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चंद्रयान-2 की सॉफ्ट लैंडिंग पर बोले पूर्व अध्यक्ष, इसरो के इतिहास में सबसे जटिल अभियान

बेंगलुरु : इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी माधवन नायर का कहना है कि संस्था के अब तक के इतिहास में चंद्रयान-2 मिशन के तहत चंद्रमा की सतह पर सात सितंबर को होने वाली प्रस्तावित सॉफ्ट-लैंडिंग सबसे जटिल अभियान है. उन्होंने कहा कि उन्हें इसकी सफलता का शत-प्रतिशत भरोसा है. करीब एक दशक पहले भारतीय अंतरिक्ष […]

बेंगलुरु : इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी माधवन नायर का कहना है कि संस्था के अब तक के इतिहास में चंद्रयान-2 मिशन के तहत चंद्रमा की सतह पर सात सितंबर को होने वाली प्रस्तावित सॉफ्ट-लैंडिंग सबसे जटिल अभियान है. उन्होंने कहा कि उन्हें इसकी सफलता का शत-प्रतिशत भरोसा है.

करीब एक दशक पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के चंद्रयान-1 मिशन का नेतृत्व करने वाले नायर ने इसरो के चंद्रयान-2 ऑर्बिटर से सोमवार को लैंडर ‘विक्रम’ के सफलतापूर्वक अलग होने को महान घटना करार देते हुए कहा कि अब आगे काम ज्यादा कठिन होने जा रहा है. उन्होंने कहा, हम चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के एक कदम और करीब पहुंच गये हैं और अब तक सब बहुत अच्छा है. मिशन के सभी चरण अच्छे से पूरे हुए हैं, गणनाएं और योजना अच्छे से आगे बढ़ी हैं और अब लैंडर दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में है. नायर ने कहा, यहां से अब काम वास्तव में मुश्किल होने जा रहा है.

लैंडर पर लगे कैमरों से इलाके का मानचित्र तैयार किया जा रहा है और ये तस्वीरें हमें भेजी जा रही हैं. इसके बाद हमें उचित स्थल का चुनाव करना होगा और यह देखना होगा कि ठीक तयशुदा जगह पर यह सतह को धीरे से छुए. उन्होंने कहा, यह बेहद, बेहद जटिल अभियान है. मुझे नहीं लगता कि किसी राष्ट्र ने ऐसा अभियान चलाया है जिसमें वास्तविक समय की तस्वीरें लेकर फिर लैंडर में लगे कंप्यूटर से स्वायत्त रूप से लैंडिंग की प्रक्रिया को लागू किया जाये. उन्होंने कहा, यह यादगार घटना होने जा रही है और हम सभी इस कार्यक्रम को लेकर उत्सुक हैं. मुझे पूरा विश्वास है कि यह 100 फीसदी सफल होगा.

चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग पर उन्होंने कहा कि यह कुछ ऐसा है जैसे विज्ञान गल्प में उड़न तश्तरी आती है और ऊपर चक्कर लगाने लगती है और इसके बाद धीरे-धीरे नीचे उतरती है. इसरो जो करने जा रहा है, यह लगभग वैसा ही घटनाक्रम है, जिसमें व्यवहारिक रूप से जमीन से कोई ‘रियल टाइम कंट्रोल’ नहीं होगा. नायर ने कहा, सिर्फ लैंडर पर लगे कैमरे ही सही जगह को देखेंगे और जब एक बार इसका मिलान हो जायेगा तो पांच रॉकेट इंजन हैं जिन्हें सटीक तरीके से नियंत्रित कर पहले गति कम की जायेगी और फिर इसे वस्तुत: तैरते हुए उस बिंदु तक ले जाया जायेगा. इसके बाद कुछ इस तरह पार्श्व आवाजाही करायी जायेगी कि यह ठीक उस जगह पहुंचे, फिर धीरे-धीरे इसे उतरने वाली जगह पर निर्देशित किया जायेगा.

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