नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को खत्म करने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए शनिवार को पांच न्यायधीशों की संवैधानिक पीठ का गठन किया.
पीठ की अध्यक्षता न्यायमूर्ति एन. वी. रमण करेंगे और सुनवाई एक अक्टूबर को शुरू होगी. इस संवैधानिक पीठ में न्यायमूर्ति एसके कौल, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल हैं. आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि संविधान पीठ एक अक्टूबर से मामले की सुनवाई करेगी.
एक आधिकारिक सूत्र ने बताया कि पीठ अगले माह से अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को खत्म करने की संवैधानिकता और बाद में इस पर (निरसन को लेकर) जारी राष्ट्रपति के आदेश की वैधता पर सुनवाई शुरू करेगी. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने 28 अगस्त को इस मामले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था.
जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को खत्म करने और राज्य को दो केंद्र शासित क्षेत्रों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बाटंने के केंद्र सरकार के फैसले को लेकर कई याचिकाएं दायर की गई है. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्रशासित क्षेत्र बनाने का फैसला 31 अक्टूबर से अमल में आ जाएगा.
सज्जाद लोन के नेतृत्व वाली पीपुल्स कान्फ्रेंस, नेशनल कान्फ्रेंस समेत कई अन्य ने याचिकाएं दायर की हैं. इनमें सबसे पहली याचिका अधिवक्ता एम एस शर्मा ने दायर की है. नेशनल कांफ्रेंस की ओर लोकसभा सांसद मोहम्मद अकबर लोन और सेवानिवृत्त न्यायाधीश हुसैन मसूदी ने याचिका दायर की है.
लोन जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं जबकि मसूदी जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त हुए हैं जिन्होंने 2015 में दिए फैसले में कहा था कि अनुच्छेद -370 संविधान का स्थायी प्रावधान है.
वर्ष 2010-11 में जम्मू कश्मीर के लिए गृह मंत्रालय की ओर से नियुक्त वार्ताकार समूह की सदस्य प्रोफेसर राधा कुमार, पूर्व आईएएस अधिकारी एचएल तैयबजी, गोपाल पिल्लई, शाह फैसल एवं अमिताभ पांडे, सेवानिवृत्त वाइस मार्शल कपिल काक, सेवानिवृत्त मेजर जनरल अशोक कुमार मेहता और जवाहर लाल विश्वविद्यालय छात्रसंघ की पूर्व नेता शेहला राशिद ने भी याचिकाएं दायर की हैं.
नेशनल कांफ्रेंस नेताओं में अपनी याचिका में जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद-370 के प्रावधानों को निरसन करके राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेश में बांटने को चुनौती दी है. साथ ही इस संबंध में संसद से पारित कानून और राष्ट्रपति आदेश को असंवैधानिक, अमान्य एवं निष्क्रिय करने की मांग की है.