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जयंती विशेष: जब वाजपेयी ने कहा था- मैं अटल हूं और बिहारी भी, जानिए उनसे जुड़े दिलचस्प किस्से

नयी दिल्ली: सदन में एक बार किसी ने टिप्पणी की. अटल बिहारी वाजपेयी आदमी अच्छे हैं लेकिन गलत पार्टी में हैं. वाजेपयी ने जवाब दिया, मैं जानना चाहता हूं कि विपक्ष अच्छे अटल का क्या करने का इरादा रखता है. इसी प्रकार एक बार पत्रकार रजत शर्मा ने सवाल किया, लोग कहते हैं कि बीजेपी […]

नयी दिल्ली: सदन में एक बार किसी ने टिप्पणी की. अटल बिहारी वाजपेयी आदमी अच्छे हैं लेकिन गलत पार्टी में हैं. वाजेपयी ने जवाब दिया, मैं जानना चाहता हूं कि विपक्ष अच्छे अटल का क्या करने का इरादा रखता है. इसी प्रकार एक बार पत्रकार रजत शर्मा ने सवाल किया, लोग कहते हैं कि बीजेपी में दो दल हैं. एक अटल बिहारी वाजपेयी का दल है और एक लालकृष्ण आडवाणी का दल है. जवाब में वाजपेयी ने कहा, नहीं, मैं किसी भी दलदल में नहीं हूं. मैं तो दूसरों के दलदल में अपना कमल खिलाता हूं.

तो ऐसे थे अटल बिहारी वाजपेयी. वो मंझा हुआ राजनेता और रणनीतिकार, जिसकी वाक्पटुता का लोहा सब मानते थे. ऐसा ही एक वाकया है बिहार का. अटल बिहारी वाजपेयी यहां एक जनसभा को संबोधित करने आये थे. जनसभा खत्म हुई तो जाते-जाते बोल गए, मैं अटल हूं और बिहारी भी. लोगों ने खूब तालियां पीटीं.

ग्वालियर के निम्नमध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था जन्म

आज अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है. आज ही के दिन यानी 25 दिसंबर साल 1924 को औपनिवेशिक भारत में ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म हुआ था. धार्मिक संस्कारों में पले-बढ़े अटल बिहारी वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया कॉलेज से हुई.

बाद में उन्होंने कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति विज्ञान में मास्टर्स की डिग्री हासिल की. हिन्दी भाषा में बेहतरीन पकड़ और राजनीतिक-सामाजिक विषयों में रूचि की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी ने पत्रकार के तौर पर अपना करियर शुरू किया. अपने पत्रकारिता करियर में उन्होंने राष्टधर्म, पांचजन्य, और वीर-अर्जुन जैसी पत्रिकाओं का संपादन भी किया.

उनकी हिन्दी इतनी अच्छी थी कि अपने राजनीतिक जीवन के आरंभिक दिनों में ही उन्होंने अपनी भाषण शैली से लोगों के दिलों में जगह बना ली थी. यहां तक की आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी सदन में उनकी बातों को गंभीरता से सुना करते थे.

साल 1961 में शुरू हुई थी वाजपेयी की राजनीतिक यात्रा

अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक यात्रा शुरू हुई साल 1951 में. इस साल वे भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य बनें. भारतीय जनसंघ, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की ही राजनीतिक इकाई मानी जाती रही. साल 1957 में अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. इस समय वाजपेेयी केवल 33 साल के थे.

भारतीय जनसंघ ने इन चुनावों में वाजपेयी को तीन सीटों से मैदान में उतारा था. इसमें से लखनऊ में वो चुनाव हार गए और मथुरा में उनकी जमानत ही जब्त हो गयी. हालांकि बलरामपुर लोकसभा सीट से वो जीते. साल 1968 से 1973 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे. इस दौरान इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में आपातकाल लगा दिया. अटल बिहारी वाजपेयी को भी इस दौरान जेल जाना पड़ा.

साल 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया. इसी समय वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिन्दी में संबोधन दिया. जीवनपर्यंत, वाजपेयी इसे अपना सबसे सुखद क्षण बताते रहे.

साल 1979 में जनता पार्टी की सरकार गिर गयी. साल 1980 में अटल बिहारी की अध्यक्षता में भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में आई. साल 1980 से लेकर 1986 तक अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे. अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी लोकसभा से चौदहवीं लोकसभा तक, 10 बार लोकसभा के सांसद रहे. दो बार उन्हें राज्यसभा सदस्य होेेने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ.

अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बनें. पहली बार उनका कार्यकाल केवल 13 दिन का था. दूसरी बार वो 13 महीने तक भारत के प्रधानमंत्री रहे. साल 1999 से लेकर 2005 तक अटल बिहारी वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के प्रधानमंत्री रहे. ये पहली बार था जब किसी गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा किया हो.

जानिए कौन से थे वाजपेयी के महत्वपूर्ण राजनीतिक फैसले

अपने कार्यकाल में अटल बिहारी वाजपेयी ने बहुत सारे ऐसे फैसले लिए जिससे उनकी राजनीतिक समझ तथा रणनीतिक कौशल का पता चलता है. उन्होंने सड़क मार्ग के जरिए भारत को जोड़ने का योजना बनायी थी. उनकी योजना धरातल पर, दिल्ली-मुंबई-कोलकाता-चेन्नई को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग के तौर पर सामने आई जिसे स्वर्णिम चतुर्भुज कहा जाता है.

