नयी दिल्लीः केंद्र की मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के छह माह के अंदर ही तीन ऐसे कार्य कर दिए जिसे लेकर विपक्ष ने काफी हंगामा किया. पहले तीन तलाक कानून फिर जम्मू कश्मीर का धारा 370 और अब नागरिकता संशोधन विधेयक इस बात का सबूत है. अब जब नागरिकता संशोधन विधेयक राज्यसभा से मंजूर हो चुका है तो लोग कयास लगा रहे हैं भाजपा अब आगे क्या करेंगी.
दरअसल, बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में अनुच्छेद-370 हटाने, एक बार में तीन तलाक की प्रथा को खत्म करने और नागरिकता संशोधन कानून लाने का वादा किया था. मोदी सरकार- 2 ने लोकसभा चुनाव में जीत के करीब सात महीनों के अंदर ही इन तीनों वादों को पूरा कर दिया है. ऐसे में अब बीजेपी के अगले कदम को लेकर चर्चा जारी है.
कहा जा रहा है कि पार्टी समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) पर आगे बढ़ सकती है. हालांकि बीजेपी नेताओं का कहना है कि अभी पार्टी की प्राथमिकता देशभर में एनआरसी लागू करवाना है. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र यह बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इन्हीं सब के बीच अयोध्या मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला कर दिया. राम मंदिर भी भाजपा के एजेंडे में था.
क्या है समान आचार संहिता?
अगर आसान भाषा में समझें तो कॉमन सिविल कोड यानी समान आचार संहिता का मतलब है देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून. चाहे वह किसी भी धर्म का हो, कानून की नजर में उसे समान नजर से देखा जाएगा. यानी ये एक तरह का निष्पक्ष कानून होगा. जब ये कानून बन जाएगा तो चाहे कोई शख्स हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिख हो या ईसाई हो, सबको एक ही कानून का पालन करना होगा.
यानी एक पत्नी के रहते दूसरी शादी नहीं करना अगर हिंदू धर्म में अपराध माना जाता है, तो वह मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्म में भी अपराध ही रहेगा. ऐसा नहीं होगा कि मुस्लिम धर्म के लोगों को 3 शादियां करने की अनुमति हो और तीन बार तलाक कह देने भर से वह अपनी पत्नी को तलाक दे दे. वैसे तीन तलाक पर तो लगाम पहले ही लग चुकी है, कॉमन सिविल कोड आने के बाद 3 शादियों की परंपरा भी खत्म हो जाएगी.
समान आचार संहिता की क्या जरूरत है?
ये वो सवाल है जो बहुत से लोग पूछते हैं. आखिर क्या जरूरत है समान आचार संहिता लागू करने की? क्यों हर धर्म के लोग अपने-अपने धर्म के कानून के हिसाब से नहीं रह सकते? आपको बता दें कि अलग-अलग धर्मों के अलग-अलग कानून की वजह से न्यायपालिका पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है. इसके लागू हो जाने से एक तो न्यायपालिका का बोझ कम होगा ऊपर से समय बचने और एक कानून होने की वजह से बहुत से लंबित मामलों का निपटारा भी जल्द हो सकेगा