जारी रहेगा एनआरसी पर घमासान, सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में कई संगठन
गुवाहाटी : असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के जारी होने के बाद राज्य में हंगामा शुरू हो गया है. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने शनिवार को कहा कि वह अंतिम एनआरसी से निकाले गये नामों के आंकड़े से खुश नहीं है. आसू के महासचिव लुरिनज्योति गोगोई ने कहा कि ऐसा लगता है कि […]
गुवाहाटी : असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के जारी होने के बाद राज्य में हंगामा शुरू हो गया है. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने शनिवार को कहा कि वह अंतिम एनआरसी से निकाले गये नामों के आंकड़े से खुश नहीं है. आसू के महासचिव लुरिनज्योति गोगोई ने कहा कि ऐसा लगता है कि अपडेशन प्रक्रिया में कुछ खामियां हैं. हम मानते हैं कि एनआरसी अपूर्ण है.
हम एनआरसी की खामियों को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अपील करेंगे. उधर, राज्य के वित्त मंत्री और भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हिमंता बिस्व सरमा ने कहा कि 1971 से पहले बांग्लादेश से भारत आये कई शरणार्थियों को एनआरसी सूची से बाहर निकाला गया है. कई लोगों ने आरोप लगाया है, विरासत संबंधी आंकड़ों से छेड़छाड़ की गयी है.
सरमा ने कहा कि एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया जटिल और बहुत बड़ी थी, सुप्रीम कोर्ट को सीमावर्ती जिलों में कम से कम 20 प्रतिशत और शेष असम में 10% के पुन: सत्यापन की अनुमति देनी चाहिए. नियम के मुताबिक, सूची से बाहर रहने वालों को विदेशियों के ट्रिब्यूनल में अपील करने के लिए 120 दिन और मिलेंगे.
जो लोग संतुष्ट नहीं हैं, उनको अदालतों का रुख करना होगा. वर्तमान में यह मानदंड भी है कि अधिकारियों द्वारा विदेशी होने का संदेह करने वालों या डी-वोटर (संदिग्ध मतदाता) के रूप में पहचाने जाने वाले लोगों को विदेशी ट्रिब्यूनल में जाना होता है. यदि विदेशी घोषित हो जाते हैं तो ज्यादातर अदालतों में अपील करते हैं.
- 3.29 करोड़ एप्लीकेशन जमा किये गये
- 1200 करोड़ एनआरसी तैयार करने की लागत
- 40000 सरकारी कर्मचारी लगाये गये एनआरसी अद्यतन में
- 8200 ठेका कर्मचारी बाहर से लाये गये
अब आगे क्या होगा
फॉरनर्स ट्रिब्यूनल में कर सकेंगे अपील
उसके बाद हाइकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प
1971 से पहले बांग्लादेश से भारत आये कई शरणार्थियों के भी नाम एनआरसी सूची में नहीं
1951 : स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना हुई, पहला एनआरसी किया गया तैयार
24 मार्च, 1971 : एनआरसी में शामिल होने का कट-ऑफ डेट, इसी दिन बांग्लादेश मुक्ति संग्राम छिड़ा था
1979-1985 : विदेशियों के निर्वासन के लिए छह साल चला आंदोलन, अखिल असम छात्र संघ (आसू) और अखिल असम गण संग्राम परिषद (एएजएसपी) ने किया नेतृत्व
15 अगस्त, 1985तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौजूदगी में केंद्र, राज्य, आसू और एएजीएसपी ने असम समझौते पर हस्ताक्षर किये
2009 : एनजीओ असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्ल्यू) ने सुप्रीम कोर्ट में एनआरसी के अद्यतन की अपील दायर की
