सरयू व तमसा नदियों के बीच है अयोध्या, आदिकाल से वर्तमान तक बदलता इसका स्वरूप, पढ़ें खास रिपोर्ट

सभ्यता और संस्कृति के व्यापक ऐतिहासिक कालक्रम को समेटे अयोध्या नगरी का हर कालखंड में विशेष महत्व रहा है. यही वजह है कि अयोध्या के आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व ही नहीं, बल्कि इसकी स्थलाकृति को भी जानने के लिए समय-समय पर सर्वेक्षण होते रहे. इनसे निकले तमाम निष्कर्षों ने लोगों की उत्सुकता एवं आकर्षण को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 10, 2019 3:59 AM

सभ्यता और संस्कृति के व्यापक ऐतिहासिक कालक्रम को समेटे अयोध्या नगरी का हर कालखंड में विशेष महत्व रहा है. यही वजह है कि अयोध्या के आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व ही नहीं, बल्कि इसकी स्थलाकृति को भी जानने के लिए समय-समय पर सर्वेक्षण होते रहे. इनसे निकले तमाम निष्कर्षों ने लोगों की उत्सुकता एवं आकर्षण को और बढ़ा दिया. आस्था के इस बड़े केंद्र पर साल भर तमाम धर्मों और संप्रदायों को माननेवाले पहुंचते हैं. अयोध्या के वर्तमान स्वरूप, पर्यटन स्थल के रूप में विशेषता, इतिहास से जुड़े तथ्यों आदि के साथ आप भी पढ़ें ये खास रिपोर्ट…

अयोध्या के क्षेत्रफल की बात करें, तो यह शहर 12 योजन

(1 योजन = 7 किलोमीटर) लंबा और तीन योजन चौड़ा है. इसके उत्तरी और दक्षिणी छोर पर सरयू आैर तमसा नदी अवस्थित हैं. इन दोनों नदियों के बीच की औसत दूरी लगभग 20 किलोमीटर है. माना जाता है कि यह शहर मछली के आकार का है, जिसका अगला सिरा सरयू नदी के घाट पर स्थित है, जिसे गोपरातरा कहते हैं और इसका पिछला सिरा पूर्व में स्थित है. इस शहर को तीन ओर से सरयू नदी ने घेर रखा है.

रामकोट
अयोध्या के मध्य भाग को कोट रामचंदर या रामकोट के नाम से जाना जाता है. इस स्थान पर असंख्य मंदिरों और मठों की निशानियां देखी जा सकती हैं. रामकोट के दक्षिणी भाग को कुबेरटीला कहते हैं. माना जाता है कि रामकोट एक किला था जिसके चारों ओर बने द्वार की रखवाली हनुमान, सुग्रीव, अंगद, नल, नली और सोखैन किया करते थे. इस किले के ठीक बाहर कीमती पत्थर और हीरे जड़े कई भव्य महल अवस्थित थे.

कुबेरटीला
कुबेरटीला के मध्य भाग को भगवान राम का जन्मस्थान माना जाता है. कुबेरटीला पश्चिम में लगभग 900 मीटर, पूर्व में लगभग 1,000 मीटर और उन्नमात्ता (बौद्ध धर्म से जुड़े खंडहर) की ओर लगभग 200 मीटर तक फैला हुआ था. माना जाता है कि जन्मस्थान के उत्तर-पश्चिम में सीता रसोई और इसके उत्तर में 40 गज की दूूरी पर भरत की माता कैकेयी का महल था. इस महल के दक्षिण में 60 गज की दूरी पर लक्ष्मण व शत्रुघ्न की माता सुमित्रा का महल था. माना जाता है कि जन्मस्थान के दक्षिण-पूर्व में सीताकूप, जिसे जनमकूप भी कहते हैं अवस्थित था.

