विशेषः जात-पात के खिलाफ थे देश के दूसरे पीएम लाल बहादुर, फिर नाम में कैसे जुड़ा शास्त्री, जानिए ऐसी ही कुछ रोचक बातें
आज 2 अक्टूबर का दिन देश के लिए काफी ऐतिहासिक और गौरव का दिन है. सुखद संयोग है कि आज ही के दिन देश के दो महापुरुषों की जयंती है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और जय जवान जय किसान का नारा देने वाले देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की 116वीं जयंती है. काशी के […]
आज 2 अक्टूबर का दिन देश के लिए काफी ऐतिहासिक और गौरव का दिन है. सुखद संयोग है कि आज ही के दिन देश के दो महापुरुषों की जयंती है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और जय जवान जय किसान का नारा देने वाले देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की 116वीं जयंती है. काशी के लाल और देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अपने कार्यकाल में देश को कई संकटों से उबारा.
वह अपनी साफ-सुथरी क्षवि के लिए जाने जाते थे. कम ही राजनेता ऐसे होते हैं, जिन्हें हर वर्ग का स्नेह और सम्मान मिलता है. शास्त्री जी अपने सादगीपूर्ण जीवन और नैतिकता के चलते ही वे देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में शुमार हुए. तो आइए, आज जानते हैं सादगी कर्मठता और आदर्श राजनीति के उस चेहरे के बारे में, जो इस दौर की सियासत के लिए सीख भी है और आइना भी.
– शास्त्री जी का जन्म यूपी के चंदौली जिले के मुगलसराय में हुआ. परिवार में सबसे छोटा होने के कारण लोग प्यार से ‘नन्हे’ कहकर ही बुलाया करते थे. जब ये 18 माह के थे तभी पिता का निधन हो गया. अपने मिर्जापुर स्थित ननिहाल में रहते हुए उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की. आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें वाराणसी में चाचा के साथ रहने के लिए भेज दिया गया.
उनके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई. वह नौ जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक भारत के प्रधानमंत्री रहे. लाल बहादुर शास्त्री जी जात-पात के सख्त खिलाफ थे. उन्होंने अपने नाम के पीछे सरनेम नहीं लगाया. काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही शास्त्री जी ने अपने नाम के साथ जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हटा दिया और शास्त्री लगा लिया. इस तरह से उनके नाम में श्रीवास्तव की जगह शास्त्री जुड़ गया.
– 1964 में जब वह प्रधानमंत्री बने थे तब देश खाने की चीजें आयात करता था. उस वक्त देश उत्तरी अमेरिका पर अनाज के लिए निर्भर था. 1965 में पाकिस्तान से जंग के दौरान देश में भयंकर सूखा पड़ा. उन्होंने अपने प्रथम संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि उनकी पहली प्राथमिकता खाद्यान्न मूल्यों को बढ़ने से रोकना है. तब के हालात देखते हुए उन्होंने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की. इन्हीं हालात से उन्होंने हमें ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया.
– भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में लाल बहादुर शास्त्री पहली बार 17 साल की उम्र में जेल गए लेकिन बालिग न होने की वजह से उनको छोड़ दिया गया. इसके बाद वह सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए 1930 में ढाई साल के लिए जेल गए. 1940 और फिर 1941 से लेकर 1946 के बीच भी वह जेल में रहे है. वह कुल नौ साल वह जेल में रहे.
– आजादी के बाद वे 1951 में नई दिल्ली आ गए एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का प्रभार संभाला। वह रेल मंत्री, परिवहन एवं संचार मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, गृह मंत्री एवं नेहरू जी की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री रहे।
– बताया जाता है कि स्वतंत्रता की लड़ाई में जब वह जेल में थे तब उनकी पत्नी चुपके से उनके लिए आम छिपाकर ले आई थीं. इस पर वह नाराज हुए और पत्नी के खिलाफ ही धरना दे दिया. शास्त्री जी का तर्क था कि कैदियों को जेल के बाहर की कोई चीज खाना कानून के खिलाफ है.
– शास्त्री जी का विवाह 1928 में ललिता के साथ हुआ. जिनसे दो बेटियां और चार बेटे हुए. उन्होंने ने अपनी शादी में दहेज लेने से इंकार कर दिया था. उनके ससुर ने बहुत जोर दिया तो उन्होंने कुछ मीटर खादी का कपड़ा और चरखा दहेज लिया.
– उन्होंने 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद में अंतिम सांस ली थी. 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर करार के महज 12 घंटे बाद (11 जनवरी) लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु हो गई. कुछ लोग उनकी मृत्यु को आज भी एक रहस्य के रूप में देखते हैं.