नयी दिल्ली : निर्भया सामूहिक बलात्कार एवं हत्या मामले जैसे अपराधों में दोषियों को माफी देने या नहीं देने पर पीड़िता के परिवार के विचारों के कोई ‘कानूनी मायने’ नहीं हैं क्योंकि ऐसे अपराध व्यवस्था के खिलाफ होते हैं. कानूनी विशेषज्ञों ने शनिवार को यह बात कही.
वरिष्ठ अधिवक्ताओं- राकेश द्विवेदी और विकास सिंह ने कहा कि किसी आपराधिक मामले में दोषियों को माफी देने या उससे इनकार करने के पीड़िता के परिवार के सदस्यों के विचार अदालत में स्वीकार्य नहीं होते. द्विवेदी ने कहा- नहीं, नहीं. उनके (परिवार के लोगों के विचार) असल में कोई मायने नहीं रखते और अदालतों को कानून के मुताबिक चलना होता है. अभियोग हमेशा शासन की ओर से लगाया जाता है और इसलिए मामले हमेशा शासन बनाम अन्य होते हैं. आपराधिक कृत्य हमेशा व्यवस्था के खिलाफ होता है.
द्विवेदी ने कहा कि इसके अलावा, तथ्य यह है कि शिकायतकर्ता (निर्भया की मां) इंदिरा जयसिंह के विचार से सहमत नहीं हैं कि उन्हें दोषियों को सोनिया गांधी की तरफ माफ कर देना चाहिए. उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सिंह ने कहा, परिवार के सदस्यों के ऐसे विचारों की कोई मान्यता नहीं है. कोई कानूनी मान्यता बिलकुल भी नहीं. इसका किसी भी कानून की अदालत में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
हालांकि उन्होंने कहा कि दोषी अपने पक्ष वाले विचारों का प्रयोग राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर करने में कर सकते हैं. वरिष्ठ अधिवक्ता जयसिंह ने निर्भया की मां से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की तरह ‘उदाहरण पेश करने का’ और सजायाफ्ता चार दोषियों को माफ करने का आग्रह किया है जिन्हें एक फरवरी को फांसी दी जानी है. दिल्ली की एक अदालत ने मामले के चार दोषियों- विनय शर्मा (26), मुकेश कुमार (32), अक्षय कुमार (31) और पवन (25) के खिलाफ एक फरवरी के लिए शुक्रवार को फिर से मृत्यु वारंट जारी किये.
दिल्ली में सात साल पहले 16 दिसंबर की रात को एक नाबालिग समेत छह लोगों ने चलती बस में 23 वर्षीय छात्रा से सामूहिक बलात्कार किया था और उसे बस से बाहर सड़क के किनारे फेंक दिया था. सिंगापुर में 29 दिसंबर 2012 को एक अस्पताल में पीड़िता की मौत हो गयी थी. मामले में एक दोषी राम सिंह ने यहां तिहाड़ जेल में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली और छठा आरोपी नाबालिग था.