इनके कार्यकाल में ही पहली बार भारत में निजीकरण की प्रक्रिया लाई गयी. अटल बिहारी वाजपेयी इसके लिए इतने संजीदा थे कि, केंद्र में विनिवेश मंत्रालय का गठन किया गया जिसके मंत्री अरूण शौरी बनाये गए. कई सारी सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में सौंपा गया. हालांकि वाजपेयी के इस फैसले की काफी आलोचना की गयी. लोगों ने आरोप लगाया कि, इस योजना की आड़ में पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाया जा रहा है.

अटल बिहारी वाजपेयी के समय में ही शिक्षा का अधिकार की अवधारणा को धरातल पर उतारा गया. 6 से 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के उद्देश्य से सर्व शिक्षा अभियान लांच किया गया.

अटल बिहारी वाजपेयी के ही कार्यकाल में राजस्थान के पोखरण में भारत ने दूसरी बार परमाणु परीक्षण किया. भारत के इस कदम से नाराज होकर कई देशों ने आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन 2001 तक अधिकांश प्रतिबंध हटा लिये गये थे.

पाकिस्तान के साथ शांतिपूर्ण रिश्तों को लेकर भी अटल बिहारी वाजपेयी संजीदा थे. उन्होंने नवाज शरीफ के कार्यकाल में लाहौर बस सेवा की शुरुआत की. वो खुद बस से अमृतसर से लाहौर गए. लेकिन पाकिस्तान की तरफ से कारगिल युद्ध छेड़ दिया गया. भारत ने मुंहतोड़ जवाब दिया और पाकिस्तानी सेना के कब्जे से अपने इलाके आजाद करवाये.

कारगिल के तौर पर धोखा मिलने के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के साथ रिश्ता सुधारने में दिलचस्पी दिखाई. उन्होंने 2002 में पाकिस्तान के तात्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ को आगरा बुलाया. हालांकि इसमें वाजपेयी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली. अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में ही आंतरिक सुरक्षा के उद्देश्य से ही सख्त आंतकवाद निरोधी कानून पोटा लाया गया जिसे बाद में यूपीए की सरकार ने निरस्त कर दिया.

जीवनभर अविवाहित रहे थे अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी आजीवन अविवाहित रहे. हालांकि मिसेज कौल के साथ उनका रिश्ता एक अनसुलझा अध्याय है. कॉलेज के दिनों से दोनों में जान-पहचान थी. जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बनें तो मिसेज कौल अपने परिवार के साथ पीएम आवास में ही रहती थीं. दिलचस्प है कि, अटल बिहारी वाजपेयी के आलोचकों या मीडिया ने कभी उनकी निजी जिंदगी को लेकर कभी निशाना नहीं साधा. अटल बिहारी वाजपेयी से जब भी इस बारे में सवाल किया जाता वो अपनी वाक्पटुता से सबको निरूत्तर कर देते.

ऐसा ही एक वाकया है, जब वाजपेयी विदेश मंत्री के तौर चीन का दौरा करके वापस लौटे. प्रेस-कांफ्रेस में विदेश नीति से जुड़े सवाल पूछे जा रहे थे और वाजपेयी उनका जवाब दे रहे थे. इसी समय एक युवा पत्रकार ने पूछ लिया. अच्छा ये सब छोड़िए, ये बताइए कि मिसेज कौल का क्या मसला है. इस सवाल के बाद वहां मुर्दा शांति छा गयी. तभी थोड़ा रूककर अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा, कश्मीर जैसा मसला है.

2005 के बाद सार्वजनिक जिंदगी से दूर हुए वाजपेयी

साल 2005 का चुनाव भारतीय जनता पार्टी हार गयी. इसके बाद से ही अटल बिहारी वाजपेयी सार्वजनिक जीवन से दूर रहने लगे. उन्होंने दिल्ली स्थित आवास में एकांतवास अपना लिया. तब से लेकर उनके निधन तक भारतीय जनता पार्टी के केवल कुछ चुनिंदा नेता ही उनसे मिलने और हालचाल जानने के लिए आते रहे.

साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में वापसी की तो अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न से नवाजने का फैसला किया. तात्कालीन राष्ट्रपति, प्रणब मुखर्जी ने 27 मार्च साल 2015 को अटल बिहारी वाजपेयी को उनके आवास पर जाकर भारत रत्न से सम्मानित किया.

अपने जीवन के आखिरी दिनों में अटल बिहारी वाजपेयी अल्जाइमर बीमारी से पीड़ित हो गये थे. आखिरकार 16 अगस्त साल 2018 को लंबी बीमारी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री, ओजस्वी वक्ता और कवि अटल बिहारी वाजपेयी का दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में निधन हो गया. केंद्र सरकार ने उनके निधन के बाद उनकी जयंती को सुशासन दिवस के तौर पर मनाने का फैसला लिया था.

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