नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय आज नागरिकता संसोधन अधिनियम (सीएए) से संबंधित 144 याचिकाओं पर सुनवाई करेगी. इसमें केंद्र सरकार द्वारा दायर हस्तांतरण याचिका और सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं शामिल हैं. देखना दिलचस्प होगा कि उच्चतम न्यायालय इस ज्वलंत मसले पर क्या रुख अपनाती है.
कानून का विरोध और समर्थन जारी
बात दें कि नागरिकता संसोधन अधिनियम को लेकर देश भर के अलग-अलग हिस्सों में कानून के समर्थन और विरोध में प्रदर्शन किया जा रहा है. इनमें सबसे चर्चित विरोध प्रदर्शन दिल्ली के शाहीन बाग का है जिसमें कई महिलाएं बीते कई दिनों से लगातार धरने पर बैठी हैं. विरोध प्रदर्शन कर रही महिलाओं का कहना है कि इस कानून से देश में विभाजन जैसे हालात बनेंगे. केवल शाहीन बाग ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत के कई राज्यों सहित, लखनऊ, भोपाल, पटना और रांची में भी बड़ी संख्या में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.
इन विरोध प्रदर्शनों के बीच देश को कुछ हिंसक घटनाओं से भी गुजरना पड़ा है. इन लोगों की मांग है कि अधिनियम को वापस लिया जाना चाहिए. इन विरोध प्रदर्शनों को कुछ रिटायर्ड प्रशासनिक अधिकारी, विभिन्न राजनीतिक दलों तथा सिनेमा जगत की हस्तियों का भी समर्थन मिल रहा है.
बीजेपी ने किया कानून का बचाव
वहीं दूसरी तरफ बीजेपी तथा उसकी सहयोगी पार्टियों की तरफ से नागरिकता संसोधन अधिनियम के समर्थन में रैलियां निकाल रही हैं. केंद्र सरकार की तरफ से देश भर के अलग-अलग शहरों में ऐसी रैलियों का आयोजन किया जा रहा है जिसमें बीजेपी के सांसद, विधायक, नेता, कार्यकर्ता और केंद्रीय मंत्री भाग ले रहे हैं. बीजेपी की तरफ से इसका सिलसिला पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से शुरू किया गया था. 18 जनवरी को वाराणसी में आयोजित रैली में केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी और सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी भाग लिया था.
बीजेपी की तरफ से कहा जा रहा है कि विपक्ष सीएए के मसले पर लोगों को गुमराह कर रहा है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि ये कहना गलत होगा कि, इस कानून से लोगों की नागरिकता चली जाएगी. उन्होंने कहा कि सीएए नागरिकता देने का कानून है ना कि नागरिकता छीनने का.
जानिए आखिर सीएए में क्या है
बता दें कि नागरिकता संसोधन अधिनिमय 1955 के नागरिकता कानून का संसोधित रूप है. इस कानून के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के गैर मुस्लिमों को भारत की नागरिकता दी जाएगी. इसके लिए जरूरी होगा कि लोग 2014 से पहले भारत आये हों और न्यूनतम 6 साल से भारत में प्रवास कर रहे हों. इस कानून के तहत उपरोक्त देशों से आये हिन्दू, सिख, पारसी, बौद्ध और जैन समुदाय के लोगों को नागरिकता दी जाएगी. इस कानून में लिखा गैर मुस्लिम शब्द ही इसके विरोध की सबसे बड़ी वजह है.