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BHU : संस्कृत साहित्य पढ़ाने के लिए नियुक्त मुस्लिम प्रोफेसर फिरोज खान का विरोध क्यों? जानिए किसने क्या कहा…

वाराणसी: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत धर्म विज्ञान संकाय में संस्कृत साहित्य विषय पढ़ाने के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर फिरोज खान की नियुक्ति के विरोध का मामला गहराता जा रहा है. संकाय के छात्र बीते 13 दिन से कुलपति आवास के बाहर धरना पर बैठे हैं. उनका कहना है कि वे एक मुस्लिम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 21, 2019 3:24 PM

वाराणसी: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत धर्म विज्ञान संकाय में संस्कृत साहित्य विषय पढ़ाने के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर फिरोज खान की नियुक्ति के विरोध का मामला गहराता जा रहा है. संकाय के छात्र बीते 13 दिन से कुलपति आवास के बाहर धरना पर बैठे हैं. उनका कहना है कि वे एक मुस्लिम प्राध्यापक से संस्कृत की शिक्षा नहीं ले सकते. छात्र लगातार फिरोज खान की नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं.

‘नियमों के मुताबिक हुई है फिरोज खान की नियुक्ति’

वहीं विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि संस्कृत प्रोफेसर के पद पर फिरोज खान की नियुक्ति पूरी तरह से नियमों के अनुरूप की गयी है. प्रशासन का कहना है कि कुलपति, डीन, विभागाध्यक्ष और देश भर के विशेषज्ञों की एक सक्षम टीम ने फिरोज खान का साक्षात्कार लिया और वे सभी मानकों पर खरे उतरे. इनका कहना है कि फिरोज खान की नियुक्ति में पूरी पारदर्शिता बरती गयी है. इसलिए किसी खास विचारधारा को लेकर विरोध करना दुर्भाग्यपूर्ण है.

‘नियमों के मुताबिक ही हुई है प्रो. फिरोज की नियुक्ति’

इस विषय में हमने विश्वविद्यालय के कुछ पूर्व छात्रों और फैकल्टी मेंबर्स से बातचीत की. अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर भूपेंद्र बताते हैं कि फिरोज खान की नियुक्ति का विरोध करना सर्वथा अनुचित है. उनका कहना है कि फिरोज खान की नियुक्ति विश्वविद्यालय के नियमों के मुताबिक हुई है. जो भी लोग उनकी नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल थे उन्हें नियमों का अच्छा ज्ञान है. उनका कहना है कि यदि धर्म विज्ञान से संबंधित विषय की पढ़ाई में किसी अन्य परंपरा का व्यक्ति शामिल हो रहा है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए. उनका कहना है कि बीएचयू के तमाम फैकल्टी मेंबर्स एकमत से फिरोज खान की नियुक्ति का समर्थन करते हैं. प्रोफेसर भूपेंद्र का कहना है कि 10-20 लोगों द्वारा नियुक्ति के विरोध करने का कोई मायने नहीं है.विरोध करने वाले छात्रों के इस तर्क का कि इस विषय को सनातन परंपरा में विश्वास करने वाला ही पढ़ा सकता है, प्रो. भूपेंद्र ने खंडन किया है. उनका कहना है कि जिस भी व्यक्ति ने इस विषय को अपनी पूरी जिंदगी में पढ़ा हो तो जाहिर है कि उसका सनातन परंपरा में विश्वास है. उनका कहना है कि फिरोज खान की नियुक्ति में पूरी पारदर्शिता बरती गयी है और इसका विरोध करना दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने कहा कि, देश संविधान के मुताबिक ही चलेगा.

‘प्रो. फिरोज की नियुक्ति का विरोध दुर्भाग्यपूर्ण’

हमने इस मामले में बीएचयू के पूर्व छात्र रहे और फिलहाल गुजरात सेंट्रल यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत प्रमोद तिवारी से बात की. प्रमोद तिवारी ने कहा कि, देखिए, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में दो तरीके से शिक्षा दी जाती है, एक आधुनिक तरीके से और एक परंपरागत तरीके से. ये व्यवस्था महामना मदन मोहन मालवीय के समय से ही चली आ रही है. लेकिन कहीं ऐसा नहीं है कि इसमें बदलाव नहीं हो सकता.

उनका कहना है कि यदि किसी अन्य सामाजिक या सामुदायिक परंपरा का व्यक्ति संस्कृत साहित्य और धर्मग्रंथ पढ़ाने आ रहा है तो इसमें क्या हर्ज होना चाहिए. हमें परिवर्तन के लिए तैयार रहना चाहिए. प्रमोद तिवारी का कहना है कि ये तो अच्छी बात है कि सनातन परंपरा का विस्तार हो रहा है और लोग इसका हिस्सा बन रहे हैं. प्रमोद तिवारी ने कहा कि, संस्कृत कभी जनवाणी नहीं बन पाई, इसका कारण कहीं ना कहीं इस प्रकार की रूढ़िवादिता ही रही होगी.प्रमोद तिवारी का कहना है कि, कहीं ना कहीं इस मुद्दे का राजनीतीकरण किया गया है. उन्होंने कहा कि आप फिरोज खान की योग्यता देखिए. उन्होंने अपने अब तक के जीवन में केवल और केवल संस्कृत भाषा की ही पढ़ाई की है. नेट-जेआरएफ क्वालीफाइड हैं. पीएचडी की डिग्री हासिल की है. साक्षात्कार में भी उन्होंने उम्दा प्रदर्शन किया जिसकी बदौलत उनका चयन इस पद के लिए हुआ है. इसके बावजूद केवल एक छोटी सी वजह देकर उनकी नियुक्ति का विरोध करना दुर्भाग्यपूर्ण है.

