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”देश में राजनीति के सामने खड़ा है विश्वसनीयता का संकट, राजनेताओं की कथनी-करनी में अंतर जिम्मेदार”

नयी दिल्ली : देश में राजनीति के सामने विश्वसनीयता का संकट पैदा होने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नेताओं की करनी और कथनी में अंतर को जिम्मेदार ठहराया. साथ ही, उन्होंने कहा कि इस पर काबू पाने की जरूरत है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को यहां कहा कि ‘राजनीति’ शब्द का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 21, 2020 9:56 PM

नयी दिल्ली : देश में राजनीति के सामने विश्वसनीयता का संकट पैदा होने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नेताओं की करनी और कथनी में अंतर को जिम्मेदार ठहराया. साथ ही, उन्होंने कहा कि इस पर काबू पाने की जरूरत है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को यहां कहा कि ‘राजनीति’ शब्द का अर्थ खो गया है. उन्होंने लोगों से राजनीति में विश्वसनीयता के संकट को समाप्त करने की चुनौती स्वीकार करने का आह्वान किया. वह लाल किला लॉन में ब्रह्मकुमारियों के शिवरात्रि महोत्सव समारोह को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि राजनीति एक ऐसी प्रणाली है, जो समाज को सही रास्ते पर ले जाती है, लेकिन वर्तमान में इसका अर्थ और महत्व खो गया है और लोग इससे नफरत करते हैं. उन्होंने दावा किया कि राजनीति में विश्वसनीयता का संकट नेताओं के शब्दों और उनके कार्यों में अंतर से उत्पन्न हुआ है.

राजनाथ सिंह ने कहा कि हम क्यों नहीं इसे चुनौती के रूप में ले सकते, ताकि राजनीति के इस संकट को समाप्त किया जा सके. सिंह ने कहा कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का संदेश भारत से आया और यह हमारी संस्कृति की एक अतुल्यनीय विशेषता है, जिसमें देश की सीमाओं से दूर रहने वाले लोगों सहित सभी को एक परिवार माना जाता है.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह संदेश भारत से पूरी दुनिया में फैला. केवल बड़े दिल वाले ही इसकी परिकल्पना कर सकते हैं. संकीर्ण सोच वाले लोग इसके बारे में सोच भी नहीं सकते. रक्षा मंत्री ने भगवान शिव को शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का प्रतीक बताया और कहा कि देश के सभी कोनों में भगवान के मंदिरों ने अखंड भारत की तस्वीर को पूरा किया.

राजनाथ सिंह ने भगवान शिव को अनेकता में एकता की अवधारणा के साथ भी जोड़ा, जो भारत की विशेषता है. सिंह ने विभिन्न राज्यों में भाषाई विवादों की ओर इशारा करते हुए लोगों से अपील की कि वे सामाजिक एकरूपता को बढ़ावा देने के लिए अपनी मातृभाषा के अलावा कम से कम एक भाषा और सीखें.

उन्होंने ब्रह्मकुमारियों से आग्रह किया कि वे लोगों को जाति और धर्म की संकीर्णता से ऊपर उठने में मदद करें. अगर ऐसा हुआ, तो दुनिया की कोई भी ताकत देश को विश्व में शीर्ष पर पहुंचने से नहीं रोक पायेगी.

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