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अनुच्छेद 370 पर केंद्र के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा पूर्व अधिकारियों का एक समूह

नयी दिल्ली : पूर्व सैन्य अफसरों और सेवानिवृत्त नौकरशाहों के एक समूह ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने और इस पर राष्ट्रपति के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है. यह नयी याचिका दाखिल करने वालों में गृह मंत्रालय के जम्मू-कश्मीर पर वार्ताकारों के समूह (2010-11) […]

नयी दिल्ली : पूर्व सैन्य अफसरों और सेवानिवृत्त नौकरशाहों के एक समूह ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने और इस पर राष्ट्रपति के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है.

यह नयी याचिका दाखिल करने वालों में गृह मंत्रालय के जम्मू-कश्मीर पर वार्ताकारों के समूह (2010-11) की सदस्य रहीं प्रोफेसर राधा कुमार, जम्मू-कश्मीर कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी हिंडाल हैदर तैयबजी, एयर वाइस मार्शल (सेवानिवृत्त) कपिल काक, मेजर जनरल (सेवानिवृत) अशोक कुमार मेहता, पंजाब काडर के पूर्व आईएएस अधिकारी अमिताभ पांडे और 2011 में केंद्रीय गृह सचिव के पद से सेवानिवृत्त अधिकारी गोपाल पिल्लई शामिल हैं.

याचिका के जरिए इन लोगों ने पांच अगस्त के राष्ट्रपति के आदेश को ‘असंवैधानिक, शून्य और निष्प्रभावी’ घोषित करने की मांग की है. याचिका में कहा गया है कि इस अधिनियम की असंवैधानिकता अभूतपूर्व है. अनुच्छेद 367 में संशोधन के जरिए, अनुच्छेद 370 (3) के साथ पढ़ने की शर्त रखी गयी है, जिसमें अनुच्छेद 370 के असर को पूरी तरह समाप्त करने और जम्मू कश्मीर के संविधान को पूरी तरह निरस्त करने का प्रभाव है.

याचिका में आगे कहा गया है, ‘राज्य को विखंडित कर केंद्र शासित प्रदेश के रूप में इसका दर्जा घटाया गया है और इसके एक हिस्से लद्दाख को अलग कर एक और केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया है. इस पर जम्मू-कश्मीर के लोगों को कुछ बोलने का मौका दिये बिना पूरे राज्य को बंद रखकर पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया गया. उपरोक्त पूरी प्रक्रिया तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य के भारत में विलय की मूलभावना पर प्रहार करती है.’

पूर्व सैन्य अधिकारियों और नौकरशाहों ने जम्मू-कश्मीर (पुनर्गठन) अधिनियम 2019 को पूरी तरह से ‘असंवैधानिक, शून्य और निष्प्रभावी’ घोषित करने की मांग की है. शीर्ष न्यायालय में जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन और अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने को लेकर आधा दर्जन से अधिक याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं.

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