नयी दिल्ली : पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने और दिल्ली आने से पहले से नजदीकी संबंध थे. वह मोदी के सबसे बड़े संकटमोचक थे. मोदी जब सत्ता में थे, तब तो जेटली उनके विश्वासपात्र रहे ही, तब भी मोदी के बेहद करीब थे, जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री नहीं थे. मोदी और जेटली का दोस्ताना दो दशक पुराना था. नजदीकी की वजह गुजरात का गोधरा भी रहा. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे अरुण शौरी ने कई बार कहा कि मोदी, शाह और जेटली की तिकड़ी ही देश और भाजपा को चला रही है. जब भी मोदी राजनीतिक संकट में फंसे, विरोधियों को जवाब देने की कमान अरुण जेटली ने संभाली.
मामला राफेल डील का हो या गोधरा एनकाउंटर का. हर बार जेटली ने मोदी के विरोधियों को पस्त किया. लोकसभा चुनाव से पहले लोकसभा में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पूरे शबाब में थे. उन्होंने राफेल डील (Rafale) को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर सवालों के गोले दागे. रक्षा मंत्रालय से जुड़े सवाल का जवाब विभागीय मंत्री निर्मला सीतारमण को देना था. लेकिन, सरकार की तरफ से तर्कों और सवालों की ढाल-तलवार लेकर सामने आये अरुण जेटली.
अरुण जेटली ने राहुल गांधी के एक-एक सवाल का तर्कसंगत जवाब दिया. राफेल डील पर अरुण जेटली मोदी सरकार के लिए ‘ट्रबलशूटर’ (Troubleshooter) यानी ‘संकट मोचक’ साबित हुए. राफेल डील पर अरुण जेटली ने जितनी प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जितनी बार उन्होंने ब्लॉग पर सरकार का पक्ष रखा, उतना रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी नहीं कर पायीं. संसद से सड़क तक मोदी और मोदी सरकार की ढाल बने अरुण जेटली.
जब भी मुश्किल में रही भाजपा, याद आये अरुण जेटली
जब भी भारतीय जनता पार्टी या भाजपा सरकार मुश्किल में फंसी, सबको अरुण जेटली याद आये. बिहार में एनडीए के बीच सीटों की शेयरिंग का मुद्दा फंसा, तो अरुण जेटली संकटमोचक बने. उन्होंने रामविलास पासवान से करीब घंटे भर लंबी मीटिंग की. सीटों का पेंच सुलझ गया. हालांकि, सभी यह मान बैठे थे कि उपेंद्र कुशवाहा के बाद रामविलास पासवान भी एनडीए छोड़ सकते हैं.
अरुण जेटली ऐसे नेता थे, जिनके विपक्ष के नेताओं से भी अच्छे रिश्ते रहे. यही वजह है कि कई बार जब लोकसभा में किसी बिल पर सरकार को विपक्ष से बातचीत करने को मजबूर होना पड़ा, तो उसने जेटली को ही आगे किया. सबसे बड़ा उदाहरण है विवादित भूमि अधिग्रहण बिल. इसके बाद ललित गेट प्रकरण में आरोपों की बौछार झेल रहीं सुषमा स्वराज के बचाव में भी जेटली ने पूरी ताकत लगा दी थी.
गोधरा, एनकाउंटर केस से मोदी-शाह को उबारा
वर्ष 2002 में जब गोधरा दंगा हुआ, तो अटल बिहारी वाजपेयी समेत कई नेता गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को हटाने का फैसला कर चुके थे. अटल ने तो यहां तक कह दिया था कि राजधर्म का पालन नहीं हुआ. नरेंद्र मोदी को इसे गुजरात के सीएम पद से हटाये जाने का यह स्पष्ट संकेत माना जा रहा था. कहते हैं कि उस वक्त भी अरुण जेटली ही मोदी की ढाल बनकर खड़े हुए. उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी से मुलाकात की और अटल जी को मोदी के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के लिए मनाने का आग्रह किया. जेटली की लॉबिंग के बाद ही कुछ और नेता मोदी के साथ खड़े हुए. इसके बाद ही जेटली से मोदी की मुलाकात दोस्ती में बदल गयी, जो अंत तक बनी रही.
इसके बाद वर्ष 2005 में सोहराबुद्दीन शेख का एनकाउंटर हो गया. इसमें गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह फंसे. कहते हैं कि गोधरा में मोदी और कथित फेक एनकाउंटर में फंसे अमित शाह को डिफेंड करने के लिए अरुण जेटली हमेशा ‘एक पांव’ पर खड़े रहे. यहां बताना प्रासंगिक होगा कि वर्ष 2002 से 2013 तक अखबारों में गोधरा, सोहराबुद्दीन शेख, इशरत जहां, हरेन पांड्या व अन्य केस में मोदी और शाह को यदि किसी ने सबसे ज्यादा डिफेंड किया, तो वो थे अरुण जेटली. कानून की बारीकियों के जानकार अरुण जेटली ने सिर्फ बयान देकर ही मोदी और शाह की मदद नहीं की. उन्होंने कानूनी मदद भी की.
मोदी सरकार में सबसे प्रभावशाली
राज्यसभा में लीडर ऑफ हाउस की हैसियत से अरुण जेटली को मोदी सरकार में सबसे प्रभावशाली माना जाता था. भाजपा के कई नेता स्वीकार करते हैं कि नरेंद्र मोदी अगर अमित शाह के बाद किसी को सबसे ज्यादा करीबी और भरोसेमंद मानते हैं, तो वह हैं अरुण जेटली. सरकार के ज्यादातर फैसलों में अरुण जेटली की सीधी भूमिका होती थी.