IUML ने नागरिकता संशोधन विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
नयी दिल्ली : इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने बृहस्पतिवार को नागरिकता (संशोधन) विधेयक को उच्चतम न्यायलय में चुनौती दी. इस दल का कहना है कि इस विधेयक से संविधान में प्रदत्त समता के मौलिक अधिकार का हनन होता है और इसका मकसद धर्म के आधार पर एक तबके को अलग रखते हुए अवैध शरणार्थियों के […]
नयी दिल्ली : इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने बृहस्पतिवार को नागरिकता (संशोधन) विधेयक को उच्चतम न्यायलय में चुनौती दी. इस दल का कहना है कि इस विधेयक से संविधान में प्रदत्त समता के मौलिक अधिकार का हनन होता है और इसका मकसद धर्म के आधार पर एक तबके को अलग रखते हुए अवैध शरणार्थियों के एक वर्ग को नागरिकता प्रदान करना है.
नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को संसद ने मंजूरी दे दी है और अब राष्ट्रपति की संस्तुति का इंतजार है. इस विधेयक में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले गैर मुस्लिमों को भारत की नागरिकता देने का प्रस्ताव है. वकील पल्लवी प्रताप के माध्यम से दायर इस याचिका में नागरिकता संशोधन विधेयक और विदेशी नागरिक संशोधन (आदेश) 2015 तथा पासपोर्ट (नियमों में प्रवेश), संशोधन नियम 2015 के अमल पर अंतरिम रोक लगाने का अनुरोध किया गया है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह विधेयक संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है और इसका स्पष्ट मकसद मुसलमानों के साथ भेदभाव करना है क्योंकि प्रस्तावित कानून का लाभ सिर्फ हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के सदस्यों को ही मिलेगा.
याचिका में कहा गया है, याचिकाकर्ताओं को शरणार्थियों को नागरिकता दिये जाने के बारे में कोई शिकायत नहीं है, लेकिन याचिकाकर्ता की शिकायत धर्म के आधार पर भेदभाव और अनुचित वर्गीकरण को लेकर है. याचिका में कहा गया है, गैरकानूनी शरणार्थी अपने आप में ही एक वर्ग है और इसलिए उनके धर्म, जाति या राष्ट्रीयता के आधार के बगैर ही उन पर कोई कानून लागू किया जाना चाहिए. याचिका में आरोप लगाया गया है कि सरकार ने अहमदिया, शिया और हजारा जैसे अल्पसंख्यकों को इस विधेयक के दायरे से बाहर रखने के बारे में कोई स्पष्टीरण नहीं दिया है. इन अल्पसंख्यकों का लंबे समय से अफगानिस्तान और पाकिस्तान में उत्पीड़न हो रहा है.
याचिका में यह भी कहा गया है कि कानून में इन तीन पड़ोसी देशों का चयन करने के पीछे किसी मानक सिद्धांत या पैमाने का जिक्र नहीं है, जबकि यही लाभ श्रीलंका, म्यांमार, नेपाल और भूटान जैसे पड़ोसी देशों में रहने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों को नहीं दिया गया है. याचिका में तर्क दिया गया है कि यह विधेयक सुनिश्चित करेगा कि राष्ट्रीय नागरिक पंजी कवायद के बाद इससे बाहर रखे गये अवैध मुस्लिम शरणार्थियों पर मुकदमा चलाया जाये और हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदाय के सदस्यों को भारतीय नागरिक के रूप में देशीकरण का लाभ दिया जायेगा.
याचिका में कहा गया है कि इस तरह से राष्ट्रीय नागरिक पंजी से बाहर रखे गये मुस्लिम समुदाय के लोगों को विदेशी नागरिक न्यायाधिकरण के समक्ष अपनी नागरिकता साबित करनी होगी क्योंकि वे हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, पारसी और ईसाई नहीं बल्कि मुस्लिम हैं. याचिका में कहा गया है कि इसलिए यह स्पष्ट रूप से भेदभाव है और नागरिकता संशोधन कानून असंवैधानिक ही नहीं बल्कि हमारे राष्ट्र के मूलभूत सिद्धांत के भी खिलाफ है.