नयी दिल्ली : उत्तरी दिल्ली में मजनूं का टीला इलाके में सड़क पार एक एमसीडी स्कूल में मतदान केंद्र पर मतदाताओं की लंबी कतारें थी. वहीं, पाकिस्तान से आये और यहां शरण लिये करीब 750 हिंदू परिवारों के लिए यह शनिवार भी कठिनाई भरा एक और दिन रहा. वजह ये कि वे मताधिकार एवं अन्य नागरिकता अधिकारों की आस लगाये नजर आये.
बच्चे धूल भरी सड़कों पर खेल रहे थे और महिलाएं रोजमर्रा के घरेलू कामों में लगी थीं. ज्यादातर पुरुष छोटे-मोटे काम कर रहे थे. संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) से उन्हें शीघ्र ही मताधिकार, पक्का मकान और भारत में स्थायी पता मिलने की आस जगी है. वर्ष 2013 में सिंध से दिल्ली आये 484 पाकिस्तानी हिंदू परिवारों के समूह के प्रमुख 43 वर्षीय धर्मवीर बागरी ने कहा कि यह कल की तरह ही था. चुनाव आते-जाते रहते हैं, लेकिन हमारी जिंदगी में कोई फर्क नहीं आता.
उन्होंने उम्मीद जतायी कि वह और उनके परिवार के 10 अन्य योग्य सदस्य अगले चुनाव में वोट डाल पायेंगे. उन्होंने कहा कि मैंने इस क्षेत्र में किसी भी नेता या पार्टी कार्यकर्ता को नहीं देखा. वे यहां क्यों आयेंगे? हमारे पास मतदाता पहचान पत्र नहीं है, हम वोट नहीं डाल सकते और हमारा कोई मायने नहीं है.
प्रेमजी (46) ने कहा कि सभी शरणार्थी जो मांग करते हैं, वे बस एक मकान और जमीन का एक टुकड़ा, जहां हम अपना परिवार बसा सकें. उन्होंने कहा कि अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वालों के साथ इंसाफ किया गया. एक दिन आयेगा और हमारे पास पक्का मकान एवं स्थायी पता होगा.