स्वर्गद्वार
सरयू नदी के तट पर बने अनेक घाटों में सबसे महत्वपूर्ण घाट स्वर्गद्वार है. इस घाट को नागेश्वर और मुक्तिदाता के नाम से भी जाना जाता है. माना जाता है कि यहां मरनेवाले व्यक्ति विष्णुलोक जाते हैं. रामकोट से 700 मीटर उत्तर में स्थित स्वर्गद्वार सात घाटों चंद्रहरि, गुप्तहरि, चक्रहरि, विष्णुहरि, धर्महरि, बिल्वहरि और पुण्यहरि से मिलकर बना है. नदी का दूसरा प्रमुख घाट गोपरातरा है. यह घाट रामकोट से आठ किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित है. चंद्रहरि घाट के पूर्व में, 250 मीटर की दूरी पर औरंगजेब के समय की मस्जिद के अवशेष भी मौजूद हैं. घाटों के साथ ही नदी तट पर अनेक मंदिर भी हैं, जिनमें सूर्यमंदिर और नागेश्वरनाथ मंदिर सर्वाधिक महत्व के माने जाते हैं. यहां चतुर्भुज का मंदिर और विधिजी का मंदिर भी है.

कुछ प्रमुख कुंड के नाम
अयोध्या में मठों व मंदिरों के अलावा, पचास से अधिक कुंड मौजूद हैं. इनमें कुछ हैं मदंत कुंड, हनुमत कुंड, सुग्रीव कुंड, विभिषण कुंड, अग्नि कुंड, सीता कुंड, खर्जुरा कुंड, कौशल्या कुंड, सुमित्रा कुंड, कैकेयी कुंड, उर्वशी कुंड, वृहस्पति कुंड, रुक्मिणी कुंड, सागर कुंड, ब्रह्म कुंड और रीनामोचन कुंड आदि.

फाहियान द्वारा बौद्ध मठों का जिक्र

अयोध्या पारंपरिक तौर पर कौशल राज की राजधानी थी. बौद्ध काल (छठी और पांचवीं ईसा पूर्व) में श्रावस्ती साम्राज्य का मुख्य शहर बन गया था. साकेत के बारे में विस्तृत विवरण मिलता है, कहा जाता है कि गौतम बुद्ध ने यहां प्रवास किया था. पांचवी सदी में यात्रा पर आये चीनी यात्री फाहियान ने शहर में अनेक बौद्ध मठों के होने का जिक्र किया है. उसने अन्य स्मारकों, जिसमें स्तूप आदि के बारे में बताया. इन स्तूपों का निर्माण मौर्य सम्राट अशोक ने कराया था. 11वीं और 12वीं सदी में अयोध्या कन्नौज और बाद में दिल्ली सल्तनत के अधीन आ गया. वर्ष 1764 में अवध क्षेत्र पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया का कब्जा हो गया. वर्ष 1877 में अवध आगरा प्रेसीडेंसी का हिस्सा बना और बाद में आगरा एवं अवध संयुक्त प्राप्त में जुड़ा, जो कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश है.

ह्वेनसांग ने किया है अयोध्या का वर्णन

चीनी यात्री ह्वेनसांग सातवीं सदी में भारत यात्रा पर आया. उसने अपने संस्मरण में अयोध्या में 20 संघाराम और तीन हजार भिक्षुओं के रहने का जिक्र किया है. ह्वेनसांग ने अयोध्या में चार प्रमुख वनों- उत्तर कारू वन, अंजन वन, कालकाराम वन तथा कंटकी वन के बारे में भी विस्तार से बताया है. बौद्ध परंपरा में इन वनों की विशेष महिमा है. ह्वेनसांग ने अंजन वन में दो स्तूपों के बारे में भी बताया है.

