मून मिशन-2 : चांद पर गिर कर टूटा नहीं है लैंडर ‘विक्रम’, उम्मीदें बढ़ीं

बेंगलुरु : देशवासियों के लिए सोमवार को अच्छी खबर आयी. भारतीय वैज्ञानिकों की जिद और जज्बे की वजह से मून मिशन-2 में आयी बाधा दूर होने के संकेत मिले हैं. ऐसा लग रहा है कि इसरो चांद के दक्षिणी ध्रुव के राज से दुनिया को अवगत करवाने में सफल होगा. इस उम्मीद की ठोस वजह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 10, 2019 3:18 AM

बेंगलुरु : देशवासियों के लिए सोमवार को अच्छी खबर आयी. भारतीय वैज्ञानिकों की जिद और जज्बे की वजह से मून मिशन-2 में आयी बाधा दूर होने के संकेत मिले हैं. ऐसा लग रहा है कि इसरो चांद के दक्षिणी ध्रुव के राज से दुनिया को अवगत करवाने में सफल होगा. इस उम्मीद की ठोस वजह भी है़

दरअसल, चंद्रयान- 2 मिशन से जुड़े इसरो के एक अधिकारी ने बताया कि यान के साथ गया लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह पर ही है. ऑर्बिटर के कैमरे से भेजी गयीं तस्वीरों से पता चलता है कि सतह पर हार्ड लैंडिंग के बावजूद लैंडर विक्रम दुरुस्त है, उसके टुकड़े नहीं हुए हैं.
वह केवल झुकी (तिरछा) स्थिति में है. उसमें कोई टूट-फूट नहीं हुई है. लैंडर के साथ संपर्क करने के लिए इसरो के टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (आइएसटीआरएसी) में एक टीम जुटी है. लैंडर के भीतर ‘प्रज्ञान’ नाम का रोवर भी मौजूद है.
मालूम हो कि लैंडर ‘विक्रम’ का शनिवार को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के प्रयास के अंतिम क्षणों में उस समय इसरो के कंट्रोल रूम से संपर्क टूट गया था, जब यह चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर था. संपर्क की 60 से 70% उम्मीद : इसरो के पूर्व चीफ माधवन नायर ने कहा कि विक्रम से दोबारा संपर्क साधे जाने की अब भी 60 से 70 प्रतिशत संभावना है़
इससे पहले इसरो चीफ के सिवन ने कहा था कि लैंडर से संपर्क साधने के लिए 14 दिन महत्वपूर्ण हैं. वहीं, इसरो के पूर्व वैज्ञानिक डी शशि कुमार ने कहा था कि चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर से संपर्क क्रैश लैंडिंग के कारण नहीं टूटा होगा. उन्होंने कहा था कि मुझे लगता है, ये क्रैश लैंडिंग नहीं थी, क्योंकि लैंडर और ऑर्बिटर के बीच का संपर्क चैनल अब भी चालू है.
क्यों बढ़ी उम्मीदें
‘प्रज्ञान’ रोवर भी लैंडर के भीतर है मौजूद
चंद्रयान- 2 का लैंडर विक्रम पूरा का पूरा चांद की सतह पर पड़ा है
ऑर्बिटर के कैमरे से मिली तस्वीर से पता चला है कि विक्रम टूटा नहीं है
इसरो के पूर्व चीफ ने कहा है संपर्क साधने की 60%-70% उम्मीद बची है
एंटिना सही हो तो बन सकता है काम
इसरो के एक अफसर ने कहा कि हमारी सीमाएं हैं. हमें जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में खोये एक स्पेसक्राफ्ट को ढूंढ़ने का अनुभव है, लेकिन, चांद पर उस तरह की ऑपरेशन फ्लेक्सिबिलिटी नहीं है.
विक्रम चांद पर पड़ा हुआ है और हम उसे हिला-डुला नहीं सकते. हालांकि, एंटिना सही हो, तो भी काम बन सकता है. उन्होंने कहा कि एंटिना का रुख अगर ग्राउंड स्टेशन या ऑर्बिटर की तरफ हो तो काम और आसान हो जायेगा. हमें उम्मीद है और हम प्रार्थना भी कर रहे हैं.
विक्रम में ऊर्जा की समस्या नहीं, लगे हैं तीन उपकरण
लैंडर का ऊर्जा उत्पन्न करना कोई मुद्दा नहीं है, क्योंकि इसमें चारों तरफ सौर पैनल लगे हैं. इसके भीतर बैटरियां भी लगी हैं, जो बहुत ज्यादा इस्तेमाल नहीं हुई हैं. ‘विक्रम’ में तीन उपकरण-रेडियो एनाटमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फेयर एंड एटमस्फेयर (रम्भा), चंद्राज सरफेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरीमेंट (चेस्ट) और इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सिस्मिक एक्टिविटी (इल्सा) लगे हैं.
चंद्रयान का मुरीद हुआ चीन, बोला-हिम्मत न हारें
चीन के लोगों ने भारत के मून मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों की काफी सराहना की है और उनसे उम्मीद न छोड़ने तथा ब्रह्मांड में खोज जारी रखने को कहा है. चीन में बहुत से लोगों ने टि्वटर जैसी माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ‘साइना वीबो’ पर भारतीय वैज्ञानिकों से उम्मीद नहीं छोड़ने को कहा.
ऑर्बिटर के पास सात साल के लिए ईंंधन
इसरो के लिए खुशी की बात है कि ऑर्बिटर न सिर्फ सुरक्षित है, बल्कि पूरी तरह काम भी कर रहा है. इसरो ने 2,379 किलोग्राम वजनी ऑर्बिटर का मिशन काल एक साल तय किया था, लेकिन अब यह लगभग सात साल तक काम कर सकता है. ऑर्बिटर में पर्याप्त ईंधन है.

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