अहमदाबाद: उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश ए आर दवे ने आज कहा कि अगर वे तानाशाह होते तो भारत के हर स्कूल में पहली कक्षा से ही बच्चों को गीता पढवाते. उन्होंने कहा कि भारत को अपनी प्राचीन परंपराओं की ओर लौटना चाहिए तथा महाभारत एवं भगवद्गीता जैसे शास्त्रों को बचपन से बच्चों को पढाया जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति दवे ‘वैश्वीकरण के दौर में समसामायिक मुद्दे तथा मानवाधिकारों की चुनौतियां’ विषय पर यहां एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा, ‘यदि गुर शिष्य जैसी हमारी प्राचीन परंपराएं रही होती तो हमारे देश में ये सब समस्याएं (हिंसा एवं आतंकवाद) नहीं होता.’ उन्होंने कहा, ‘हम अपने देश में आतंकवाद देख रहे हैं. अधिकतर देश लोकतांत्रिक हैं. यदि लोकतांत्रिक देश में सभी अच्छे लोग होंगे तो वे स्वाभाविक रुप से ऐसे व्यक्ति को चुनेंगे जो अच्छे होंगे. ऐसा व्यक्ति किसी अन्य को नुकसान पहुंचाने के बारे में कभी नहीं सोचेगा.’
न्यायमूर्ति दवे ने कहा, ‘लिहाजा प्रत्येक मनुष्य में से अच्छी चीजें सामने लाने से हम हर जगह हिंसा को रोक सकते हैं. और इस मकसद के लिए हमें अपनी पौराणिक चीजों को वापस लाना होगा. इस सम्मेलन का आयोजन गुजरात लॉ सोसाइटी ने किया था. न्यायाधीश ने यह सुझाव भी दिया कि भगवद्गीता और महाभारत को पहली कक्षा से ही छात्रों को पढाना शुरु कर देना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘जो बहुत धर्मनिरपेक्ष होगा, तथाकथित धर्मनिरपेक्ष तैयार नहीं होंगे. यदि मैं भारत का तानाशाह रहा होता तो मैंने पहली ही कक्षा से गीता और महाभारत को शुरु करवा दिया होता. इसी तरह से आप जीवन जीने का तरीका सीख सकते हैं. मुझे खेद है कि यदि मुझे कोई कहे कि मैं धर्मनिरपेक्ष हूं या धर्मनिरपेक्ष नहीं हूं. लेकिन यदि कुछ अच्छा है तो हमें उसे कहीं से भी ले लेना चाहिए.’