-मुकुंद हरि-
देश के प्रमुख अंग्रेजी समाचार पत्र "द हिन्दू" ने भारत में काले धन के आंकड़े को लेकर दी गई एक खबर देकर पूरे देश को चौंका दिया है. द हिन्दू की पत्रकार पूजा महरा के हवाले से लिखी गई खबर के मुताबिक देश में काले धन की मौजूदगी और उसके आंकड़े की पड़ताल के लिए सरकार की तरफ से जांच करवाई गई थी, जिसकी खुफिया रिपोर्ट के कुछ अंशों को द हिन्दू ने उजागर किया है. अखबार की मानें तो इस रिपोर्ट में जो आंकड़े सामने आये हैं, वो पूरे देश में काले धन की सामानांतर अर्थ-व्यवस्था के अविश्वसनीय रूप से बढ़ने और फलने-फूलने का साफ संकेत देते हैं.
इस खबर के मुताबिक उच्च-शिक्षा, रियल इस्टेट और खनन जैसे क्षेत्रों के ज़रिये इस देश में बहुत पड़े पैमाने पर काला धन कमाया जा रहा है. सरकार को मिली इस गुप्त रिपोर्ट के मुताबिक काले धन का ये आंकड़ा देश के जीडीपी के 75 प्रतिशत मूल्य के बराबर पहुंच चुका है. मालूम हो कि वर्ष 2013-14 में भारत का सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी तकरीबन 113550 अरब रुपये था जिसका मतलब ये हुआ कि वर्तमान में हमारे देश में करीब 85162 अरब रुपये के बराबर काला धन कमाया जा रहा है.
कहां से आ रहा है देश में काला धन
खबर के मुताबिक इस काली कमाई का सबसे बड़ा स्रोत उच्च-शिक्षा के क्षेत्रों मसलन मेडिकल, इंजीनियरिंग, एमबीए जैसी पढ़ाई के लिए दाखिले के वक्त निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा मैनेजमेंट कोटा के तहत किये जा रहे दाखिलों की कैपिटेशन फीस के रूप में ली जा रही रकम के जरिये आ रहा है. आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल ही एडमिशन के नाम पर इन संस्थानों ने करीब 5953 करोड़ रुपयों की काली कमाई की. इसके अलावा रियल स्टेट और खनन जैसे क्षेत्रों से भी अवैध कमाई कर काला धन कमाया जा रहा है.
देश में सैकड़ों की तादाद में ऐसे निजी उच्च-शिक्षा संस्थान हैं जिनकी मिल्कियत राजनीतिक हस्तियों के पास है. इसके अलावा अवैध खनन और रियल स्टेट, ये वो क्षेत्र हैं जिनमें हो रहे काले कारोबार को लेकर कई राज्यों की सरकारें घिरती रही हैं. चाहे वो कर्नाटक हो या मध्य-प्रदेश, छत्तीसगढ़ या फिर झारखंड. ऐसे में इस रिपोर्ट में इन क्षेत्रों के नाम प्रमुख रूप से आना पहले से हो रही शंका को सच साबित करता है.
कब और कैसे तैयार हुई ये रिपोर्ट
असल में पिछली यूपीए सरकार के दौरान ही काले धन को लेकर पूरे देश में हंगामा मचा हुआ था. एक तरफ अन्ना हजारे की अगुआई में अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, जेनरल वीके सिंह और स्वामी रामदेव जैसे लोग तो दूसरी तरफ उस समय की प्रमुख विपक्षी पार्टी रही भारतीय जनता पार्टी भी काले धन को लेकर आंदोलन करती रही थी.
देश में काले धन की कमाई के आंकड़ों का हिसाब सरकार के पास नहीं था. नतीजतन, केंद्र में बैठी मनमोहन सिंह की सरकार ने इस दबाव की वजह से ही राष्ट्रीय जन वित्त एवं योजना संस्थान (एनआईपीएफपी) को देश और विदेश में जमा काले धन के आंकड़ों की जानकारी इकठ्ठा करने का जिम्मा सौंप दिया.
इसी कड़ी में, सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार से काले धन की जानकारी हासिल करने का निर्देश दिया था, जिसकी वजह से सत्ता में आने के दूसरे ही दिन यानी 27 मई को नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली बीजेपी सरकार ने एक एसआईटी. का गठन कर, जांच का जिम्मा सौंप दिया.
हालांकि, मनमोहन सरकार द्वारा निर्देशित एनआईपीएफपी के द्वारा की गई जांच की रिपोर्ट पिछले साल यानी दिसंबर 2013 में ही आ चुकी थी मगर ना तो तत्कालीन वित्तमंत्री श्री पी. चिदंबरम उस समय और ना ही मौजूदा वित्तमंत्री श्री अरुण जेटली ने रिपोर्ट को आज तक संसद के पटल पर रखा.
रिपोर्ट सार्वजनिक ना करने की क्या वजह है
अब सवाल ये उठता है कि पहले यूपीए और अब बीजेपी की सरकारों के द्वारा उक्त रिपोर्ट के आने के 7 महीनों बाद भी अब तक कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया ? क्या सरकार को ऐसा लगता है कि इस रिपोर्ट को संसद में रखने से वो नाम सामने आयेंगे, जिनका विभिन्न राजनीतिक दलों से रिश्ता है? क्या सरकार उन सफेदपोशों के दबाव में आ गई है या फिर कांग्रेस की ही तरह भाजपा भी इस मुद्दे पर जनता को गुमराह रखना चाहती है !
गौरतलब है कि भारतीय लोगों द्वारा विदेशों में जमा किये गए काले धन की सूची को उजागर करने की मांग भाजपा भी करती रही थी मगर सत्ता में आने के बाद सरकार उन नामों को सार्वजानिक करने से मुकर गयी.
ऐसे में ये रिपोर्ट और इससे जुड़े तथ्य सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हैं. इसलिए, बेहतर होगा कि सरकार इस मुद्दे पर खुलकर बोले ताकि देश में की जा रही इस अवैध काली कमाई पर तत्काल अंकुश लग सके और महंगाई और भ्रष्टाचार की मार से जूझ रही जनता का देश की सत्ता पर विश्वास बना रहे.