नयी दिल्ली: भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एशिया के सोलह प्रमुख देशों के बीच प्रस्तावित व्यापारिक समझौता रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप से पीछे हटने का फैसला किया है. भारत की इस व्यापारिक समझौते को लेकर कई मुद्दों पर चिंताएं है कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका है. इन चिंताओं में सबसे प्रमुख चीन के साथ बड़ा व्यापार घाटा है. भारत की आशंका है कि इस समझौते के तहत आयात की बढ़ोतरी होने से भारतीय उद्योगपतियों तथा किसानों को नुकसान हो सकता है.
सबसे पहले जानना जरूरी है कि आरसीईपी है यानी रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप है क्या? बता दें कि इसमें आसियान के दस सदस्य देशों के अलावा चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, भारत और न्यूजीलैंड शामिल है. इन देशों में दुनिया की पचास फीसदी आबादी रहती है और वैश्विक जीडीपी में इनका योगदान तकरीबन 30 फीसदी का है. इसलिए इन देशों के बीच होने जा रहे व्यापारिक समझौते को सबसे बड़ा ट्रेड डील कहा जा रहा है.
आईए जानते है कि इस व्यापारिक समझौते का लक्ष्य क्या है?
- रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) के जरिए कोशिश है कि इसको दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार ब्लॉक बनाया जाए जिसमें कुल 16 देश शामिल होंगे. गौरतलब है कि भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया सहित आसियान देशों के अलावा ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड साल 2012 से ही इसके बारे में वार्ता कर रहे हैं.
- इस व्यापारिक समझौते के अंतर्गत जो चर्चा की गयी उसका मुख्य बिंदु ये था कि सभी देश आयातित 90 फीसदी वस्तुओं पर आयात शुल्क घटा दें या फिर उसे खत्म कर दें. अभी वर्तमान में भारत चीन के साथ व्यापार के मामले में आयातित 80 फीसदी सामानों पर आयात शुल्क बिलकुल खत्म कर देने के पक्ष में था.
- इस व्यापारिक का एक प्रमुख बिंदु ये है कि सर्विस और ट्रेड पर परस्पर निवेश बढ़ाया जाए तथा वीजा नियमों को और आसान बनाया जाए.
भारत की प्रमुख चिंताएं क्या हैं?
- भारत की मुख्य आशंका व्यापारिक घाटे को लेकर है. भारत का वैश्विक व्यापारिक इतिहास देखें तो चीन सहित अन्य देशों से भारत पहले ही ज्यादा आयात करता आया है जबकि निर्यात की मात्रा अपेक्षाकृत काफी कम है. आशंका थी कि अगर भारत इस डील पर हस्ताक्षर करता है तो भारत में चीन से आयात काफी बढ़ जाएगा.
- इससे भारत की हितों को नुकसान पहुंचेगा. बता दें कि वित्त वर्ष-2019 में इन देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा 105 अरब डॉलर था जिसमें से 54 अरब डॉलर का घाटा अकेले चीन के साथ ही था.
- भारत में इस समझौते का काफी ज्यादा विरोध हो रहा है. यही कारण है कि सरकार ने इस डील से पीछे हटने का फैसला किया है. भारत में उद्योग और डेयरी फॉर्म्स खासतौर पर इसका विरोध कर रहे थे. आशंका है कि अगर भारत इस समझौते से सहमत हो जाता तो चीन यहां मैन्युफैक्चर्ड गुड्स और न्यूजीलैंड से डेयरी प्रोडक्ट्स की डंपिंग हो जाएगी जिसकी वजह से घरेलु हितों को काफी नुकसान पहुंचेगा.
- बैठक के बाद पीएम मोदी ने कहा कि भारत द्वारा उठाई गई चिंताओं का कोई संतोषजनक समाधान नहीं निकाला जा सका. उन्होंने कहा कि आयात शुल्क बढ़ने की स्थिति में कोई सुरक्षा की गारंटी वाली हमारी बात का भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया जा सका. इसलिए हमने इससे हटने का फैसला किया है. सदस्य देशों ने बैठक के बाद साझा प्रेस वार्ता में कहा कि हम भारत की चिंताओं पर विचार करेंगे और ऐसा समाधान पेश करने की कोशिश करेंगे जिससे भविष्य में भारत इसमें शामिल हो सके.