नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने लोकसेवकों को प्रदत्त संरक्षण की संवैधानिक वैधता को बुधवार को सही ठहराते हुए कहा कि भ्रष्टाचार निवारण कानून की धारा 19 असंवैधानिक नहीं है. इस धारा के तहत ही भ्रष्टाचार के मामलों में सरकार की पूर्व मंजूरी के बगैर किसी लोक सेवक पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.
न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि यह कहना संभव नहीं है कि मंजूरी लेने की अनिवार्यता असंवैधानिक है. यह जरूर है कि सक्षम प्राधिकारी को इस मुद्दे पर यथाशीघ्र फैसला लेना होगा. लोकसेवकों को दुराग्रह पूर्ण अभियोजन के प्रति संरक्षण देने की आवश्यकता व लोक सेवक पर मुकदमा चलाते समय सार्वजनिक जीवन में शुचिता बनाये रखने के उद्देश्य के बीच बेहतरीन संतुलन बनाये रखना होगा.
अदालत ने कहा कि भ्रष्टाचार बरदाश्त नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन ईमानदार को संरक्षण देने की भी आवश्यता है. मंजूरी लेने की अनिवार्यता का मुख्य उद्देश्य निर्दोष लोकसेवक को अनावश्यक और दुराग्रहपूर्ण मुकदमे से संरक्षण प्रदान करना है. महज दुरुपयोग की संभावना के आधार पर किसी प्रावधान को असंवैधानिक घोषित नहीं किया जा सकता.
* याचिकाकर्ता की मांग: न्यायालय ने वकील मंजूर अली खान की जनहित याचिका पर यह फैसला सुनाया. इस याचिका में भ्रष्टाचार निवारण कानून की धारा 19 को निरस्त करने का अनुरोध किया गया था. याचिकाकर्ता का मानना है कि राजनीतिज्ञों, सांसदों, विधायकों और अधिकारियों के खिलाफ दर्ज और जांच किये गये मामलों में धारा -19 के तहत मंजूरी लेने की अनिवार्यता के बगैर ही मुकदमा चले.
* क्या है धारा-19 : इसके अनुसार कोई भी अदालत सक्षम प्राधिकार से पूर्व मंजूरी के बगैर किसी भी लोकसेवक के खिलाफ कथित रूप से किये गये अपराध का संज्ञान नहीं लेगी.