गजेंद्र मंदिर में बुद्ध की शयन मुद्रा की प्रतिमा

अयोध्या में गजेंद्र मंदिर को भी बौद्ध विरासत से जोड़ा जाता है. इस मंदिर में बुद्ध की शयन की मुद्रा में एक आकर्षक प्रतिमा विराजमान है. अंगुत्तर निकाय के अनुसार कालकाराम वन में भी भगवान बुद्ध ने प्रवास एवं धम्मोपदेश किया. बाद में सम्राट अशोक ने कालकावन स्तूप बनवाया एवं स्तंभ खड़ा किया. अशोक वन का शिलापट सीता कुंड के पास आज भी मौजूद है. उत्तर कारू वन की पहचान पश्चिमी सिरे पर मानी जाती है. इस जगह पर प्राचीन बौद्ध गुफा होने का वर्णन है. कंटकी वन क्षेत्र शहर के दक्षिण-पूर्वी सिरे से जुड़ा है. भगवान बुद्ध द्वारा दिये गये उपदेश की जानकारी मिलती है.

नगर से संबंधित लिखित स्रोत

अयोध्या का उल्लेख व विवरण कई प्राचीन और मध्यकालीन पुस्तकों और दस्तावेजों में हैं, जिनसे शहर की ऐतिहासिकता और पौराणिकता की जानकारी मिलती है. ऐसे अनेक स्रोतों का संदर्भ अयोध्या मसले की सुनवाई के दौरान भी दिया गया. इनमें वाल्मिकी रामायण, स्कंद पुराण, वशिष्ठ संहिता, चीनी यात्रियों- फाहियान एवं ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत, बाबरनामा, आइन-ए-अकबरी, तुजुक-ए-जहांगीरी, ईस्ट इंडिया कंपनी के कारोबारी विलियम फिंच (1608-11) तथा जेसुइट मिशनरी जोसेफ टिफेनथेलर (1740-1770) के यात्रा वृतांत जैसे प्राचीन और मध्यकालीन पुस्तकें व विवरण शामिल हैं. दस्तावेजों में मुख्य रूप से अंग्रेज अधिकारियों की रिपोर्टें हैं, जैसे- मॉन्टगोमरी मार्टिन सर्वे रिपोर्ट (1838), ईस्ट इंडिया कंपनी का क्षेत्रों का गजेटियर (1854), एलेक्जेंडर कनिंघम की पुरातत्व सर्वेक्षण रिपोर्ट (1862, 1863, 1864, 1865) तथा पूर्वी भारत पर कारनेगी रिपोर्ट (1869).

श्री दिगंबर जैन तीर्थ क्षेत्र अयोध्या

जैन शास्त्रों के अनुसार, अयोध्या अमर भूमि है, जहां तीर्थंकर जन्म लेते रहते हैं. कुल 24 तीर्थंकरों में पांच तीर्थंकरों का जन्म अयोध्या में हुआ है. शास्त्रों के अनुसार, सौधर्म इंद्र के आदेश पर कुबेर ने इस शहर को बसाया. इस शहर के बनने के बाद भगवान ऋषभदेव के पिता-माता यहां आकर बस गये. यहां पर ऋषभ देव का गर्भ, जन्म और दीक्षा कल्याणक मनाया जाता है. आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा को भगवान ऋषभदेव ने कर्म-युग की शुरुआत की और असी (शस्त्र) मसी (भाषा लेखन कला), कृषि (खेती), विद्या (नृत्य एवं संगीत व कला), शिल्प (निर्माण) और वाणिज्य का उपदेश दिया.

भगवान ऋषभदेव का बाद दूसरे तीर्थंकर अजीतनाथ, चौथे अभिनंदन नाथ, पांचवें सुमतिनाथ और 14वें तीर्थंकर अनंतनाथ का जन्म अयोध्या में हुआ. इन पांच तीर्थंकरों के लिए 18 कल्याणक महोत्सव का आयोजन किया जाता है. जैन धर्म की दृष्टि से अयोध्या का विशेष महात्म्य है.

