25% डीएनए पर निर्भर है लैफ्ट हैंडी होना
नई दिल्ली : दुनिया की पूरी आबादी में एक बड़ा हिस्सा ऐसे लोगों का है, जो बायें हाथ से लिखते हैं. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी लेफ्ट हैंडी थे. लैफ्ट हैंडी लेकर समाज और विज्ञान, दोनों ही क्षेत्रों में हमेशा कौतूहल रहा है. अब ब्रितानी वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि […]
नई दिल्ली : दुनिया की पूरी आबादी में एक बड़ा हिस्सा ऐसे लोगों का है, जो बायें हाथ से लिखते हैं. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी लेफ्ट हैंडी थे. लैफ्ट हैंडी लेकर समाज और विज्ञान, दोनों ही क्षेत्रों में हमेशा कौतूहल रहा है. अब ब्रितानी वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि इसके लिए इंसानी जीन जिम्मेदार हैं.
इंसान के डीएनए में जीन एक तरह के सुझाव देता है, जो कि किसी व्यक्ति के लेफ्ट हैंडी होने से जुड़ा होता है. ये सुझाव इंसानी दिमाग की बनावट और उसके काम करने के तरीके एवं भाषाई क्षमता पर असर डालते हैं. ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि इस वजह से लेफ्ट हैंड से अपने काम करने वालों की बोलने-चालने की क्षमता भी बेहतर हो सकती है.
दुनिया के मशहूर लेफ्ट हैंडर
महात्मा गांधी, मदर टेरेसा, बराक ओबामा, अमिताभ बच्चन, आशा भोंसले बिल गेट्स, रतन टाटा, सौरभ गांगुली, सचिन तेंडुलकर, निकोल किडमैन, एंजेलीना जॉली, करण जौहर आदि.
दस में से एक व्यक्ति बायें हाथ से करता है काम
रिसर्च में पाया गया है कि दुनिया में दस में से एक व्यक्ति अपने बायें हाथ से काम करता है. जुड़वा बच्चों पर हुए अध्ययनों में सामने आया है कि इसमें मां-बाप से मिले डीएनए बड़ी भूमिका निभाते है. इस विषय पर शोध करने वालों ने यूके बायोबैंक की मदद ली, जहां पर चार लाख लोगों ने अपने जेनेटिक कोड का पूरा सिक्वेंस रिकॉर्ड करवाया है. इनमें से सिर्फ 38 हजार लोग लेफ्ट हैंडेड निकले.
इसके बाद वैज्ञानिकों ने डीएनए के उन हिस्सों की पहचान की, जो कि किसी व्यक्ति के लेफ्ट हैंडी होने में बड़ी भूमिका अदा करते हैं. इस टीम के एक शोधार्थी प्रोफेसर ग्वेनलि डोउड कहते हैं कि हमारी शोध का नतीजा बताता है कि कोई व्यक्ति किस हाथ का इस्तेमाल करता है, ये बात जीन से जुड़ी हुई है.
पूरे मामले का कनेक्शन दिमाग से
प्रोफेसर डोउड कहते हैं कि जब हम यह तय करने में सक्षम हो सके हैं कि किसी व्यक्ति के लेफ्ट हैंडी या राइट हैंडी होने से जुड़े साइटोस्केलेटन के बदलाव दिमाग में साफ नजर आते हैं. यूके बायोबैंक में मिले डीएनए के स्कैन में जानकारी मिली कि सायटोस्केलेटन दिमाग में व्हाइट मैटर की बनावट में बदलाव कर रहा है. ये बदलाव कोशिकाओं की संरचना को बनाने के लिए जिम्मेदार साइटोस्केलेटन में पाये गये.