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झारखंड की हार के बाद 2017 के मुकाबले देश में आधी हो गयी भाजपा की हिस्सेदारी

नयी दिल्ली : भाजपा के हाथ से निकलते राज्यों में झारखंड के भी शामिल होने के बाद केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की हिस्सेदारी अब देश के मात्र 35 प्रतिशत हिस्से पर रह गयी है, जबकि 2017 में पूरी हिंदी भाषी पट्टी पर शासन के साथ 71 प्रतिशत हिस्से पर उसका नियंत्रण था. अप्रैल-मई में हुए […]

नयी दिल्ली : भाजपा के हाथ से निकलते राज्यों में झारखंड के भी शामिल होने के बाद केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की हिस्सेदारी अब देश के मात्र 35 प्रतिशत हिस्से पर रह गयी है, जबकि 2017 में पूरी हिंदी भाषी पट्टी पर शासन के साथ 71 प्रतिशत हिस्से पर उसका नियंत्रण था.

अप्रैल-मई में हुए लोकसभा चुनावों में बड़ी जीत के बावजूद कई राज्यों में भाजपा की हार से पार्टी के बड़े नेता आगामी विधानसभाओं चुनावों के लिए अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने को मजबूर हो सकते हैं. आने वाले समय में दिल्ली और बिहार में चुनाव होने हैं. आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि जिन राज्यों में भाजपा की उसके अपने दम पर या सहयोगियों के साथ सरकार है वहां आबादी करीब 43 प्रतिशत है, जबकि दो साल पहले 69 फीसदी से अधिक आबादी वाले राज्यों में भाजपा की सरकार थी. पार्टी के लिए यह चिंता की बात है कि 2018 से राज्यों के चुनाव में उसका ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है. वह इस अवधि में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता खो चुकी है. लोकसभा चुनाव में उसकी जबरदस्त जीत भी राज्यों में लाभ दिलाने में कामयाब नहीं रही.

राजनीतिक जानकारों की मानें, तो भाजपा को विधानसभा चुनावों में रणनीति बदलनी होगी. हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव में विपक्षी दलों ने पिछली बार के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन किया. भाजपा दोनों ही राज्यों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर तो उभरी, लेकिन पहले की तुलना में उसे कई सीटें गंवानी पड़ीं. पार्टी ने हरियाणा में जननायक जनता पार्टी के साथ हाथ मिलाकर सरकार बना ली, लेकिन महाराष्ट्र में प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस-राकांपा के सामने भाजपा का सपना टूट गया जिसने उसकी पुरानी सहयोगी शिवसेना के साथ हाथ मिलाकर सरकार बना ली.

झारखंड की स्थापना के बाद से पहली बार भाजपा सबसे बड़ी पार्टी भी नहीं बन पायी है. इससे पहले वह हमेशा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. लोकसभा चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत झारखंड में 55 प्रतिशत से अधिक था, तो हरियाणा में 58 प्रतिशत था. हालांकि, इन दोनों राज्यों में कुछ ही महीने बाद हुए विधानसभा चुनावों में उसका वोट प्रतिशत गिरकर क्रमश: 33 एवं 36 प्रतिशत पर आ गया.

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