सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन चली अयोध्या मामले की सुनवाई बुधवार को पूरी हुई. यह सुप्रीम कोर्ट के इतिहास की दूसरी सबसे लंबी सुनवाई है. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में सबसे लंबी सुनवाई 68 दिन तक 1972-73 में केशवानंद भारती केस में चली थी, जिसमें 13 जजों की बेंच ने संसद की शक्तियों पर फैसला सुनाया था.
मालूम हो कि अयोध्या भूमि विवाद मामला सुप्रीम कोर्ट में वर्ष 2010 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित था लेकिन इसके मेरिट पर सुनवाई इसी वर्ष छह अगस्त से सुनवाई शुरू हुई थी.
बताते चलें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 2010 में 2.77 एकड़ वाली विवादित जगह को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर बांटने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपील दायर की गई और यह मामला पिछले नौ वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित था.
बहरहाल, 40 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने दशकों पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला 17 नवंबर के पहले किसी भी दिन आ सकता है. मालूम हो कि चीफ जस्टिस रंजन गोगई 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं.
सुनवाई की आखिरी दिन सुप्रीम कोर्ट में ऐसा हुआ जो संभवत: पहले कभी नहीं हुआ. मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने अखिल भारतीय हिंदू महासभा द्वारा पेश किये उस नक्शे को भरी अदालत में फाड़ दिया, जिसमें जिसमें भगवान राम का सटीक जन्मस्थान होने का दावा किया गया था. धवन ने न सिर्फ इस नक्शे को मानने से इनकार कर दिया बल्कि उस नक्शे को फाड़ दिया.
चीफ जस्टिस रंजन गोगई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की संविधान पीठ के समक्ष बुधवार को सभी पक्षों की दलीलें पूरी हो गई, जिसके बाद पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
बुधवार को सुनवाई की शुरुआत में ही में चीफ जस्टिस ने साफ कर दिया था कि सुनवाई किसी भी हालत में शाम पांच बजे पूरी हो जाएगी. लेकिन निर्धारित समय से करीब एक घंटा पहले ही बहस पूरी हो गई.
इसके अलावा पीठ ने सभी पक्षों से तीन दिनों के भीतर मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर अपना-अपना लिखित पक्ष पेश करने का निर्देश दिया है. पीठ ने स्पष्ट कर दिया है कि अब कोई मौखिक बहस नहीं होगी.