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चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग क्यों जाएंगे ”महाबलीपुरम’, जानिए इस एतिहासिक स्थान के बारे में

नयी दिल्ली: चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग अगले हफ्ते भारत आ रहे हैं. इस दौरे में शी चिनपिंग की मुलाकात भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से होगी. दोनों के बीच एक शिखर वार्ता दक्षिण भारत में स्थित तमिलनाडू के एतिहासिक शहर महाबलीपुरम में होगी. एतिहासिक काल में महाबलीपुरम का चीन के साथ गहरा व्यापारिक संपर्क था इसलिए […]

नयी दिल्ली: चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग अगले हफ्ते भारत आ रहे हैं. इस दौरे में शी चिनपिंग की मुलाकात भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से होगी. दोनों के बीच एक शिखर वार्ता दक्षिण भारत में स्थित तमिलनाडू के एतिहासिक शहर महाबलीपुरम में होगी. एतिहासिक काल में महाबलीपुरम का चीन के साथ गहरा व्यापारिक संपर्क था इसलिए शायद इसे दोनों शीर्ष नेताओं की शिखर वार्ता के लिए चुना गया है.

आखिर महाबलीपुरम में क्यों होगी वार्ता

भारत और चीन के शीर्ष नेताओं के बीच होनी वाली ये मुलाकात राजनैतिक, कूटनीतिक और व्यापारिक कारणों से काफी अहम है. इसके लिए महाबलीपुरम को चुना जाना भी किसी खास मकसद की तरफ इशारा करता है, इसलिए इस खबर में हम महाबलीपुरम के एतिहासिकता और इसके महत्व के बारे में जानेंगे.

जानें महाबलीपुरम का गौरवशाली इतिहास

तमिलनाडू में स्थित महाबलीपुरम शहर बंंगाली की खाड़ी के किनारे बसी इसकी राजधानी चेन्नई से तकरीबन 60 किलोमीटर दूर है. इस नगर की स्थापना धार्मिक उद्देश्यों से सातवीं सदी में पल्लव वंश के ‘राजा नरसिंह देव बर्मन’ ने करवाया था. चूंकि नरसिंह देव को ‘मामल्ल’ भी कहा जाता था इसलिए महाबलीपुरम को मामल्लपुरम के नाम से भी जाना जाता है. इस नगर का एक अन्य प्राचीन नाम बाणपुर भी मिलता है.

महाबलीपुरम का चीन से है गहरा नाता

भारतीय पुरातात्विक विभाग को यहां शोध के दौरान चीन, फारस और रोम के प्राचीन सिक्के बड़ी संख्या में मिले हैं. इससे अंदाजा लगाया गया कि महाबलीपुरम नगर प्राचीन काल में प्रसिद्ध व्यापारिक बंदरगाह रहा होगा. इसके जरिए भारत का व्यापारिक संपर्क चीन सहित पश्चिमी और दक्षिण पूर्व एशिया के विभिन्न देशों से रहा होगा. महाबलीपुरम का चीन के साथ व्यापारिक संपर्कों का साक्ष्य बहुतायात में मिलता है.

राजा नरसिंहदेव वर्मन ने कराया निर्माण

सातवीं और आठवीं दी में पल्लव राजाओं ने यहां काफी बड़ी संख्या में मन्दिर और स्मारक बनवाए. यहां मिले अधिकांश मंदिर शैव परंपरा पर आधारित हैं. मंदिर और स्मारकों की बात की जाए तो यहां चट्टान से निर्मित अर्जुन की तपस्या और गंगावतरण जैसी मूर्तियां दिलचस्प हैं. समुद्र तट में काफी संख्या में शैव मंदिर बने हैं. चट्टानों का काट कर काफी संख्या में यहां गुफा मंदिर भी बनाए गए हैं. एतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि यहां के लोग बड़ी संख्या में श्याम, कंबोडिया, मलाया और इंडोनेशिया में जाकर बसे थे और उपनिवेशों की स्थापना की.

महाभारत पर आधारित शिल्पों का निर्माण

महाबलीपुरम के निकट एक पहाड़ी के ऊपर दीपस्तम्भ बनाया गया था. ये सुरक्षित समुद्री यात्राओं के लिए बनवाया गया था. यहीं पर पांच रथ और एकाश्म मंदिर भी है. कहा जाता है कि ये उन सात मंदिरों का अवशेष है जिसकी वजह से इस नगर को सप्तपगोडा भी कहा जाता है. शिल्पकला की बात की जाए तो यहां ज्यादातर द्रविड़ शैली में शैव मंदिरों का निर्माण हुआ है.

इसके अलावा महाबलीपुरम में महाभारत काल के विभिन्न प्रसंगो से जुड़ी कलाकृतियों का निर्माण किया गया है.

अगर कोई महाबलीपुरम का दौरा करना चाहता है तो यहां कई सारे साधन हैं. हवाई मार्ग से जाने के लिए निकटतम एयरपोर्ट चेन्नई एयरपोर्ट है. निकटतम रेलवे स्टेशन भी चेन्नई है. यहां उतरने के बाद बस या टैक्सी की मदद से महाबलीपुरम जा सकते हैं. यहां ठहरने के लिए काफी संख्या में होटल, रिजॉर्ट और गेस्ट हाउस हैं.

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