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उत्तराखंड: Joshimath की तरह ना उजड़ जाए आशियाना, चीन से सटे 14 पहाड़ी गांवों के लोगों ने शुरू किया विरोध जताना

दारमा घाटी में भारत-चीन सीमा के पास 14 से अधिक गांवों के निवासियों ने प्रस्तावित बोकांग-बेलिंग पनबिजली परियोजना का समर्थन नहीं करने का संकल्प लिया है, जिसे लेकर उन्होंने ने स्थानीय डीएम को ज्ञापन सौंपा है. जोशीमठ संकट के मद्देनजर इस परियोजना के खिलाफ स्थानियों में डर का माहौल है.

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ स्थित दारमा घाटी में भारत-चीन सीमा के पास 14 से अधिक गांवों के निवासियों ने प्रस्तावित बोकांग-बेलिंग पनबिजली परियोजना का समर्थन नहीं करने का संकल्प लिया है, क्योंकि उन्हें डर है कि उनका भी वही हश्र होगा जो बाढ़ प्रभावित जोशीमठ के लोगों का हुआ था. ग्रामीणों ने कहा कि पिथौरागढ़ के भूकंपीय रूप से नाजुक परिदृश्य में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का काम भूमि की कमी को ट्रिगर करेगा. इसलिए, वे चाहते हैं कि परियोजना को स्थगित कर दिया जाए।

दारमा घाटी एक नाजुक भू-भाग

स्थानीयों का कहना है कि, “दारमा घाटी एक नाजुक भू-भाग है जिसने अतीत में कई आपदाओं का सामना किया है. जलविद्युत परियोजना, एक बार बनने के बाद, भूमि जलमग्न हो जाएगी और सैकड़ों लोग विस्थापित हो जाएंगे. जोशीमठ संकट के मद्देनजर, सरकार को इस परियोजना पर पुनर्विचार करना चाहिए.

टीएचडीसी द्वारा किया जाना है निर्माण

आपको बताएं कि, ” चीन सीमा से 35-40 किमी दूर स्थित दारमा घाटी में प्रस्तावित 165 मेगावाट की परियोजना का निर्माण टीएचडीसी द्वारा किया जाना है. धौलीगंगा नदी पर इसकी योजना 2004 में बनाई गई थी. स्थानीय निवासी नियमित रूप से इसके निर्माण के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं. परियोजना के लिए एक सुरंग बनाने की आवश्यकता हो सकती है जो “पूरी जगह के लिए खतरनाक” है

कहीं जोशीमठ जैसे न हो जायें हालात, ग्रामीणों में भय

पिथौरागढ़ की डीएम रीना जोशी ने बताया, “जोशीमठ में टनल ने शहर को परेशान कर दिया है. हमारे मामले में हम जोशीमठ से अधिक ऊंचाई पर रहते हैं. “वहीं इस पूरे मुद्दे पर पिथौरागढ़ डीएम का कहना है कि, ग्रामीणों को चिंतित होने की जरूरत नहीं. THDC सिर्फ प्रोजेक्ट के लिए सर्वे कर रहा है. अन्य संबंधित मामलों पर बाद में फैसला किया जाएगा.”

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