स्वामी विवेकानंद: युवा वैरागी, जिन्होंने ”युवा शक्ति” को राष्ट्र की सबसे बड़ी धरोहर बताया

नयी दिल्ली: ‘उठो जागो आगे बढ़ो और लक्ष्य प्राप्ति के पहले रूको नहीं’’. युवा शक्ति को राष्ट्र की सबसे बड़ी धरोहर मानने वाले स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में कोलकाता में हुआ था. इस समय कोलकाता औपनिवेशिक भारत की राजधानी हुआ करती थी. पिता विश्वनाथ दत्त शहर के मशहूर वकील थे और माता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 11, 2020 2:41 PM

नयी दिल्ली: ‘उठो जागो आगे बढ़ो और लक्ष्य प्राप्ति के पहले रूको नहीं’’. युवा शक्ति को राष्ट्र की सबसे बड़ी धरोहर मानने वाले स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में कोलकाता में हुआ था. इस समय कोलकाता औपनिवेशिक भारत की राजधानी हुआ करती थी. पिता विश्वनाथ दत्त शहर के मशहूर वकील थे और माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक संस्कारों वाली आम गृहिणी थीं. विवेकानंद के बचपन का नाम वीरेश्वर रखा गया. हालांकि जब उनका दाखिला स्कूल में करवाया गया तो उनका नाम रखा गया नरेंद्रनाथ.

बचपन में काफी शरारती थे स्वामी विवेकानंद

बालक नरेंद्रनाथ काफी शरारती थे, ऐसा उल्लेख उनकी जीवनी में मिलता है. कहते हैं कि बाल्यावस्था में विवेकानंद काफी उधम मचाया करते और अपनी बहनों को परेशान करते. ऐसा उल्लेख मिलता है कि जब बालक नरेंद्रनाथ काफी जिद्द करने लगते तो माता भुवनेश्वरी देवी शिव-शिव कहते हुए उनके माथे में गंगा का जल छिड़क देतीं, इससे वो शांत हो जाते थे. नरेंद्रनाथ को बचपन से ही मलखंभ, कुश्ती, कबड्डी और क्रिकेट खेलने का शौक था. संन्यास धारण करने के बाद विवेकानंद ने इस बात पर जोर दिया था कि युवाओं को शारीरिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए.

कहते हैं विवेकानंद बचपन से ही हर बात को तर्क की कसौटी पर परखते. इससे संबंधित एक किस्सा है. कहते हैं कि एक दिन नरेंद्रनाथ अपने साथियों के साथ बगीचे में खेल रहे थे. तभी माली ने कहा कि ‘सब भागो, उस पेड़ पर भूत है’. सभी बच्चे भाग खड़े हुए लेकिन बालक नरेंद्र वहीं पेड़ पर ही जमे रहे. माली ने जब कहा कि, ‘अरे नरेंद्र तुम क्यों नहीं भागे’? नरेंद्रनाथ ने उत्तर दिया, ‘माली भैया, मैं भूत को ढूंढ़ रहा हूं’.

कला-साहित्य में रूचि रखते थे विवेकानंद

साल 1871 में उनका दाखिला ईश्वरचंद्र विद्यासागर मेट्रोपोलिटन संस्थान में दाखिला लिया. यहीं उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई. 1879 में कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से प्रथम श्रेणी से स्नातक किया. विवेकानंद को दर्शन, धर्म, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य विषयों में रूचि थी. उन्होंने वेद, उपनिषद, भगवद्गीता, रामायण, महाभारत, पुराणों आदि का गहन अध्ययन किया. विवेकानंद ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की भी शिक्षा हासिल की थी. डेविड ह्यूम, इमैनुएल कांट, जोहान गोटलिब फिच, बारूक स्पिनोजा, जॉन स्टुअर्ट मिल और चार्ल्स डार्विन के कामों का अध्ययन किया. स्वामी विवेकानंद ने अपनी ज्ञान पिपासा को शांत करने के लिए कई देशों की यात्राएं कीं. एशिया के अधिकांश यात्राओं से काफी कुछ सीखा.

रामकृष्ण परमहंस थे आध्यात्मिक गुरू

स्वामी विवेकानंद के आध्यात्मिक गुरू रामकृष्ण परमहंस थे. दक्षिणेश्वर काली मंदिर में रहने वाले रामकृष्ण परमहंस काफी ओजस्वी धार्मिक गुरू और समाज सुधारक थे. स्वामी रामकृष्ण परमहंस से विवेकानंद की पहली मुलाकात 18 साल की उम्र में अपने मित्र सुरेंद्रनाथ मित्र के घर पर हुआ था. इसी समय विवेकानंद को रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि वो दक्षिणेश्वर आकर उनसे मिलें.

स्वामी विवेकानंद वहां पहुंचे लेकिन पहले-पहले नरेंद्रनाथ को लगा कि रामकृष्ण परमहंस में वो बात नहीं है जो वो ढूंढ़ रहे थे. हालांकि बाद में नरेंद्रनाथ रामकृष्ण परमहंस से काफी प्रभावित हुए. उनके सानिध्य में ही नरेंद्रनाथ ने महज 25 साल की उम्र में वैराग्य धारण किया और विवेकानंद कहलाए.

विश्वधर्म सम्मेलन (शिकागो) में किया प्रभावित

सन् 1886 में रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गयी. इसके बाद विवेकानंद ने ही उनके कार्यों को आगे बढ़ाया. स्वामी विवेकानंद विश्व भर में घूमे और सनातन धर्म तथा परंपरा के बारे में अपने विचारों को लोगों के सामने रखा. स्वामी विवेकानंद को साल 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला. यहां उनके संबोधन से अमेरिकी नागरिकों सहित दुनियाभर से आए लोग काफी प्रभावित हुए.

स्वामी विवेकानंद ने अपने सामाजिक कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. युवाओं के बारे में उनके विचार काफी लोकप्रिय रहे. हालांकि तात्कालीन औपनिवेशिक राजनीति के बारे में उनके विचार कम ही मिलते हैं. साल 1902 में महज 38 वर्ष की आयु में विवेकानंद का निधन हो गया.

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