ग्वालियर (म प्र) : भ्रूण लिंग परीक्षण करके गर्भपात करने की सहमति देने वाले ग्वालियर के तीन डॉक्टरों को न्यायालय ने तीन-तीन साल की जेल की सजा सुनायी है. न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी प्राची पटेल ने तीन डॉक्टरों- डॉ सुषमा त्रिवेदी, डॉ संध्या तिवारी और डॉ एसके श्रीवास्तव को सोमवार को यह सजा सुनायी है. पीसीपीएनडीटी एक्ट (गर्भधारण एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक- विनियमन तथा दुरुपयोग अधिनियम) के तहत ग्वालियर का यह पहला मामला है, जिसमें डॉक्टरों को जेल की सजा दी गयी है.
इन मामलों में सरकार की ओर से सहायक जिला अभियोजन अधिकारी रीतेश गोयल ने पैरवी की. गोयल ने मंगलवार को बताया कि न्यायिक मजिस्ट्रेट ने तीनों डॉक्टरों को पीसीपीएनडीटी एक्ट की धारा 23 के अपराध में दोषी पाते हुए यह सजा सुनायी है. इसके साथ ही न्यायालय ने डॉ संध्या तिवारी और डॉ एसके श्रीवास्तव को अपना क्लिनिक बिना अनुमति के संचालित करने का भी दोषी भी माना है और इसके लिए 5,000 रुपये का जुर्माना भी किया है.
डॉक्टरों की ओर से न्यायालय में यह तर्क दिया गया कि उनका यह पहला अपराध है, इसलिए केवल जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाए. इस पर अभियोजन अधिकारी गोयल ने कहा कि देश में कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए कानून बनाये गये हैं और यदि इन्हें छोड़ा गया तो इससे समाज में गलत संदेश जायेगा.
इसके बाद अदालत ने कहा कि डॉक्टर शिक्षित हैं और पढ़ाई का गलत उपयोग कर रहे थे, इसलिए दंड दिया जाना जरूरी है. इन तीनों डॉक्टरों के क्लीनिक पर 4 मई 2009 को दिल्ली की एक सामाजिक संस्था बेटी बचाओ समिति ने स्टिंग ऑपरेशन किया था. इसमें डॉ सुषमा त्रिवेदी, डॉ संध्या तिवारी और डॉ एसके श्रीवास्तव अपने क्लिनिक में लिंग परीक्षण करके कन्या भ्रूण होने पर गर्भपात के लिए सहमत हो गये थे.
इस बातचीत की वीडियो रिकॉर्डिंग ग्वालियर कलेक्टर के सामने पेश कर पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत कार्रवाई करने का आवेदन दिया था. कलेक्टर ने सीएमओएच ग्वालियर को डॉक्टरों के खिलाफ मामला दर्ज करने को कहा. इसके बाद तीनों डॉक्टरों के खिलाफ अदालत में मामला दायर किया गया.