सुप्रीम कोर्ट ने LGBTQ समुदाय को समलैंगिक विवाह और गोद लेने की अनुमति देने वाली पुनर्विचार याचिका को किया खारिज

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए समलैंगिक विवाह, गोद लेना और किराये की कोख जैसे नागरिक अधिकारों की मांग के लिए दायर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है. न्यायमूर्ति एनवी रमण, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की तीन सदस्यीय पीठ ने 11 जुलाई को चैंबर में तुषार नैयर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 12, 2019 5:30 PM

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए समलैंगिक विवाह, गोद लेना और किराये की कोख जैसे नागरिक अधिकारों की मांग के लिए दायर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है. न्यायमूर्ति एनवी रमण, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की तीन सदस्यीय पीठ ने 11 जुलाई को चैंबर में तुषार नैयर की पुनर्विचार याचिका विचार के बाद खारिज की. इस याचिका में एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिये समलैंगिक विवाह, गोद लेना और किराये की कोख जैसे नागरिक अधिकार प्रदान करने का अनुरोध किया गया था.

इसे भी देखें : भारत में LGBT समुदाय के अधिकारों पर बहस के बीच आॅस्ट्रेलिया में आयोजित की गयीं समलैंगिक शादियां

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि यह पुनर्विचार याचिका 29 अक्टूबर, 2018 के उस आदेश के खिलाफ दायर की गयी है, जिसमें नैयर की याचिका खारिज की गयी थी. हमने पुनर्विचार याचिका पर उसकी मेरिट पर विचार किया. हमारी राय में इनमें 29 अक्टूबर के आदेश पर पुनर्विचार का कोई मामला नहीं बनता है. नतीजतन, पुनर्विचार याचिका खारिज की जाती है.

शीर्ष अदालत ने 29 अक्टूबर, 2018 को तुषार नैयर की एक नयी याचिका खारिज कर दी थी. इस याचिका में एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों से संबंधित मुद्दे उठाते हुए कहा गया था कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ पहले ही समलैंगिकता के मामले में विचार कर चुकी है. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा था कि नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत सरकार मामले में छह सितंबर, 2018 इस न्यायालय के फैसले के बाद हम इस पर विचार के इच्छुक नहीं है.

तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस फैसले में सर्वसम्मति से कहा था कि परस्पर सहमति से वयस्कों के बीच एकांत में स्थापित होने वाले अप्राकृतिक यौन संबंध अपराध नहीं है. इसके साथ ही, कोर्ट ने परस्पर सहमति से अप्राकृतिक यौन सबंध स्थापित करने को अपराध की श्रेणी में रखने संबंधी भारतीय दंड संहिता की धारा 377 का प्रावधान निरस्त कर दिया था.

Next Article

Exit mobile version