2013 : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व राज्य को एनआरसी के अद्यतन की प्रक्रिया आरंभ करने का आदेश दिया
2015 : एनआरसी अपडेशन शुरू
31 दिसंबर, 2017 : एनआरसी की पहली सूची प्रकाशित, 3.29 करोड़ आवेदन में से 1.9 करोड़ लोगों को किया गया शामिल
31 जुलाई, 2018 : एनआरसी की ड्राफ्ट सूची का प्रकाशन, 3.29 करोड़ लोगों में से 2.9 करोड़ के नाम शामिल, 40.7 लाख नाम बाहर
26 जून, 2019 : अतिरिक्त सूची जारी, 01 लाख और लोगों के नाम बाहर किये गये
31 अगस्त, 2019 : एनआरसी का अंतिम प्रकाशन, 19,06,657 के नाम शामिल नहीं, कुल 3,11,21,004 लोगों को किया गया शामिल
31 दिसंबर, 2019 : अपील की अंतिम तारीख, 400 ट्रिब्यूनल्स का गठन, अपील की समय सीमा 60 से बढ़ा कर 120 दिन किया गया
विदेशी घोषित किये गये, तो क्या होगा
राज्य सरकार कई जगहों पर ऐसे डिटेंशन सेंटर बना रही है, जहां सभी कानूनी विकल्पों के बाद विदेशी घोषित लोगों को रखा जायेगा. हालांकि, ऐसे लोगों को किस तरह से भारत से बाहर किया जायेगा, इसे लेकर कोई स्पष्टता नहीं है, क्योंकि भारत के साथ बांग्लादेश का ऐसा कोई करार नहीं है, जिससे इन लोगों को वहां भेजा जा सके.
असम की जनसंख्या बढ़ी, तो हुआ शक
1951-1961 के बीच असम की जनसंख्या 36% बढ़ी. जबकि, इस दौरान देश की आबादी 22% ही बढ़ी. 1961-1971 के बीच असम की जनसंख्या में 35% की बढ़ोतरी हुई, जबकि देश की आबादी 25% ही बढ़ी. 1971-1978 असम में मतदाताओं की संख्या में 50% का इजाफा हुआ. अकेले मंगलदोई लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में ही पचास हजार अधिक मतदाता पाये गये थे.
विधायक भी हुए एनआरसी से बाहर
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के विधायक अनंत कुमार मालो का नाम प्रकाशित एनआरसी सूची में नहीं है. वहीं, बरपेटा जिले में रहने वाले मशहूर कवि व सरकारी स्कूल में शिक्षक सफीउद्दीन अहमद (36) का नाम मसौदे में शामिल नहीं है. उनके दो बेटों को भी सूची से बाहर रखा गया है. अहमद के 12 सदस्यों वाले परिवार में नौ लोगों के नाम एनआरसी में शामिल है. विडंबना यह है कि अहमद के दादाजी के पिता 1952 में विधायक चुने गये थे.
प्रदीप कुमार भुयन के कारण लागू हुआ एनआरसी, अभी जी रहे गुमनाम जिंदगी
एनआरसी को लेकर देशभर में बहस छिड़ी है, लेकिन इस मुद्दे को सबसे पहले उठाने वाले शख्स प्रदीप कुमार भुयन का नाम खबरों से गायब है. एनआरसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मुख्य याचिकाकर्ता अभिजीत शर्मा के मुताबिक, इस मुद्दे को सबसे पहले उठाने वाले शख्स का नाम प्रदीप कुमार भुयन है. अब गुवाहाटी में गुमनाम जिंदगी जी रहे प्रदीप एक सरकारी अधिकारी थे. प्रदीप बताते हैं कि एनआरसी का मसौदा बनाना आसान नहीं था. इसके लिए उन्होंने चुनाव आयोग से 1971 का डाटा लिया.
इसके बाद हर चुनाव क्षेत्र के वोटर्स और उसके चुनाव नतीजों की गहराई से पड़ताल की. इस पर होमवर्क करने के बाद उन्होंने जुलाई 2009 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. कोर्ट ने इसे मंजूर कर लिया. इसके लिए उन्होंने एनजीओ एपीडब्लयू के अध्यक्ष अभिजीत शर्मा को मनाया था. अभिजीत ने बताया कि प्रदीप ने इस पर कानूनी लड़ाई के लिए बड़ी रकम खर्च की.