अयोध्या मामले के पक्षकार सैयद अरशद मदनी ने कहा – लड़ाई जमीन की नहीं, हक और उसूल की थी

नयी दिल्ली : अयोध्या मामले में पक्षकार प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला समझ से परे है, लेकिन हम इसका सम्मान करते हैं. मदनी ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने पर गुरुवार को जमीयत की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 13, 2019 5:25 PM

नयी दिल्ली : अयोध्या मामले में पक्षकार प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला समझ से परे है, लेकिन हम इसका सम्मान करते हैं. मदनी ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने पर गुरुवार को जमीयत की कार्य समिति की बैठक में निर्णय किया जायेगा. मौलाना मदनी ने एक साक्षात्कार में कहा कि शरीयत के लिहाज से बाबरी मस्जिद की हैसियत देश में मौजूद अन्य मस्जिदों से ज्यादा नहीं है, लेकिन लड़ाई हक की थी, जो हमने 70 साल तक लड़ी.

जमीयत प्रमुख ने कहा कि इस्लाम में शरीयत के मुताबिक सिर्फ तीन मस्जिदें अहमियत रखती हैं. उनमें मक्का की मस्जिद-अल-हराम (खाना-ए-काबा), मदीना की मस्जिद-ए-न‍बवी और यरुशलम में स्थित बैत उल मुकद्दस. उन्होंने कहा कि इनके बाद सारी मस्जिदें बराबर हैं और शरीयत के लिहाज से बाबरी मस्जिद की हैसियत भी देवबंद के किसी कोने में बनी मस्जिद से ज्यादा नहीं है.

जमीयत उलेमा हिन्द की स्थापना 1919 में हुई थी. यह भारत के मुस्लिम उलेमा (धर्मगुरुओं) का संगठन है. इस संगठन ने 1919 में खिलाफत आंदोलन को चलाने में अहम भूमिका निभायी थी और आजादी की लड़ाई में योगदान दिया था. भारत में मुसलमानों के सबसे बड़े संगठनों में इसकी गिनती होती है. मदनी का कहना था कि यह लड़ाई उसूल और हक की थी. उन्होंने कहा कि ऐसा कभी नहीं हुआ था कि किसी मस्जिद में जबरन मूर्तिया रखी गयी हों और उसे तोड़ा हो गया हो. यह बात सुप्रीम कोर्ट ने भी मानी है कि मस्जिद में मूर्तियां रखना और उसे तोड़ना गैर-कानूनी और जुर्म है.

मदनी ने कहा कि अदालत ने यह सारी बातें मानी हैं और फिर भी जमीन हिंदू पक्षकारों को दे दी. इसलिए हम कहते हैं कि यह फैसला हमारी समझ से परे है. हमने सारे सबूत अदालत में पेश किये थे और उम्मीद की थी कि अदालत सुबूतों के आधार पर फैसला देगी न कि आस्था के आधार पर, मगर अदालत ने आस्था के आधार पर फैसला दिया. उन्होंने कहा कि देश का मुसलमान भारत की न्यायिक व्यवस्था में पूरा यकीन रखते हुए इस फैसले का पूरा एहतराम (सम्मान) करता है.

प्रमुख मुस्लिम नेता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मुसलमानों ने बाबर के जमाने में मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनायी थी. यह हमारे लिए खुशी की बात है. न्यायालय द्वारा पांच एकड़ जमीन मुस्लिम पक्षकारों को देने पर उन्होंने कहा कि अगर हमें 5-10 एकड़ जमीन चाहिए होती, तो हम 70 साल तक मुदकमा नहीं लड़ते. मुसलमानों के पास जमीन की कमी नहीं है. हमने अपनी जमीनों पर मस्जिदें बनायी हैं और आगे भी बनायेंगे. जमीन सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दी गयी है. अगर हमें दी जाती, तो हम लेने से इनकार कर देते.

इस सवाल पर कि मुस्लिम समुदाय इस फैसले को कैसे देखता है, मौलाना मदनी ने कहा कि यह बहुत अच्छी बात है कि फैसला खिलाफ आने के बावजूद मुसलमानों ने किसी तरह का कोई विरोध नहीं किया और अपने जज्बातों पर काबू रखा. उम्मीद है कि आगे भी ऐसा ही रहेगा. उन्होंने यह भी कहा कि फैसला हक में आने के बाद भी हिंदू समुदाय ने जीत का जुलूस नहीं निकाला, जो देश में अमन रखने के लिए अहम है और उन्होंने अपनी समझदारी का सुबूत दिया.

गौरतलब है कि एक सदी से भी पुराने बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि मामले का सुप्रीम कोर्ट ने बीते शनिवार को निपटारा कर दिया. विवादित भूमि हिंदुओं को दे दी और मुसलमानों को कहीं और पांच एकड़ जमीन देने का निर्देश दिया है.

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