उन्होंने कहा कि, बीएचयू के ही उर्दू विभाग में एक हिन्दू प्रोफेसर हैं. उन्होंने इस पूरे विरोध प्रदर्शन को संकीर्ण मानसिकता का परिचायक बताया. प्रमोद तिवारी कहते हैं कि, फादर कामिल बुल्के ने रामचरितमानस को लेकर कितना काम किया है. क्या हम संस्कृत भाषा के प्रति मैक्समूलर के योगदान का नजरअंदाज कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि, दोनों ही पारंपरिक रूप से सनातन परंपरा का हिस्सा नहीं थे तो क्या इससे संस्कृत भाषा का नुकसान हो गया? इससे उल्टा भाषा का विस्तार ही हुआ.

विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने महन मोहन मालवीय के समय के एक शिलापट्ट के आधार पर तर्क दिया है कि यहां केवल सनातन परंपरा से जुड़ा व्यक्ति ही नियुक्त हो सकता है. इसका खंडन करते हुए प्रमोद तिवारी कहते हैं कि इस मामले में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का नाम घसीटना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने कहा कि यदि महामना ने उस समय कहा भी था तो ये 1916 की बात है. उस समय की परिस्थितियां अलग थीं.

उनका कहना है कि यदि इस तर्क को मान भी लें तो महामना ने तो उस समय लड़कियों के लिए अलग कॉलेज बनवाया था लेकिन क्या आज लड़के-लड़कियां साथ नहीं पढ़ते. प्रमोद तिवारी का कहना है कि समय के साथ बदलाव को स्वीकार करना जरूरी है.

बीएचयू के पूर्व छात्र और राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (रांची) के निदेशक डॉ. डीके सिंह का इस मसले पर कहना है कि, जब फिरोज खान की नियुक्ति असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियमों के मुताबिक हुई है तो फिर इसका विरोध करना गलत है.

विरोध के बहाने BHUको बदनाम करने की साजिश’

पूर्व छात्र नेता और वर्तमान में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान विभाग में रिसर्च स्कॉलर विकास सिंह का कहना है कि असिस्टेंट प्रोफेसर फिरोज खान की नियुक्ति देश भर के सबसे अच्छे विशेज्ञषों की टीम द्वारा की गयी है. उन्होंने साक्षात्कार में सबसे अच्छे अंक हासिल किए हैं. उनका चयन विश्वविद्यालय के नियमों के मुताबिक हुआ है. उनका कहना है कि धर्म विज्ञान संकाय में एक शब्द विज्ञान जुड़ा है.

विकास सिंह का कहना है कि जहां विज्ञान शब्द जुड़ा है वहां रूढ़िवादिता की कोई जगह नहीं रह जानी चाहिए. उन्होंने दावा किया कि पूरा विश्वविद्यालय फिरोज खान के समर्थन में है. उनका कहना है कि चंद संकीर्ण मानसिकता के लोग उनकी नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं.विकास सिंह ने बताया कि विश्वविद्यालय के अधिकांश छात्र गुरूवार की शाम को फिरोज खान के समर्थन में रैली निकालेंगे. उन्होंने इस विरोध प्रदर्शन को बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश बताया है.

‘पूर्वाग्रह और संकीर्णता से उपजा विरोध प्रदर्शन’

बीएचयू के एक अन्य पूर्व छात्र सुधीर कुमार इसे पूर्वाग्रह और संकीर्णता से उपजा मामला बताते हैं. उनका कहना है कि, असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर फिरोज खान की नियुक्ति नियमों के मुताबिक हुई है और पारदर्शिता भी बरती गयी है. सुधीर का कहना है कि देश संविधान के मुताबिक चलता है और संविधान में साफ लिखा है कि शैक्षणिक संस्थान में धार्मिक आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता. ऐसे में छात्रों का विरोध प्रदर्शन करना बहुत गलत और दुर्भाग्यपूर्ण है.

धर्म विज्ञान संकाय के छात्रों का विरोध प्रदर्शन जारी

विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों का आरोप है कि संस्कृत धर्म विज्ञान संकाय में एक मुस्लिम प्राध्यापक की नियुक्ति करना अनुचित है. उनका कहना है कि एक मुस्लिम हिन्दू कर्मकांड, वेद और पूजा पद्दतियों को कैसे पढ़ा पाएगा. इनका ये भी तर्क है कि सनातन धर्म की पढ़ाई के दौरान कुछ खास परंपराओं का पालन किया जाता है जिसमें चोटी रखना और जनेऊ धारण करना अनिवार्य है, तो फिरोज खान कैसे इसका पालन कर पाएंगे.

