मुंबई : महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर देश भर में आयोजनों के माहौल के बीच पीटीआई के पूर्व पत्रकार एवं 100 साल के हो चुके वाल्टर अल्फ्रेड ने राष्ट्रपिता के हत्याकांड पर अपनी रिपोर्टिंग की यादें साझा कीं. पिछले महीने अपना 100वां जन्मदिन मनाने वाले अल्फ्रेड के जहन में उस हत्याकांड की रिपोर्टिंग का पूरा वाकया आज भी जस का तस है.
वह उस दुखद शाम नागपुर के कार्यालय में थे, जब नाथूराम गोडसे ने दिल्ली के बिड़ला भवन में गांधी जी के सीने में तीन गोलियां उतार दी थीं. अल्फ्रेड ने याद किया, “30 जनवरी, 1948 हम सभी के लिए एक रूखा दिन था. मैंने शाम तक कुछ स्टोरी फाइल की थी. शाम करीब साढ़े छह-सात बजे के बीच दफ्तर के फोन की घंटी बजी और उस वक्त मुझे महात्मा गांधी की हत्या के बारे में पता चला.” उनके सहयोगी पोंकशे ने मुंबई से उन्हें महात्मा गांधी पर हुए जानलेवा हमले की जानकारी दी जब वह सांध्यकालीन प्रार्थना के लिए जा रहे थे.
अल्फ्रेड ने बताया कि उन्होंने अपना आत्मसंयम बनाए रखा. उन्होंने कहा, “मैंने पोंकशे की तरफ से दी गयी संक्षिप्त जानकारी के आधार पर शुरुआती कॉपियां टाइप करनी शुरू कर दी. दफ्तर में उस वक्त दो चपरासी मौजूद थे जो ये कॉपियां लेकर एक अंग्रेजी समाचारपत्र समेत छह स्थानीय सब्सक्राइबरों तक पहुंचे क्योंकि उस वक्त टेलीप्रिंटर नहीं था.” अल्फ्रेड ने बताया, “यह शुद्ध एवं संक्षिप्त कॉपी लिखने के मेरे कौशल का परीक्षण था क्योंकि मुझे गांधी जी की हत्या के संबंध में आ रहे प्रत्येक फोन कॉल का जवाब देना था, नयी जानकारियों को लिखना था, छह सब्सक्राइबरों के लिए एक कॉपी बनानी थी और चपरासियों को इन कॉपियों को उन तक पहुंचाने के लिए भेजना था.’
उन्होंने कहा कि उस दिन भावुक होने का समय नहीं था. यह पूछने पर कि हत्या की खबरों ने क्या उन्हें गांधी से हुई उनकी पूर्व मुलाकातों की याद दिलाई, अल्फ्रेड ने कहा, “मेरे पास उन सारी यादों के लिए वक्त नहीं था. मेरा ध्यान सिर्फ टेलीफोन पर मिली रही जानकारियों को लिखने और उसकी कॉपी बनाने पर था. इनमें नाथूराम गोडसे की गिरफ्तारी और आरएसएस से उसके कथित संबंध के ब्यौरे भी शामिल थे.” अगले दिन अल्फ्रेड नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय गए.
उन्होंने कहा, “मैं अगले दिन नागपुर में आरएसएस के मुख्यालय गया और यह देख कर चकित था कि वहां लोगों के चेहरे पर एक तरह की खुशी थी. वे अपनी भावनाएं छिपा नहीं पा रहे थे.” उन्होंने कहा, “वे गांधी और नेहरू को पसंद नहीं करते थे लेकिन मैंने कभी यह नहीं सोचा था कि वे इस तरह से प्रतिक्रिया देंगे.” नागपुर में पीटीआई का दफ्तर उस वक्त बना ही था और टेलीप्रिंटर जैसे उपकरण लगाए जाने बाकी थे.