सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा, नेता प्रतिपक्ष के बिना सरकार कैसे चुनेगी लोकपाल?
नयी दिल्ली : नेता प्रतिपक्ष के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र सरकार को नोटिस भेजा और दो सप्ताह के भीतर अपना जवाब देने को कहा. कोर्ट आज लोकपाल की नियुक्ति के मकसद से विपक्ष के नेता संबंधी प्रावधान की व्याख्या करने पर राजी हो गया. लोकपाल की नियुक्ति में एलओपी चयन समिति के […]
नयी दिल्ली : नेता प्रतिपक्ष के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र सरकार को नोटिस भेजा और दो सप्ताह के भीतर अपना जवाब देने को कहा.
कोर्ट आज लोकपाल की नियुक्ति के मकसद से विपक्ष के नेता संबंधी प्रावधान की व्याख्या करने पर राजी हो गया. लोकपाल की नियुक्ति में एलओपी चयन समिति के सदस्य होते हैं. शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही केंद्र से इस मामले में दो सप्ताह में अपना रुख स्पष्ट करने को कहा. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि विधान को ठंडे बस्ते में नहीं डाला जा सकता.
इस पद के महत्व पर जोर देते हुए प्रधान न्यायाधीश आर एल लोढा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि विपक्ष का नेता सदन में सरकार से अलग स्वर का प्रतिनिधित्व करता है.
पीठ ने कहा कि एलओपी ( लोकपाल कानून के तहत )एक महत्वपूर्ण घटक है और मौजूदा राजनीतिक स्थिति में इस मुद्दे पर वस्तुनिष्ठ विचार की जरूरत है जहां लोकसभा में कोई विपक्ष का नेता नहीं है. पीठ ने यह भी कहा कि एलओपी का मुद्दा न केवल लोकपाल में प्रासंगिक है बल्कि यह मौजूदा और आगामी विधेयकों के मामले में भी महत्वपूर्ण है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले को लंबा नहीं खींचा जा सकता और विधान को ठंडे बस्ते में नहीं डाला जा सकता. शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही मामले के अंतिम निपटान के लिए नौ सितंबर की तारीख तय कर दी.
लोकसभा में 44 सीटों के साथ दूसरी सबसे बडी पार्टी कांग्रेस विपक्ष के नेता पद के लिए कडी मशक्कत कर रही है लेकिन सत्तारुढ भाजपा उसकी मांग को स्वीकार नहीं करने पर अड़ी है. भाजपा का कहना है कि विपक्षी दल के पास जरूरी दस फीसदी सीटें नहीं हैं जिसका मतलब है कि एलओपी पद पर दावे के लिए उसके पास 55 सीटें होनी चाहिए.
इससे पूर्व, 24 अप्रैल को केंद्र ने शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि वह लोकपाल के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति के संबंध में तत्काल कोई फैसला नहीं करेगा.केंद्र ने उच्चतम न्यायालय द्वारा उसे भेजे गए नोटिस के जवाब में यह जानकारी दी थी.
उच्चतम न्यायालय ने लोकपाल के अध्यक्ष और इसके सदस्यों की नियुक्ति की पूरी चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए और इस पर स्थगनादेश की मांग करते हुए दायर की गयी एक गैर सरकारी संगठन की याचिका पर 31 मार्च को केंद्र से जवाब मांगा था.
शीर्ष अदालत ने केंद्र से लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2014 के तहत बनाए गए खोज समिति (सर्च कमेटी ) नियम 2014 के औचित्य के बारे में सवाल किया था। यह अधिनियम और नियम लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के लिए नामों के पैनल के चयन के तौर तरीकों तथा सदस्यों की नियुक्ति की शर्तों तथा संविधान के बारे में है.
गैर सरकारी संगठन कामन काज की अधिवक्ता प्रशांत भूषण के जरिये दाखिल की गयी याचिका में उन नियमों को गैर कानूनी घोषित किए जाने की मांग की गयी थी जिनके तहत चयन किया जा रहा है.
याचिका में यह घोषित किये जाने की मांग की गयी थी कि नियमों के कुछ प्रावधान लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम के अधिकार क्षेत्र के बाहर हैं. इसमें नियमों के तहत शुरु की गयी पूरी चयन प्रक्रिया को यह आरोप लगाते हुए रद्द किये जाने की मांग की गयी थी कि यह गैरकानूनी, मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.
इसमें कहा गया था कि जिन नियमों के तहत चयन किया जा रहा है, उस प्रक्रिया में ही गंभीर खामियां होने के बावजूद सरकार चयन प्रक्रिया पर आगे बढ़ रही है. याचिका में यह भी कहा गया था कि नियम 10 ( एक ) प्रावधान करता है कि सर्च कमेटी लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के लिए व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करेगी. इस पैनल पर चयन समिति विचार करेगी और नामों की सूची केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध करायी जायेगीं.