‘सिलेबस में शामिल विषय को पढ़ाने में दिक्कत नहीं ‘

वहीं नवनियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसर फिरोज खान का कहना है कि उन्हें पाठ्यक्रम में शामिल किसी भी विषयवस्तु को पढ़ाने में कोई दिक्कत नहीं है. उनका कहना है कि, मैंने बचपन से केवल संस्कृत भाषा की पढ़ाई की है. मैं उर्दू की अपेक्षा इसमें ज्यादा सहज हूं. फिरोज खान का कहना है कि मेरे दादा और पिता राजस्थान के जयपुर में मशहूर भजन गायक रहे हैं. मेरे कमरे की दीवारों में कृष्ण और राम की तस्वीरें लगी हैं. मैंने पीएचडी तक की पढ़ाई संस्कृत भाषा से की है और कहीं भी मुझे भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा. लेकिन बनारस में छात्रों के रवैये से मुझे काफी दुख पहुंचा है.

मशहूर भजन गायक हैं प्रो. फिरोज खान के पिता

बता दें कि फिरोज खान राजस्थान के जयपुर से तकरीबन 30 किमी दूर बागरू गांव के रहने वाले हैं. उनके पिता रमजान खान प्रसिद्ध भजन गायक हैं और पूरे जयपुर में प्रस्तुति देते हैं. स्थानीय लोग उन्हें मुन्ना मास्टर के नाम से जानते हैं वहीं फिरोज के दादा गफूर खान भी मशहूर भजन गायक रहे हैं. फिरोज खान का कहना है कि उनका परिवार गंगा-जमुनी तहजीब का हिमायती है लेकिन बनारस के प्रकरण से उनको दुख हुआ.

जानिए क्या है पूरा घटनाक्रम

बता दें कि फिलहाल इस विवाद का कोई हल नहीं निकाला जा सका है. एक बार आपको पूरा घटनाक्रम समझा देते हैं. पांच नवंबर को बीएचयू के संस्कृत धर्म विज्ञान संस्थान में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए साक्षात्कार का आयोजन किया गया. 06 नवंबर को फिरोज खान को नौकरी का नियुक्ति पत्र सौंपा गया. इसके साथ ही छात्रों ने इनकी नियुक्ति का विरोध करना शुरू कर दिया. 07 नवंबर को जब फिरोज पहली बार संकाय पहुंचे तो वहां ताला लटका हुआ था और छात्र विरोधस्वरूप धरना पर बैठे थे. छात्रों के विरोध को देखते हुए फिरोज को वहां से वापस लौटना पड़ा.

तब से ही संकाय में पठन-पाठन बंद है. छात्र बीते 13 दिन से धरना पर बैठे हुए हैं. वे फिरोज खान से संस्कृत नहीं पढ़ने पर अड़े हुए हैं वहीं विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि उनकी नियुक्ति का विरोध करना गलत है. नियमों के मुताबिक फिरोज खान की नियुक्ति हुई है और संविधान भी किसी शैक्षणिक संस्थान में धार्मिक भेदभाव की आलोचना करता है.

बीएचयू के कुलपति राकेश भटनागर का कहना है कि छात्रों को अपनी बेजा जिद्द छोड़कर आगामी परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए अपना प्रदर्शन खत्म करना चाहिए और पठन-पाठन की प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलने देना चाहिए. हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन ने ये स्पष्ट नहीं किया है कि विरोध करने वाले छात्रों पर कोई दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी या नहीं.

बीएचयू के अधिकांश छात्र प्रो फिरोज के सपोर्ट में

गौरतलब है कि विश्वविद्यालय के अधिकांश छात्र और फैकल्टी मेंबर्स फिरोज खान की नियुक्ति के समर्थन में हैं. कल यानी 20 नवंबर को छात्रों के एक समूह ने बड़ी संख्या में फिरोज खान की नियुक्ति के समर्थन में विश्वविद्यालय परिसर में रैली का आयोजन किया था. छात्रों ने फिरोज खान को आश्वस्त किया साथ ही उनसे आग्रह किया है कि वो विश्वविद्यालय आकर ज्वॉइन करें.

नहीं हो पाया है अब तक मामले का पटाक्षेप

फिलहाल इस मसले पर विश्वविद्यालय दो गुटों में बंटा हुआ है. पहला गुट संस्कृत धर्म विज्ञान संकाय के छात्रों का है जो फिरोज खान की नियुक्ति का लगातार विरोध कर रहा है तो वहीं दूसरा गुट विश्वविद्यालय के अन्य फैकल्टी स्टूडेंट्स का है जिनका कहना है कि फिरोज खान की नियुक्ति नियमसम्मत हुई है. वे गुरूवार को फिरोज खान के समर्थन में रैली निकालने वाले हैं. इस समय धरना जारी है. समाचार लिखे जाने तक इस मामले का पटाक्षेप नहीं हो पाया है.

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