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नागरिकता कानूनः असम का विरोध बाकी जगहों-लोगों से अलग क्यों

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देशभर में छात्र सड़कों पर उतर गए हैं. विपक्षी पार्टियां भी इस कानून का विरोध कर रही हैं. इससे पहले इस कानून का विरोध सबसे ज्यादा पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में हो रहा था. पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन जारी है. जहां […]

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देशभर में छात्र सड़कों पर उतर गए हैं. विपक्षी पार्टियां भी इस कानून का विरोध कर रही हैं. इससे पहले इस कानून का विरोध सबसे ज्यादा पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में हो रहा था. पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन जारी है.

जहां विपक्षी पार्टियां और अन्य बाकी जगहों पर विरोध का कारण भाजपा का एजेंडा है मगर असम में विरोध का कारण कुछ है. बाकी जगहों पर विरोध इस लिए हो रहा क्योंकि लोग इसे हिंदू राष्ट्र की दिशा में एक कदम मान रहे हैं. विपक्षी पार्टियां इसलिए विरोध कर रही क्योंकि इसमें मुस्लिम शरणार्थियों को जगह नहीं दी गई है. अब सवाल उठता है कि आखिर इस कानून में क्या है, जिसे लेकर विवाद इतना बढ़ गया है?

इस क़ानून के मुताबिक पड़ोसी देशों से शरण के लिए भारत आए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.भारत के पूर्वोत्तर में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर विरोध होता रहा है जिसका उद्देश्य पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से गैर-मुसलमान अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए नियमों में ढील देने का प्रावधान है.

असम में उबाल क्यों?
असम में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ उग्र प्रदर्शन जारी हैं. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के कार्यकर्ता, स्थानीय कलाकार, लेखक, बुद्धिजीवी समाज और विपक्षी दलों के लोग अलग-अलग तरीकों से अपना विरोध जता रहे हैं. इस कानून को असमिया लोगों की भावनाओं, हितों और असम समझौते का उल्लंघन मान रहे हैं.
असम के लोगों की चिंता है कि इस नागरिकता कानून के जरिए सरकार एनआरसी से छटे बांग्लादेश से आए अवैध हिंदू शरणार्थियों को बचाएगी. अन्य देशों के लोगों को यहां बसने से असम के लोगों और उनकी भाषा, संस्कृति और परंपरा के नष्ट होने का खतरा है. बाहरी लोगों को नागरिकता मिलने से उनकी आजीविका पर भी संकट खड़ा हो जाएगा.प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि नागरिकता संशोधन विधेयक-2019 साल 1985 में हुए असम अकॉर्ड (असम समझौता) का उल्लघंन है.
इससे वहां के मूल निवासियों की भावनाओं और हितों को नुकसान पहुंचा है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नागरिकता बिल से असम समझौते के नियम-6 का भी उल्लघंन हो रहा है. इस नियम के तहत असम के मूल निवासियों की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषाई पहचान और उनके धरोहरों के संरक्षण तथा संवर्धन के लिए संवैधानिक, कार्यकारी और प्रशासनिक व्यवस्था की गई है.

1985 में क्या हुआ था असम समझौता ?
प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. समझौते में कहा गया था कि 25 मार्च 1971 के बाद असम में आए विदेशियों की पहचान कर उन्हें देश ने बाहर निकाला जाए. दूसरे राज्यों के लिए यह समय सीमा 1951 थी. जबकि, नागरिकता संशोधन बिल-2019 में नयी समय सीमा 2014 तय की गई है. इसी बात पर प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नई समय सीमा से असम समझौते का उल्लघंन हो रहा है.
क्यों हुआ था असम समझौता
1979 के लोकसभा उपचुनाव में मंगलदोई सीट पर वोटरों की संख्या में अत्यधिक इजाफा हुआ. जब पता किया गया तो जानकारी मिली कि ऐसा बांग्लादेशी अवैध शरणार्थियों की वजह से हुआ है. इसके बाद असम के मूल निवासियों ने अवैध शरणार्थियों के खिलाफ हिंसक धरना-प्रदर्शन शुरू किया. ये प्रदर्शन और विरोध 6 साल तक चले. इन प्रदर्शनों में 885 लोग मारे गए. मामला तब शांत हुआ जब उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1985 में असम समझौता किया.
असम समझौते में कहा था कि एनआरसी लागू करेंगे
असम समझौते में कहा गया था कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंश को लागू किया जाएगा. ताकि विदेशी नागरिकों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर निकाला जा सके. हालांकि, 35 सालों तक एनआरसी पर कोई काम नहीं हुआ. जब 31 अगस्त 2019 को असम एनआरसी पर काम शुरू हुआ तो उसकी सूची में से 19 लाख लोगों के नाम इससे बाहर हो गए. जो लोग बाहर हुए उसमें ज्यादातर हिंदू और मूल आदिवासी समुदाय के लोग थे. अब असम के प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नागरिकता बिल आने से एनआरसी का प्रभाव खत्म हो जाएगा. इससे 19 लाख अवैध शरणार्थियों को नागरिकता मिल जाएगी.
असम के मूल निवासियों को इस बात की आशंका है कि कानून बदलने से बांग्लादेश से आए हिंदुओं को नागरिकता मिल जाएगी. ये बांग्लादेशी हिंदू असम के मूल निवासियों के अधिकारों को चुनौती देंगे. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि असम में 1951 से 1971 तक लाखों शरणार्थी आए. अब वह और शरणार्थियों का बोझ नहीं उठा सकता. केंद्र सरकार ने नए कानून से 1985 के असम समझौते का उल्लघंन होगा.
इनर लाइन ऑफ परमिट पर क्या असर पड़ेगा?
1873 में बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन के तहत सीमा के इलाकों के लिए आईएलपी (इनर लाइन ऑफ परमिट) लागू किया गया था. यानी असम से बाहर के लोगों को चाहे वह भारत के ही क्यों न हों, उन्हें आईएलपी के जरिए ही राज्य के सीमाई इलाकों में आने की अनुमति मिलेगी. बाहरी लोग यहां बस नहीं सकेंगे. लेकिन नागरिकता बिल के प्रभाव से आईएलपी को दूर रखा गया है.
साथ ही आदिवासियों के लिए नोटिफाइट इलाकों को भी नागरिकता बिल से बाहर रखा गया है. असम के 33 जिलों में सात जिलों में आईएलपी लागू है. जिन जिलों में आईएलपी लागू नहीं है वहीं सबसे ज्यादा लोग ऐसे हैं जो एनआरसी से बाहर है. इनमें हिंदू- मुसलमान दोनों हैं.

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