नयी दिल्ली : बैंकिंग क्षेत्र की परेशानियों को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की हाल की तीखी आलोचना झेलने के बाद रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने बृहस्पतिवार को उन्हें याद दिलाया कि आरबीआई के प्रमुख के रूप में उनका दो तिहाई कार्यकाल भाजपा सराकर के दौरान ही था . वित्त मंत्री ने इस महीने की शुरूआत में न्यूयार्क में कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राजन दोनों के कार्यकाल में देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को ‘सबसे खराब दौर’ से गुंजरना पड़ा था.
राजन ने कहा कि उनके कार्यकाल में ही बैंकों में फंसे कर्ज (एनपीए) की समस्या से छुटकारा पाने के लिये काम शुरू किये गये थे लेकिन उनके रहते वह काम पूरा नहीं हो पाया था. राजन पांच सितंबर 2013 से सितंबर 2016 के दौरान आरबीआई के गवर्नर रहे. उन्होंने कहा कि आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिये देश को नई पीढ़ी के सुधारों की जरूरत है. पांच प्रतिशत जीडीपी के साथ यह कहा जा सकता है कि भारत आर्थिक नरमी में है.
राजन ने सीएनबीसी को दिये साक्षात्कार में कहा, ‘‘पिछली (कांग्रेस) सरकार में मेरा केवल आठ महीने से कुछ अधिक का कार्यकाल था. वहीं इस (भाजपा) सरकार में कार्यकाल 26 महीने रहा….” उनसे सीतारमण के न्यूयार्क में दिये गये बयान के बारे में पूछा गया था. हालांकि पूर्व गवर्नर ने तुंरत यह भी कहा कि वह इस मामले में राजनीतिक बहस में नहीं पड़ना चाहते. उन्होंने कहा, ‘‘राजनीतिक बहस में मुझे नहीं पड़ना है. वास्तविता यह है कि बैंकों की स्थिति दुरूस्त करने के कदम उठाये गये थे. यह काम अभी चल रहा है और जिसे तेजी से पूरा करने की जरूरत है. बैंकों में पूंजी डाली जा चुकी है लेकिन यह काम गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र में भी करना है जिसका काम ठप पड़ता जा रहा है.
आपको इसे दुरूस्त करने की जरूरत है. अगर आप मजबूत आर्थिक वृद्धि चाहते हैं, वित्तीय क्षेत्र में तेजी जरूरी है.”
उल्लेखनीय है कि सीतारमण ने कोलंबिया विश्वविद्यालय में राजन के बयान पर पूछे गये सवाल के जवाब में उक्त बातें कही थी. पूर्व गवर्नर ने कहा था कि पहले कार्यकाल में नरेंद्र मोदी सरकार अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर पहले से अच्छा काम नहीं कर सकी क्योंकि सरकार पूरी तरह केंद्रीकृत थी और नेतृत्व में आर्थिक वृद्धि तेज करने का कोई घोषित टिकाऊ दृष्टिकोण नहीं दिखा. उस पर वित्त मंत्री ने पलटवार करते हुए कहा था कि राजन के कार्यकाल में ही बैंक कर्ज के साथ बड़े मुद्दे आये थे.
उन्होंने कहा, ‘‘…एक विद्वान व्यक्ति के रूप में मैं राजन का सम्मान करती हूं. उन्होंने रिजर्व बैंक का कार्यकाल संभालने का चयन ऐसे समय किया था जब भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी पर थी…गवर्नर के रूप में राजन का ही कार्यकाल था जब फोन कॉल पर नेताओं के साथ साठगांठ कर कर्ज दिये जा रहे थे. उसी का नतीजा है कि भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक आजतक समस्या से बाहर आने के लिये सरकार की इक्विटी पूंजी पर आश्रित हैं.
राजन ने हालांकि कहा, ‘‘अति उत्साह के कारण समस्या के बीज 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट से पहले ही पड़ गये थे. काफी निवेश किये गये और बाद में नरमी आयी है. वे कर्ज एनपीए बन गये जिसे हमें साफ करने की जरूरत है. और हमने प्रक्रिया शुरू की.” उन्होंने कहा, ‘‘कुछ लोग हैं जो कहते हैं…हम चीजों को जारी रहने दे सकते थे. हम ऐसा नहीं कर सकते थे क्योंकि बैंक के बही खाते एनपीए से पट गये थे और उन्होंने कर्ज देना बंद कर दिया था. इसीलिए आपको फंसे कर्ज की पहचान करने और उनमें पूंजी डालने की जरूरत थी ताकि वे पटरी पर आयें.”
राजन ने कहा, ‘‘काम अभी आधा ही खत्म हुआ है.” उन्होंने कहा, ‘‘भारत को मजबूत आर्थिक वृद्धि की जरूरत है लेकिन यह पैबंद लगाकर नहीं आ सकती. इसके लिये नई पीढ़ी के सुधारों की जरूरत है. अच्छी खबर यह है कि सरकार के पास राजनीतिक शक्ति है और वह सुधारों को आगे बढ़ा सकती है. बुरी खबर यह है कि यह अबतक नहीं हुआ है.”