कोर्ट के निर्णय का सम्मान किया जाएगाः अखिलेश

लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए अखिलेश यादव ने कहा सरका कोई भी निर्णय कोर्ट के आदेश की पूरी जानकारी के बाद लेगी.अब तक मैंने कोर्ट के आदेश को पूरी तरह नहीं पढा है. कोर्ट के निर्णय का सम्मान किया जाएगा. सरकार का जो दायित्व है उसे सरकार पूरा करेगी. अखिलेश […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2013 1:46 PM

लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए अखिलेश यादव ने कहा सरका

कोई भी निर्णय कोर्ट के आदेश की पूरी जानकारी के बाद लेगी.अब तक मैंने कोर्ट के आदेश को पूरी तरह नहीं पढा है. कोर्ट के निर्णय का सम्मान किया जाएगा. सरकार का जो दायित्व है उसे सरकार पूरा करेगी.

अखिलेश ने ये बातें राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा के कार्यशाला में कही उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने अपने चुनावी वादे को पूरा करने की हर संभव कोशिश की है. उन्होंने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कहा था कि उन मुसलमानों के खिलाफ केस वापस लिये जाएंगे जो निर्दोष हैं,
गौरतलब है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने आतंकवाद से जुड़े मामलों के आरोपियों से लंबित आपराधिक मुकदमे वापस लिये जाने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर रोक लगा दी है. न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति महेंद्र दयाल की खंडपीठ ने आज यह आदेश रंजना अग्निहोत्री समेत छह स्थानीय वकीलों की जनहित याचिका पर दिया. याचिका में आतंकवादी गतिविधियों के आरोपियों के खिलाफ मुकदमे वापस लिये जाने संबंधी राज्य सरकार के आदेश को निरस्त करने का आग्रह किया गया था.

अदालत ने आतंकवाद से जुडे मामलों में आरोपियों से मुकदमे वापस लेने के राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगाते हुए केंद्र और राज्य सरकार सहित सभी प्रतिवादियों को अपना जवाब दाखिल करने के लिए छह हफ्ते का समय दिया है, जिसके बाद याचीगण चार हफ्ते के भीतर अपना प्रति उत्तर दाखिल कर सकेंगे.

उत्तर प्रदेश सरकार का पक्ष रखते हुए अपर महाधिवक्ता बुलबुल गोडियाल ने याचिका के गुण दोष पर सवाल उठाते हुए कहा कि अदालत की इलाहाबाद पीठ पहले ही एक ऐसी याचिका को खारिज कर चुकी है.

उन्होंने कहा कि संबंधित मामलों में आरोपियों से मुकदमे वापस लेने के लिए केंद्र सरकार की सहमति जरूरी नहीं है. याचियों की तरफ से पैरवी करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने गोडियाल की दलीलों का विरोध किया और कहा कि केंद्रीय कानूनों के तहत दर्ज मुकदमे वापस लेने के लिए केंद्र सरकार की सहमति आवश्यक है. अदालत ने इस मामले को बड़ी पीठ को संदर्भित भी किया है.

उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से आरोपियों के मुकदमों से संबंधित सभी दस्तावेज पेश करने को कहा था, मगर सरकार की तरफ से दाखिल हलफनामे में केवल आरोपियों के नामों की सूची ही दी गयी.

अदालत ने गत पांच जून को राज्य सरकार को आरोपियांे से जुड़े मुकदमों के बारे में सम्पूर्ण दस्तावेज दाखिल करने का आदेश दिया था और सवाल किया था कि मुकदमों की वापसी के लिये केंद्र सरकार से अनुमति ली गयी है अथवा नहीं.

याचियों ने आरोपियों से लंबित मुकदमे वापस लेने संबंधी राज्य सरकार की शक्ति के कानूनी प्रावधान (दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 321) को इस आधार पर असंवैधानिक घोषित कर रद्द किये जाने का भी अनुरोध किया है कि यह देश की आंतरिक सुरक्षा, संप्रभुता तथा अखंडता को गंभीर रूप से प्रभावित करती है. याचिका में केंद्र तथा राज्य सरकार समेत लखनऊ, बाराबंकी, फैजाबाद, वाराणसी के जिलाधिकारियों आदि को भी पक्ष बनाया गया है.

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