओं ने शेरो-शायरी के जरिए एक दूसरे पर निशाना साधा. पंद्रहवीं लोकसभा में ही एक बहस के दौरान सिंह ने भाजपा पर निशाना साधते हुए मिर्जा गालिब का मशहूर शेर पढ़ा, हम को उनसे वफा की है उम्मीद, जो नहीं जानते वफा क्या है.

इसके जवाब में सुषमा स्वराज ने कहा कि अगर शेर का जवाब दूसरे शेर से नहीं दिया जाए तो ऋण बाकी रह जाएगा. इसके बाद उन्होंने बशीर बद्र की मशहूर रचना पढ़ी, कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता. इसके बाद सुषमा ने दूसरा शेर भी पढ़ा, तुम्हें वफा याद नहीं, हमें जफा याद नहीं, जिंदगी और मौत के दो ही तराने हैं, एक तुम्हें याद नहीं, एक हमें याद नहीं.

सुषमा स्वराज के इस शेर के बाद सदन में मौजूद सदस्य अपनी हंसी नहीं रोक पाए थे. इसी तरह 2011 में भी दोनों नेता आमने सामने थे. सिंह ने इकबाल के एक शेर को उद्धृत किया था, माना कि तेरे दीद के काबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक देख, मेरा इंतजार देख.

इस पर सुषमा ने कहा था, ना इधर-उधर की तू बात कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा, हमें रहज़नों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है. एक बार राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने भी उन पर निशाना साधा. इस पर सुषमा ने भी उन्हीं के अंदाज में कहा था कि वह मसखरी के अलावा कुछ नहीं कर सकते.

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