नयी दिल्ली : सरकार गंगा नदी में प्रदूषणकारी तत्वों, नदी के स्वास्थ्य एवं पारिस्थितकी तथा मानवीय स्वास्थ्य से जुड़े आयामों का अध्ययन करने के लिए नदी के उद्गम से गंगा सागर तक ‘सूक्ष्म जीवाणु विविधता की जीआइएस मैपिंग’ करायेगी. राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी.
अधिकारी ने बताया, ‘मिशन की कार्यकारी समिति की बैठक में पारिस्थितकी सेवाओं के लिए गंगा नदी में जीवाणु विविधता की GIS मैंपिंग के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गयी. इस पर 9.33 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत आयेगी और इसे 24 महीने में पूरा किया जायेगा.’
एनएमसीजी की कार्यकारी समिति की बैठक में राष्ट्रीय पर्यावरण, इंजीनियरिंग शोध संस्थान (NEERI), नागपुर के वरिष्ठ मुख्य वैज्ञानिक डॉ अत्या कापले ने उक्त प्रस्ताव पेश किया. इसका उद्देश्य उद्गम से गंगा सागर तक गंगा नदी के बहाव क्षेत्र में सूक्ष्म जीवाणुओं से जुड़ी विविधता का मानचित्र तैयार करना है. सूत्रों ने बताया कि इस बैठक में विश्व बैंक के प्रतिनिधि भी मौजूद थे.
प्रस्ताव में कहा गया है कि गंगा नदी के कई क्षेत्रों में जीवाणुओं के संबंध में अनेक रिपोर्ट हैं, लेकिन पूरी नदी में जीवाणुओं के संबंध में कोई रिकॉर्ड नहीं है. ऐसे में जीवाणुओं के विस्तार के बारे में परिणाम आधारित GIS मैपिंग राष्ट्रीय महत्व की होगी. इसके तहत कुछ विशिष्ठ लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं, जिनमें नदी में प्रदूषणकारी तत्वों के प्रकार तथा पारिस्थितिकी से जुड़ी सेवाओं का अध्ययन करने की बात कही गयी है.
इसमें नदी के स्वास्थ्य एवं पुनर्जीवन क्षमता को परिभाषित करने एवं मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का भी आकलन किया जायेगा . इसमें कहा गया है, ‘इससे नदी गुणवत्ता मापदंडों को पुन: परिभाषित करने में मदद मिलेगी.’ इस उद्देश्य के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक के तहत एक निगरानी समिति का गठन किया जायेगा.
एनएमसीजी की ओर से गंगा नदी में जीवाणुओं की विविधता की जीआइएस (GIS) मैपिंग की पहल ऐसे समय में की जा रही है, जब नदी में जैव विविधता की कमी आने की रिपोर्ट सामने आयी है. इसमें एक महत्वपूर्ण आयाम नदी जल में मौजूद बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु की मौजूदगी का हो सकता है, जो गंदगी और बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं.
रिपोर्टों के अनुसार, गंगा में वनस्पतियों एवं जंतुओं की 2,000 प्रजातियां मौजूद हैं. इन प्रजातियों में से कई क्षेत्र विशेष में पायी जाती हैं. गंगेय डाल्फिन, घड़ियाल और मुलायम आवरण वाले कछुए इसके विशिष्ट उदाहरण हैं. पालीकीट, सीप एवं घोंघों की कई प्रजातियां, समुद्र और गंगा, दोनों में पायी जाती हैं.
हिलसा मछली रहती तो है समुद्र में, लेकिन प्रजनन के लिए गंगा में आती है. ऐसी रिपोर्ट भी सामने आयी है कि पिछले एक-दो दशकों से तिलापिया, ग्रास कॉर्प, कॉमन कॉर्प, टेरिगोप्लीक्थीस अनिसित्सी और फाइसा (हाइतिया) मेक्सिकाना-जैसी मछली एवं घोंघे की कई विदेशी प्रजातियां भी गंगा में आ गयी हैं.