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न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित बिल को संसद की मंजूरी

नयी दिल्ली: देश में उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में 20 वर्ष पुरानी कालेजियम व्यवस्था को समाप्त कर न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन का रास्ता साफ करने वाले ऐतिहासिक विधेयकों को आज संसद की मंजूरी मिल गयी. राज्यसभा ने आज राष्ट्रीय नियुक्ति आयोग विधेयक, 2014 और इससे संबंधित संविधान संशोधन विधेयक […]

नयी दिल्ली: देश में उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में 20 वर्ष पुरानी कालेजियम व्यवस्था को समाप्त कर न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन का रास्ता साफ करने वाले ऐतिहासिक विधेयकों को आज संसद की मंजूरी मिल गयी.

राज्यसभा ने आज राष्ट्रीय नियुक्ति आयोग विधेयक, 2014 और इससे संबंधित संविधान संशोधन विधेयक को पारित कर दिया. संविधान संशोधन विधेयक के पक्ष में 179 सदस्यों ने मतदान किया. एक सदस्य ने मतविभाजन में भाग नहीं लिया. विधेयकों पर विपक्ष के लाये गये संशोधनों को सदन ने ध्वनिमत से नकार दिया. राष्ट्रीय नियुक्ति आयोग विधेयक को सदन ने ध्वनिमत से पारित कर दिया.

लोकसभा इन दोनों विधेयकों को पहले ही पारित कर चुकी है.प्रक्रिया के अनुसार संविधान संशोधन विधेयक को अब सभी राज्यों को भेजा जायेगा और राज्य विधायिकाओं में से 50 प्रतिशत से इस पर मंजूरी लेनी पडेगी. यह प्रक्रिया आठ माह तक चल सकती है. राज्यों से मंजूरी के बाद इसे राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए भेजा जायेगा.

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक के कानून बनने के बाद देश में न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाली कालेजियम व्यवस्था समाप्त हो जायेगी.संविधान संशोधन विधेयक के जरिये राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को संवैधानिक दर्जा मिल जायेगा.

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक के तहत उच्चतम न्यायालयों एवं देश के अन्य 24 उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति की जायेगी. आयोग में भारत के प्रधान न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, कानून मंत्री तथा दो प्रख्यात व्यक्ति सदस्य होंगे.कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने दोनों विधेयकों पर अलग अलग हुयी चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि सरकार न्यायपालिका की गरिमा और स्वतंत्रता का पूरा सम्मान करती है और इन विधेयकों के जरिये उसकी गरिमा को कम नहीं किया जा रहा है.

प्रसाद ने कहा कि यह कहना गलत है कि सरकार ने यह काम हडबडी में किया है. उन्होंने कहा कि कालेजियम व्यवस्था के खिलाफ पूर्व न्यायाधीश जे एस वर्मा, न्यायमूर्ति वेंकटचलैया टिप्पणी कर चुके हैं तथा विभिन्न आयोगों और संसद की स्थायी समितियों ने भी इसके विरुद्ध राय दी थी.

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