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चंद्रयान-2 : किस हाल में है ”विक्रम लैंडर”, ISRO ने आज फिर Tweet कर बताया

बेंगलुरूः देश के महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान- 2 के लैंडर विक्रम से भले ही इसरो का अभी तक संपर्क स्थापित नहीं हो पाया है मगर उम्मीदें कायम है. विक्रम लैंडर से संपर्क स्थापित करने को लेकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) लगातार प्रयासरत है. इसरो लगातार चंद्रयान-2 के मिशन को लेकर अपडेट उपलब्ध करा रहा है. […]

बेंगलुरूः देश के महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान- 2 के लैंडर विक्रम से भले ही इसरो का अभी तक संपर्क स्थापित नहीं हो पाया है मगर उम्मीदें कायम है. विक्रम लैंडर से संपर्क स्थापित करने को लेकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) लगातार प्रयासरत है. इसरो लगातार चंद्रयान-2 के मिशन को लेकर अपडेट उपलब्ध करा रहा है.
लेटेस्ट अपडेट में इसरो ने कहा कि विक्रम लैंडर के लोकेशन का चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर द्वारा पता लगा लिया गया है, मगर अब तक उससे संपर्क नहीं साधा जा सका है. विक्रम लैंडर से संपर्क स्थापित करने को लेकर सभी प्रयास किए जा रहे हैं. इसरो ने ट्वीट कि लैंडर से संपर्क स्थापित करने की सारे संभव प्रयास किए जा रहे हैं.
इससे पहले इसरो प्रमुख ने कहा था कि , चांद की सतह पर मौजूद विक्रम सही सलामत है और वह क्षतिग्रस्त नहीं हुआ है. वह सतह पर एक तरफ झुका हुआ पड़ा है. बता दें कि चांद की सतह से महज 2.1 किमी दूर रहने के दौरान ही लापता विक्रम को इसरो ने 35 घंटे के अंदर ही खोज निकाला था. विक्रम लैंडर को चांद के सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी, मगर उसे हार्ड लैंडिंग का शिकार होना पड़ा.
इसरो अध्यक्ष के. सिवन ने शनिवार को कहा था कि भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी लैंडर से संपर्क साधने की 14 दिन तक कोशिश करेगी. उन्होंने रविवार को लैंडर की तस्वीर मिलने के बाद यह बात एक बार फिर दोहराई थी. ऐसा नहीं है कि केवल भारत ही चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग से चूका हो, अमेरिका और रूस जैसे देशों को भी अपने चांद अभियानों में मुश्किलों का सामना करना पड़ा था.
शुरुआत में तो चांद पर पहुंचने की सफलता दर बेहद कम थी लेकिन, जैसे-जैसे तकनीक बदलती गई इसमें बदलाव आता गया. अमेरिका अपने कुल चांद मिशन में 26 बार असफल रहा है जबकि रूस को 14 बार नाकामी हाथ लगी थी.
गौरतलब है कि चांद के साउथ पोल की सतह पर की सॉफ्ट लैंडिंग की असफल कोशिश एक छोटा झटका माना जा रहा है. इस झटके से मिली सीख के बाद इसरो को अपने भविष्य के मिशनों के लिए इस्तेमाल कर सकता है.
चंद्रयान-2 मिशन पूरी तरह असफल नहीं रहा है. इसका ऑर्बिटर अभी भी चांद की कक्षा में घूम रहा है. इस मिशन से मिली सीख इसरो को आगे के अभियानों में काम आएंगी.

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