इतिहास : अतीत में अयोध्या संस्कृति और राजनीति के केंद्र में रहा है. मुख्यत: यह इक्ष्वाकु वंशीय राजाओं की राजधानी रहा है. मनु से लेकर 112 पीढ़ियों तक इक्ष्वाकु वंशीय राजाओं ने शासन किया. बाद में राजाओं को सूर्यवंशी और पुरुवंशी के रूप में जाना गया. अयोध्या साम्राज्य को कौशल कहा जाता था, जो बाद में दो हिस्सों में बंट गया. उत्तरी कौशल की राजधानी श्रावस्ती थी और दक्षिणी कौशल की अयोध्या बनी. भगवान महावीर के समय 16 जनपदों में अयोध्या भी एक जनपद था. सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय अयोध्या साहित्य और कला का प्रमुख केंद्र बन गया था.

अयोध्या की ऐतिहासिक स्थलाकृति

विभिन्न मत और संप्रदाय के लोगों के बीच अयोध्या आस्था का केंद्र रहा है. यही वजह है कि इस भूमि को बारीकी से जानने और जांचने के कई प्रयास हुए. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा अगस्त 2003 में विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गयी, जोकि अयोध्या की ऐतिहासिक स्थलाकृति को जानने का पांचवां विधिवत प्रयास था. अयोध्या में पहला सर्वेक्षण एई कनिंघम द्वारा 1862-63 में किया गया. उसके बाद 1889-91 में ए फुहरर द्वारा किया गया और तीसरी खुदाई 1969-70 में प्रोफेसर एके नारायण द्वारा करायी गयी. अंतत: प्रोफेसर बीबी लाल द्वारा 1975-76 में इस क्षेत्र का गहन सर्वेक्षण और अध्ययन किया गया.

अयोध्या और बौद्ध स्थल

अयोध्या में कनिंघम के सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य बौद्ध स्थलों से जुड़ी जानकारियों को इकट्ठा करना था. उन्होंने अपने सर्वेक्षण के दौरान यह भी निष्कर्ष निकाला कि अयोध्या का प्रत्यक्ष रूप से पारंपरिक जुड़ाव भगवान राम से है. उनके मुताबिक विशाखा, साकेत और अयोध्या सब एक ही हैं. फुहरर ने अपनी रिपोर्ट में पूर्ववर्ती अध्ययन को विस्तार दिया और अयोध्या में 11वीं और 12वीं सदी में राजपूतों की मौजूदगी को स्पष्ट किया.

अयोध्या की पुरातनता

वर्ष 1969-70 में प्रोफेसर एके नारायण ने निष्कर्ष निकाला कि उत्खनन स्थलों से स्पष्ट है कि अयोध्या में मानव आवास का इतिहास पांच ईसा पूर्व पुराना है. भारतीय पुरातत्व 1969-70, एक समीक्षा, पृष्ठ संख्या 40 के अनुसार, इस क्षेत्र में बौद्धों की मौजूदगी के स्पष्ट साक्ष्य मिलते हैं. उन्होंने 17वीं शताब्दी ईसा पूर्व में अयोध्या की प्राचीनता निर्धारित की.

एएसआइ रिपोर्ट में अयोध्या की ऐतिहासिकता

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की विस्तृत रिपोर्ट में पूर्व में किये गये अध्ययन के विपरीत नये तथ्यों को प्रस्तुत किया गया है. एएआइ के अनुसार इस क्षेत्र में मानव आवास का इतिहास 13वीं सदी ईसा पूर्व से जुड़ा है और यह 16वीं ईसवी तक निरंतर जारी रहता है. एएसआइ के अनुसार, विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां इतिहास के अलग-अलग कालखंडों को दर्शाती हैं. इस रिपोर्ट की सबसे खास बात है कि अवधि-4 (गुप्त कालीन) के दौरान और उसके बाद से लेकर अवधि-9 (अंतिम मुगल काल और उसके बाद) तक निरंतर आवास के संकेत स्पष्ट रूप से नहीं मिलते. संरचनात्मक बदलाव की स्थिति या तो मलबे की वजह से उत्पन्न हुई या फिर निर्माण के उद्देश्य से आसपास के क्षेत्रों से लायी गयी सामग्री भरने से हुई. पूर्ववर्ती काल के मिल्टी बर्तनों, टेराकोटा और अन्य वस्तुओं से स्पष्ट है कि संरचनात्मक बदलाव की घटनाएं अलग-अलग कालखंडों से जुड़ी हैं.

