विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस: जानें किन तरीकों से आप रह सकतें तनाव या अवसाद से दूर

नयी दिल्ली: पूरी दुनिया हर साल 10 अक्टूबर को मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाती है. इस दिन मानसिक विकार, तनाव और अवसाद से जूझ रहे लोगों को इससे उबारने के लिए कई सारे जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. सवाल यही है कि क्या इस एक दिन कार्यक्रम आयोजित करने से इस समस्या से निपटा जा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 10, 2019 12:49 PM

नयी दिल्ली: पूरी दुनिया हर साल 10 अक्टूबर को मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाती है. इस दिन मानसिक विकार, तनाव और अवसाद से जूझ रहे लोगों को इससे उबारने के लिए कई सारे जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. सवाल यही है कि क्या इस एक दिन कार्यक्रम आयोजित करने से इस समस्या से निपटा जा सकता है. जवाब होगा नहीं. आईए, इस खबर में जानते हैं मानसिक विकार की समस्या से बचने का क्या तरीका है…..

मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर समस्या नहीं मानते लोग

मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सबसे बड़ी समस्या यही है कि आज तक इसे एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या माना ही नहीं गया. मलेरिया, डेंगु या कैंसर, जिसके लक्षण स्पष्ट दिख जाते हैं, उसकी तरह मानसिक विकार को कभी जानलेवा माना ही नहीं गया. अगर कोई कहता भी है कि वो तनाव या अवसाद का सामना कर रहा है तो समाज उसे बुजदिल या कायर जैसी उपमाओं से नवाजने लगता है. कोई समझने की कोशिश नहीं करता कि फलां आदमी कितनी बड़ी मुश्किल से जूझ रहा है.

सबसे ज्यादा युवा वर्ग होता है अवसाद का शिकार

सबसे पहले तो ये समझने की जरूरत है कि लोग मानसिक विकार की समस्या के शिकार क्यों हो जाते हैं. विशेष कर 15 से 30 आयुवर्ग के युवा. इस आयुवर्ग को सबसे ज्यादा उर्जावान और उत्पादक माना जाता है. लेकिन उम्मीदों का बोझ भी सबसे ज्यादा इन्हीं पर होता है. हर साल बोर्ड परीक्षाओं का जब परिणाम आता है तो काफी बड़ी संख्या में छात्र आत्महत्या कर लेते हैं. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं में भी सुसाइडल टेंडेंसी काफी ज्यादा होती है.

नौकरी और पढ़ाई को स्टेटस सिंबल ना बनाएं युवा

नौकरी पेशा लोग भी काफी बड़ी संख्या में आत्महत्या का रास्ता अपनाते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि समाज इस युवावर्ग पर उम्मीदों का बोझ डाल देता है. पढ़ाई हो, परिणाम हो या फिर नौकरी. सबको लोग जिंदगी में सफलता या विफलता से जोड़ देते हैं. लोग पढ़ाई और करियर को जीने मरने का सवाल बना लेते हैं.

कई बार ये चीजें सामाजिक प्रतिष्ठा का विषय बन जाती है और कुछ मामलों में तो स्टेटस सिंबल. इसलिए जब उम्मीद के मुताबिक नहीं मिलता तो लोग तनाव में आ जाते हैं. कुछ और कोशिश करने की बजाय उसी एक काम में लगे रहते हैं और उसे जीने-मरने का प्रश्न बना लेते हैं. ऐसी स्थिति में किसी का भी अवसाद में आ जाना स्वाभाविक है.

युवा स्वंय को बेकार इंसान मानना बंद कर दें

लोगों को लगने लगता है कि वे किसी काम के नहीं है.वो खुद तो ऐसा मानता ही है. उसका परिवार और आसपास के लोग भी उसे यही एहसास कराने लगते हैं. यही कारण है कि लोग अवसाद का शिकार हो जाते हैं. एक प्रकार की असुरक्षा का भावना से घिर जाते हैं और उन्हें अपनी जिंदगी खत्म कर लेना सबसे आसान लगता है.

जरूरी है कि लोग अपनी क्षमता समझें. अभिभावक अपने बच्चों को अपने सारे सपने पूरे करने का साधन ना समझें बल्कि उसे उसकी रूचि और क्षमता के हिसाब से जीने दें. वो अपनी काबिलियत के हिसाब से जो करना चाहते हैं करने दें. उनकी सफलता या असफलता को प्रतिष्ठा या जीने-मरने का प्रश्न ना बनायें.

एकाकी जीवन जीने से बचना होगा काफी फायदेमंद

अवसाद का एक बड़ा कारण लोगों का एकाकी जीवन भी है. पढ़ाई, नौकरी, रोजगार, या फिर किसी और कारण से लोग एकल परिवार में रहने लगे हैं. संयुक्त परिवार की प्रथा खत्म हो गयी है. कई लोग तो सालों तक घर से दूर किसी और शहर में अकेले रहते हैं. अविश्वास का माहौल इतना ज्यादा है कि लोग अपनी बातें किसी से साझा नहीं करते. इसकी वजह से पहले इंसान तनाव का शिकार होता है और फिर अवसाद का.

अकेलापन किसी इंसान को इतना कमजोर बना देता है कि उसे अपनी जिंदगी खत्म कर लेना आसान लगने लगता है. इसलिए जरूरी है कि लोग परिवार के साथ वक्त बितायें. कुछ करीबी दोस्त बनाएं जिनसे अपने दिल की बात कह सकें. लोगों से मिले-जुलें. सार्वजनिक समारोहों में हिस्सा लें.

मनोरंजक गतिविधियों में भाग लेने की करें कोशिश

हाल के दिनों में देखने में आया है कि लोग काम के पीछे पागल हो जाते हैं. कुछ खुद ही और कुछ लोग कंपनी के दवाब में. वे इतनी देर तक काम करते हैं कि ना तो खाने का होश रहता है और ना सोने का. काम की वजह से नींद नहीं आने की बीमारी लोगों को धीरे-धीरे चिड़चिड़ापन और फिर तनाव की ओर ले जाती है.

लंबे वक्त तक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के साथ वक्त बिताने के कारण उनमें मानवीय संवेदनाएं खत्म होने लगती हैं. इंसान ना केवल तनाव का शिकार हो जाता है बल्कि हिंसक भी हो जाता है. हाल कि दिनों में मामूली बातों पर खूनी झड़प की खबरें आम हो गयीं हैं.

इस स्थिति से निपटने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि लोग किसी मनोरंजक गतिविधियों में भाग लें. वीकेंड में दोस्तों या फिर परिवार के साथ कहीं घूमने जायें. किसी स्पोर्ट्स एक्टिविटी में भाग लें. शौक पालें, जैसे की पेंटिंग, म्यजिक या डांस. बागवानी करना भी तनावमुक्त रहने का अच्छा जरिया हो सकता है. ऐसी गतिविधियों में भाग लेकर तनावमुक्त रहा जा सकता है. नियमित रूप से ऐसा करना मानसिक विकार के खतरे से दूर रखेगा.

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