कुछ प्रमुख दर्शनीय स्थल

नागेश्वर नाथ मंदिर
यह मंदिर अयोध्या में राम की पैड़ी पर स्थित है. कहा जाता है कि इस मंदिर को भगवान राम के पुत्र कुश ने बनवाया था. विक्रमादित्य के समय तक यह मंदिर अच्छी स्थिति में था. वर्तमान के नागेश्वर नाथ मंदिर को 1750 में सफदर जंग के मंत्री नवल राय ने बनवाया था. शिवरात्रि के दिन इस मंदिर में बड़े उत्सव का आयोजन किया जाता है.

देवकाली मंदिर
नया घाट के नजदीक स्थित इस मंदिर से रामायण की अनेक कहानियां जुड़ी हुई हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम से विवाह के बाद सीताजी गिरिजा देवी की प्रतिमा साथ लेकर अयोध्या आयी थीं. गिरिजा देवी के लिए दशरथ ने अयोध्या में एक सुंदर मंदिर का निर्माण करवाया था.

राम की पैड़ी
सरयू नदी के तट पर अनेक घाट बने हुए हैं, जिन्हें राम की पैड़ी कहा जाता है. कहा जाता है कि इस नदी में स्नान करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं, इसलिए श्रद्धालु यहां आकर डुबकी लगाते हैं.

बिड़ला मंदिर
श्रीराम जानकी बिड़ला मंदिर नया है. सीता-राम का यह मंदिर अयोध्या-फैजाबाद के रास्ते में यह अयोध्या बस स्टॉप के सामने स्थित है.

हनुमानगढ़ी
यह मंदिर अयोध्या रेलवे स्टेशन से एक किलोमीटर की दूरी पर है. इस मंदिर का निर्माण विक्रमादित्य ने करवाया था, जिसे बाद में हनुमानगढ़ी के नाम से जाना जाने लगा. एेसा माना जाता है इस मंदिर में हनुमानजी का वास है और वे यहां रहकर अयोध्या की निगरानी करते हैं. मंदिर में माता अंजनी की गोद में बैठे हुए बाल हनुमान की मूर्ति स्थापित है.

कनक भवन
कनक भवन अयोध्या में राम जन्मभूमि, रामकोट के उत्तर-पूर्व में स्थित है. यह अयोध्या का सबसे प्रसिद्ध और सुंदर मंदिर है. मान्यताओं के अनुसार, श्रीराम से विवाह के तुरंत बाद कैकेयी ने सीता को यह मंदिर उपहार में दिया था.

गुलाब बारी
गुलाब बारी अयोध्या स्थित नवाब शुजाउदौला का मकबरा है. यह मकबरा चारबाग के बीचो-बीच स्थित है और इसमें विभिन्न प्रजाति के गुलाब, फव्वारे व पानी के चैनल लगे हैं. ऐसा माना जाता है कि यह मकबरा लखनऊ में एक बावली से जुड़ा हुआ है. नवाब शुजाउदौला के उत्तराधिकारियों के छुपने के लिए इस रास्ते का उपयोग होता था.

जैन श्वेतांबर मंदिर
जैन श्वेतांबर मंदिर जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) को समर्पित है. इस नये मंदिर को बड़ी मूर्ति के नाम से जाना जाता है और यह अयोध्या के रायगंज में स्थित है. इसमें ऋषभदेव की 31 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित है. अयोध्या में ही जैन तीर्थंकरों के 18 कल्याणक महोत्सव का आयोजन हुआ था. यह स्थान जैन धर्म के पांच तीर्थंकरों की जन्म स्थली है.

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